Sunday, February 16, 2025
Sunday, February 02, 2025
विभाजन का चितेरा: ऋत्विक घटक
महान फिल्मकार ऋत्विक घटक (1925-76) का यह जन्मशती वर्ष है, पर जिस रूप में भारतीय सिनेमा में उनके योगदान की चर्चा होनी चाहिए वह नहीं दिखती. अजांत्रिक, मेघे ढाका तारा, कोमल गांधार, सुवर्ण रेखा, तिताश एकटी नदीर नाम जैसी उनकी फिल्में भारतीय सिनेमा की थाती है.
घटक ढाका में जन्मे थे और विभाजन की त्रासदी को झेला था. बंगाल विभाजन ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को काफी प्रभावित किया था. आत्मानुभूति पर उनका काफी जोर था.
कुमार शहानी ने एक जगह लिखा है, “ऋत्विक दा का काम हमारी पहचान की हिंसक अभिव्यक्ति है. यह मेघे ढाका तारा में मरणासन्न लड़की का रुदन है जो पहाड़ियों से गूंजता है, हमारे जीने का अधिकार है.” वर्षों पहले मणि कौल ने मुझे कहा था कि ‘ऋत्विक दा की फिल्मों से आज भी में बहुत कुछ सीखता हूँ. उन्होंने मुझे नव-यथार्थवादी धारा से बाहर निकाला.’ उन्होंने कहा था ‘उनकी फिल्मों की आलोचना मेलोड्रामा कह कर की जाती है. वे मेलोड्रामा का इस्तेमाल कर उससे आगे जा रहे थे. उस वक्त उन्हें लोग समझ नहीं पाए.’
घटक ने भारतीय फिल्मकारों की एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया, जब वे वर्ष 1965-67 में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (फटीआइआइ), पुणे से उप-प्राचार्य के रूप में जुड़े. पिछली सदी के 70-80 के दशक में व्यावसायिक फिल्मों से अलग समांतर सिनेमा की धारा को पुष्ट करने वाले फिल्मकार मणि कौल, कुमार शहानी, सईद मिर्जा, जैसे फिल्मकार खुद को ‘घटक की संतान’ कहलाने में फख्र महसूस करते रहे हैं. मणि कौल और कुमार शहानी दोनों उनके एपिक फॉर्म से काफी प्रभावित थे.
कुमार शहानी ने मुझे कहा था कि ‘जब आप मेरी फिल्म चार अध्याय देखेंगे, तो ऋत्विक दा आपको भरपूर नजर आएंगे’. शहानी ने बताया था कि एपिक फॉर्म से घटक ने ही फिल्म संस्थान में उनका परिचय करवाया था. इसी तरह पुणे फिल्म संस्थान के छात्र रहे फिल्मकार अनूप सिंह की फिल्मों में भी एपिक फॉर्म दिखाई देता है. सिंह की बेहतरीन फिल्म ‘एकटी नदीर नाम’ (2002) ऋत्विक घटक को ही समर्पित है.
असमिया फिल्मों के चर्चित निर्देशक जानू बरुआ बताते हैं, “मैं जिंदगी में पहली बार ऐसे आदमी (ऋत्विक घटक) से मिला जिसके लिए खाना-पीना, सोना, उठना-बैठना सब कुछ सिनेमा था.” ऋत्विक घटक के बिना आज भी फिल्म संस्थान के बारे में कोई भी बात अधूरी रहती है.
उनकी फिल्में बंगाल विभाजन, विस्थापन और शरणार्थी की समस्या का दस्तावेज है. ‘सुवर्णरेखा’ की कथा विभाजन की त्रासदी से शुरू होती है. फिल्म के आरंभ में ही एक पात्र कहता है ‘यहाँ कौन नही है रिफ्यूजी?’ ऋत्विक घटक निर्वासन और विस्थापन की समस्या को एक नया आयाम देते हैं. आज भूमंडलीय ग्राम में जब समय और स्थान के फासले कम से कमतर होते चले जा रहे हैं हमारी अस्मिता की तलाश बढ़ती ही जा रही है. ऋत्विक की फिल्में हमारे समय और समाज के ज्यादा करीब है. घटक अपनी कला यात्रा की शुरुआत में ‘इप्टा’ (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन) से जुड़े थे. चर्चित निर्देशक अदूर गोपालकृष्णन घटक के इप्टा की पृष्ठभूमि और संगीत के कलात्मक इस्तेमाल की ओर बातचीत में इशारा करते हैं.