(14.10.1942-15.12.2020) |
बड़े भाई (Navin Das) कहते हैं कि एक
बार पापा ने उनसे पूछा था कि तुम बड़े होकर घूस कमाओगे? बचपने में बड़े भाई ने कहा था-हां. पापा का जवाब था कि 'फिर मैं तुम्हारे यहाँ पानी भी नहीं पीऊंगा'.
साहित्य वगैरह नहीं लिखा, पर वे हमेशा
रचनात्मक रहे. वे अपनी आत्मकथा लिखना चाहते थे. बचपन में मैं बेहद recalcitrant
(हठी और जिद्दी) था. वे माँ से कहते थे कि-इसमें
जो destructive urge है उसे constructive
urge की तरफ मोड़ दीजिए.
वे अति संवेदनशील और आदर्शवादी थे. इतने कि मनोविज्ञान जिसे मनोविकार कहता है.
हमारे लिए वे 'स्पेशल फादर'
थे. 23 नवंबर को जब वे अस्पताल में भर्ती थे, तब खाना नहीं खा रहे थे. लाख कोशिश के बावजूद उन्होंने नहीं
खाया. रात के तीन बजे मुझे आवाज़ देते हुए पूछा- बेटा, तू खेलैं (तुमने खाया)? मैं रो पड़ा था.
काफी संघर्ष में वे पले-बढ़े थे. बचपन में खाने-पीने की भी दिक्कत रही थी
उन्हें. वे कहते थे-खाए-खर्चे जो बचे, सो धन रखिए जोड़.
वे दिल्ली में मेरे खर्च से परेशान रहते थे. मुझे और मेरे मित्रों से बार-बार
कहते थे कि इसे बोलिए एक मकान ख़रीदेगा. मैं उन्हें टीज करता था कि स्कॉलर के पास
पैसा नहीं रहता मकान के लिए. उन्होंने मुझे जाते-जाते एक मकान खरीद दिया. पर वे उस
मकान में रहे नहीं.
वे आध्यात्मिक व्यक्ति थे. ऋत्विक थे. सबसे प्रेम करते थे, पर उनमें मोह नहीं था.
उन्हें विनय पत्रिका का यह पद-मन पछितैहै अवसर बीते, काफी पसंद था, जो उन्होंने अपने पिता से सुना-सीखा था. वे अक्सर गाते थे-सुत-बनितादि जानि
स्वारथरत न करु नेह सबहीते/ अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते.
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1 comment:
सादर नमन।
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