यह चिपको आंदोलन की शुरुआत थी, जब 27 मार्च 1973 को अंगू के पेड़ों को काटने इलाहाबाद की सायमण्ड्स कंपनी के मजदूर उत्तराखंड के गोपेश्वर आए, तब चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा था: ‘उनसे कह दो कि हम उन्हें पेड़ काटने नहीं देंगे, जब उनके आरे पेड़ों पर चलेंगे, हम पेड़ों को अंगवाल्ठा डाल लेंगे, उन पर चिपक जाएँगे.’
चिपको आंदोलन के संगठन और नेतृत्व के लिए वर्ष 1982 में चंडी प्रसाद भट्ट को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से
नवाजा गया. आज उम्र के 88 वें पड़ाव पर वह पर्यावरण संरक्षण को लेकर सक्रिय हैं.
पर्यावरण की वर्तमान समस्या
आज समस्याएं और भी गंभीर हो रही है. बात पेड़ की ही नहीं, पानी की, जमीन की समस्या की भी है. अलग-अलग ढंग से संरक्षण की
बात ऊपर ही ऊपर तो हो रही है, जमीनी
स्तर पर जिस तरह काम होना चाहिए नहीं हो रहा.
चिपको आंदोलन की चेतना
जहाँ तक पेड़ों की बात है सरकार के कानूनों के कारण अभी काफी
बचे हैं और कुछ लोगों की जागृति के कारण. मुख्य रूप से उत्तराखंड में महिला मंगल
दलों के द्वारा अपने इलाकों में पेड़ों की निगरानी का कार्यक्रम चल रहा है. चिपको
आंदोलन की जो मातृ संस्था है वह जंगलों में आग इत्यादि में जन चेतना जागृत करने का
काम कर रही है.
जलवायु परिवर्तन
ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं ऐसा विषय विशेषज्ञ बताते हैं. और
जैसा कि आपने सुना होगा 7 फरवरी 2021 को
रेणी में कटान टूटा और उसके कारण ग्लेशियर भी टूटा. और नंदा देवी के मुहाने के
स्फीयर पर एक बिजली का प्रोजेक्ट बनाया था, 13 मेगावाट
का वह भी नष्ट हुआ. और एक बड़ी परियोजना थी तपोवन में वह भी नष्ट हुई. इसमें 205 आदमी की मौत हुई और कई लोग लापता हुए. इससे पहले वर्ष
2013 में केदारनाथ में त्रासदी आई.
जोशीमठ की त्रासदी
जोशीमठ जो एक उभरता हुआ नगर है और शंकराचार्य का मठ है उस पर भी
प्रश्नचिन्ह लग गया है. जोशी मठ में त्रासदी हो रही है, अभी तक लोगों का विस्थापन इत्यादि नहीं हो पाया. तो सवाल यह है कि जोशी मठ को
कैसे बचाया जाए? जोशी मठ के साथ हमारी सीमांत की सुरक्षा भी जुड़ी हुई
है. इस प्रकार की लापरवाहियाँ प्रत्यक्षतः जलवायु परिवर्तन के कारण देखने को मिल
रही है.
आज भी कोई ऐसा संस्थान नहीं है जो त्रासदी के बारे में बता
सके...केवल ग्लेशियर के पीछे जाने का सवाल नहीं है, ग्लेशियर
पीछे जाने से हमारी ट्री लाइन पर क्या प्रभाव पर रहा है, हमारी खेती-बाड़ी पर, जीव जंतुओं पर क्या असर पर पड़ रहा है ये जानकारी
नहीं हो पा रही है.
गंगा पर प्रभाव
गंगा, ब्रह्मपुत्र और इंडस पर जलवायु परिवर्तन का
दुष्प्रभाव पर रहा है. इन तीनों नदियों का वाटर बजट 63 प्रतिशत है. अकेली गंगा का बेस लाइन 26 प्रतिशत के करीब है, हिमालय
से लेकर गंगासागर तक. हिमालय में गड़बड़ी होगी तो पूरे बेसिन पर किसी न किसी रूप
में दुष्प्रभाव पड़ेगा और ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे. अभी तो बाढ़ इत्यादि आएगी, एक समय ऐसा आएगा हमारी गंगा नदी बरसाती नदी की तरह हो जाएगी
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