Sunday, June 22, 2025

रंगमंच पर नसीरुद्दीन शाह


पिछले दिनों लंबे अरसे के बाद नसीरुद्दीन शाह को रंगमंच पर देखा. श्रीराम लागू रंग अवकाश, पुणे में ‘द फादर’ का मंचन था, जिसे उन्होंने निर्देशित किया था और खुद मुख्य भूमिका में थे. असल में, यह नाटक मुंबई और आस-पास तो पिछले सात सालों से होता रहा पर मुझे याद नहीं कि दिल्ली में मोटले प्रोडक्शन ने इसका मंचन किया हो.


बहरहाल, फ्लोरियन जेलर के लिखे बहुचर्चित फ्रेंच नाटक ‘द पेरे’ पर आधारित इस नाटक के केंद्र में डिमेंशिया/अल्जाइमर से पीड़ित एक पिता (आंद्रे) हैं, जिसके बहाने मानवीय संबंधों, एक वृद्ध के अंतर्मन की व्यथा को हम देखते हैं. यह नाटक जितना इस बीमारी से प्रभावित व्यक्ति के आत्मसम्मान और असहायता बोध से उपजा है, उतना ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द रहने वाले, उसकी देखभाल करने वालों (केयर गिवर) के बारे में भी है. मानसिक बीमारी, मतिभ्रम और विगत स्मृतियों में लौटना जहाँ बीमार व्यक्ति के लिए दुखद है, वहीं परिवार के लिए यह ऐसा अनुभव होता है जिससे व्यक्ति के प्रति सारी संवेदनाओं के बावजूद पार पाना आसान नहीं.

मंच पर नसीरुद्दीन शाह के साथ रत्ना पाठक शाह भी थीं. बेटी के किरदार में रत्ना ने पिता के प्रति प्रेम, सब कुछ करके भी पिता की स्थिति को न बदल पाने की झुंझलाहट, अपने पति के साथ संबंध को बचाए रखने की जद्दोजहद और खीझ को खूबसूरती से निभाया है.

नसीरुद्दीन शाह हमारे समय के सर्वाधिक सशक्त अभिनेता हैं. हिंदी समांतर सिनेमा के दौर की कहानी बिना उनके लिखी ही नहीं जा सकती. सिनेमा के अभिनेता से पहले वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित थिएटर के कलाकार रहे हैं. उल्लेखनीय है कि फिल्म संस्थान, पुणे से एक्टिंग में प्रशिक्षण के बाद संस्थान के ही एक सहयोगी के साथ मिलकर वर्ष 1979 में उन्होंने मोटले प्रोडक्शन की स्थापना की थी. पिछले पैतालीस वर्षों में मोटले ने विभिन्न प्रस्तुतियों के जरिए रंगमंच को संवृद्ध किया है. सिनेमा में मिली प्रसिद्धि के बावजूद उन्होंने रंगमंच से अपने प्रेम को नहीं छोड़ा. रंगमंच से सिनेमा की ओर कदम बढ़ा चुके अभिनेता मुश्किल से ही पुराने प्रेम की ओर लौटते हैं, वे बॉलीवुड के ही होकर रह जाते हैं! हमारे आसपास कई ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं. नसीरुद्दीन शाह ने अपनी संस्मरण की किताब ‘एंड देन वन डे’ में लिखा है कि कैसे 11 वर्ष की उम्र में मंच पर उन्होंने ‘स्व’ को पाया और किस तरह यह उनके जीवन का निर्णायक क्षण था!

अगले महीने नसीरुद्दीन शाह 75 वर्ष के हो जाएँगे. मंच पर उन्हें देखते हुए बरबस वर्ष 2020 में रिलीज हुई और ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित ‘द फादर’ की याद आती रही. इस फिल्म में एंथनी हॉपकिंस बार-बार यह सवाल पूछते हैं-व्हाट अबाउट मी?’ यह सवाल नाटक देखने के बाद काफी कचोटता है.

यदि आप अल्जाइमर से पीड़ित किसी व्यक्ति संसर्ग में आए हैं तो पता होगा कि हिंदुस्तान में इन बीमारियों के प्रति लोगों में सूचना और संवेदना का अभाव है. जिस सहजता और मार्मिकता से नसीरुद्दीन शाह ने किरदार को निभाया है, वह अल्जाइमर पर लिखे सैकड़ों लेखों और किताबों पर भारी है

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