पुडुचेरी (पांडिचेरी) में 'ऑरविले बीच’
पर घूमते हुए अनायास मन में प्रसिद्ध फ्रांसीसी
लेखक अल्बेयर कामू के उपन्यास ‘द आउटसाइडर’
का ध्यान आया. आगे-पीछे देखा, कहीं कोई नहीं था. तट पर दूर कुछ मछुआरे जाल को
मिल-जुल कर सुलझा रहे थे. कुछ अपनी डोंगियों को लेकर समंदर में उतर चुके थे.
सूर्योदय हो रहा था. लकड़ियों के कॉटेज और खर-पतवार से छाए घरों के बीच से गुजरते
हुए मुझे लगा कि समुद्र तट पर कहीं कोई गोली चलेगी या चाकू. जैसा कि उपन्यास में
होता है. यह मेरे मन का वहम था.
ऐसा लगता है कि कोरोना विषाणु से संक्रमण को लेकर असुरक्षा और भय शहर में हर
जगह मौजूद है. कामू के उपन्यासों मसलन, ‘प्लेग’ में भी यह बेतुकापन और
असुरक्षा अस्तित्ववादी विमर्श की शक्ल में आता है. पूरे देश-दुनिया से पांडिचेरी
में साल भर पर्यटक आते रहते हैं. सड़कों पर, मोटर साइकिल से घूमते, होटलों में मौज मनाते वे बेफ्रिक से दिख रहे हैं. असल में
पांडिचेरी का मिजाज ही बेफ्रिकी का है. समंदर के किनारे बसे इस शहर सबसे का बड़ा
आकर्षण पूरे शहर में फैले साफ-सुथरे समुद्र तट हैं. हर तट ही अपनी खासियत हैं.
जैसे ‘सेरेनिटी बीच’ पर सूर्योदय देखने पर्यटक जाते हैं, वहीं ‘पैराडाइज बीच’ पर सर्फिंग का
लुत्फ लेने.
यह शहर पहले मछुआरों का छोटा सा गाँव हुआ करता था, जिसे औपनिवेशिक शासकों ने कारोबार के लिए एक सफल बंदरगाह
में तब्दील किया. यह शहर कई बार बना-बिगड़ा है पर कहते हैं कि इसके मूल स्वभाव में
बदलाव नहीं आया. बंगाल की खाड़ी पर 1674 में फ्रांसीसी ने इसे बसाया, जिसे डच ने उजाड़
दिया. फिर फ्रांसीसी ने कब्जे में लिया जिसे अंग्रेजों ने उजाड़ दिया. वर्ष 1954 में भारत में विलय के बाद इसे केंद्र शासित
प्रदेश का दर्जा दिया गया, जिसकी एक वजह
इसकी सांस्कृतिक विशिष्टता है. हालांकि पांडिचेरी भारत का अभिन्न अंग तब बना जब
वर्ष 1963 में फ्रांस की सरकार और
भारत सरकार के बीच औपचारिक संधि अनुबंध पर हस्ताक्षर हुए.
बहरहाल, पांडिचेरी में
जितना फ्रांस का रंग गहरा है, उतनी ही तमिल
संस्कृति रची-बसी है. घर के बाहर बने कोलम हो, फूल बेचती महिलाएं हों या तमिल गीत-संगीत. यह मेल खान-पान
में भी दिखता हैं. फ्रेंच और इटालियन क्यूजिन के साथ इडली, डोसा और पारंपरिक दक्षिण भारतीय व्यंजन हर नुक्कड़, चौराहे पर मिलता है.
Serenity Beach |
‘व्हाइट टाउन’ में सफेद और
सरसों के पीले रंग में सजे मकानों में फ्रांसीसी वास्तुकला का अनुपम सौंदर्य अभी
भी मौजूद है. हरी-भरी गलियों में घूमते हुए ऐसा लगता है कि हम पेरिस पहुँच गए हैं.
आज भी कई परिवार ऐसे है जिनकी जड़ें फ्रांस से जुड़ी हैं. जिस होटल में मैं रुका
था उसका वास्तुशिल्प भी एक फ्रांसीसी ने ही डिजाइन किया था. लॉबी में फ्रेंच
फिल्मों के पोस्टर इसकी गवाही देते थे. साथ ही एक छोटी लाइब्रेरी भी फ्रांसीसी
साहित्य से सजी मिली. प्रसंगवश, महात्मा गांधी के
करीबी और फ्रांसीसी विद्वान रोम्या रोलां के नाम पर बना पुस्तकालय देश के सबसे
पुराने पब्लिक लाइब्रेरी में से एक है. वर्ष 1827 में इसकी स्थापना हुई. पिछले साल जनवरी में जब मैं यहाँ
आया था तब पुनर्निमार्ण का काम पूरा हो रहा था. आधुनिक साजो-सज्जा से लैस इस
पुस्तकालय में आज विभिन्न भाषाओं में चार लाख से ज्यादा किताबें हैं. चूंकि शहर
में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इस वजह से देश के
अन्य हिस्सों से छात्रों की आवाजाही यहाँ दिखती है.
एक पुरसकून धीमी लय में शहर चलता है और रात में भी सड़क पर लोग दिखते हैं. 'रॉक बीच' पर स्थित रंगीन रोशनियों में नहाए चर्चित रेस्तरां 'ल कैफे' में देर रात भी गहमागहमी रहती है. यह चौबीसों घंटे खुला
रहता है.
प्रकृति के बीच ऑरविले में स्थित अरविंदो आश्रम में दुनिया भर के पर्यटकों का
जमघट लगा रहता है. वर्ष 2018 में इसने पचास
साल पूरे किए. यह आश्रम एक बीते दौर और उस दौर के सपनों को प्रतिबिंबित करता है.
भय और असुरक्षा के बीच मानवीय एकजुटता और विश्व शांति इसके मूल में है.
(प्रभात खबर, 15 मार्च 2020)