हाल में रिलीज हुई ‘किसी का भाई किसी की जान’ ‘तू झूठी मैं मक्कार’, 'अफवाह’ आदि फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खास करिश्मा नहीं दिखा पाई. इनमें से कुछ तो बुरी तरह पिट गईं, वहीं ‘जुबली’, ‘दहाड़’, ‘सास, बहु और फ्लेमिंगो’ वेब सीरीज और ‘कटहल’ जैसी फिल्म की सोशल मीडिया में खूब चर्चा है.
एक आंकड़ा के मुताबिक भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म का बाजार सब्सक्रिप्शन सहित करीब दस हजार करोड़ रुपए का है, जो इस दशक के खत्म होते-होते तीस हजार करोड़ तक पहुँच जाएगा. अमेजन, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, सोनी, जी जैसे बड़े प्लेटफॉर्म के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं (मराठी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, बांग्ला) में भी कई ओटीटी चैनल आज दर्शकों के मनोरंजन के लिए उपलब्ध हैं. प्रसंगवश, जियो बेबी की चर्चित मलयालम फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ (2021) को पहले निर्देशक ने स्थानीय ‘नीस्ट्रीम’ वेबसाइट पर ही रिलीज किया था. जब फिल्म के बारे में चर्चा होने लगी, अच्छे रिव्यू आने लगे तब अमेजन ने फिल्म को अमेजन प्राइम पर रिलीज किया. पिछले दिनों फिल्मकार नितिन चंद्रा ने मैथिली फिल्म ‘जैक्सन हॉल्ट’ को भी एक वेबसाइट ‘बेजोड़’ पर ही रिलीज किया.
न सिर्फ दर्शक बल्कि बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक और कलाकारों की नज़र भी इस बढ़ते हुए बाजार पर टिकी है. विक्रमादित्य मोटवानी (जुबली), होमी अदजानिया (सास, बहु और फ्लेमिंगो), रीमा कागती (दहाड़) जैसे चर्चित हिंदी फिल्म निर्देशक इन वेबसीरीज सीरीज से जुड़े हैं. याद करें कि पिछली सदी में भी समांतर सिनेमा के कई सफल फिल्मकार जैसे श्याम बेनेगल, सईद मिर्जा, कुंदन शाह, सई परांजपे ने टेलीविजन की ओर रुख किया था और उन्हें सफलता भी मिली थी. ‘भारत एक खोज’, ‘नुक्कड़’, ‘ये जो है जिंदगी’, ‘अड़ोस-पड़ोस’ जैसे सीरियलों की याद आज भी पुरानी पीढ़ी के दर्शकों को है.
बहरहाल, स्मार्ट फोन पर सस्ते डाटा पैक और आने वाले समय में फाइव जी नेटवर्क की आसान उपलब्धता से ओटीटी प्लेटफॉर्म के कंटेंट में विविधता की उम्मीद है. असल में, आज नई पीढ़ी का दर्शक घिसे-पिटे, फार्मूले पर आधारित कहानियों से ऊब चुका है. उसे मनोरंजन के लिए नए विषय-वस्तु और पटकथा की तलाश हमेशा रहती है, जो विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली वेब सीरीज और फिल्मों की खासियत है. यहाँ प्रयोग करने की गुंजाइश हमेशा रहती है.
कई प्रयोगशील फिल्मकार सिनेमाघरों के बदले ओटीटी को तरजीह दे रहे हैं. हाल ही में यशवर्धन मिश्रा की नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘कटहल’ इसका उदाहरण है. ‘कटहल’ और ‘दहाड़’ में हम पुलिस अधिकारी के रूप में दलित स्त्री की एक सशक्त छवि देखते हैं जो इसे विशिष्ट बनाता है. हिंदी सिनेमा में ऐसी छवि दुर्लभ है. कटहल हास्य-व्यंग्य के सहारे सामाजिक मुद्दों पर कुशलता से टिप्पणी करती है.
वेब सीरीज ने सिने जगत को कुछ बेहतरीन कलाकार भी दिए हैं. 'जुबली' में अपारशक्ति खुराना, वामिका गब्बी, सिद्धांत गुप्ता की खूब तारीफ हो रही है, वहीं ‘दहाड़’ में विजय वर्मा, गुलशन देवैया ने एक बार फिर अपनी छाप छोड़ी है. यही बात ‘सास, बहु और फ्लेमिंगो’ के राधिका मदन, ईशा तलवार जैसे अदाकारों के बारे में भी कहीं जा सकती है.
जहाँ ‘जुबली’ सीरीज के केंद्र में बाम्बे के फिल्म स्टूडियो और उससे जुड़े कलाकारों की जिंदगी है, वहीं ‘दहाड़’ एक ‘क्राइम थ्रिलर’ है जिसका ताना-बाना भारतीय समाज में मौजूद जाति और पितृसत्ता के इर्द-गिर्द बुना गया है. नशे के व्यापार को आधार बनाती ‘सास, बहु और फ्लेमिंगो’ में स्त्री किरदारों की प्रधानता है. इन सीरीज की खास बात विषय-वस्तु में नएपन के साथ प्रोडक्शन की गुणवत्ता भी है.
तकनीक क्रांति के इस दौर में मनोरंजन की दुनिया में सामग्री के उत्पादन और उपभोग के तरीकों में काफी बदलाव आया है. बॉलीवुड और सिनेमाघरों को ओटीटी प्लेटफॉर्म से चुनौती मिल रही है. निस्संदेह, सिनेमा देखने का आनंद बड़े परदे पर सिनेमाघरों में ही है, जिसे शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण अभिनीत ‘पठान’ फिल्म ने एक बार फिर से साबित किया था, लेकिन साल में दो-चार बॉक्स ऑफिस पर सफल फिल्में बॉलीवुड के कारोबार के लिए सुखद नहीं कही जा सकती. सवाल है कि क्या ओटीटी की बढ़त से आने वाले वर्षों में मल्टीप्लेक्स सिनेमा घरों पर ग्रहण लग जाएगा या बॉलीवुड में सुधार की गुंजाइश बची है?
(नेटवर्क 18 हिंदी के लिए)
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