चर्चित अदाकार जोहरा सहगल ने भारतीय जन नाट्य संघ (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन) के शुरुआती दिनों को याद करते हुए लिखा है कि हर एक कलाकार जो बंबई (मुंबई) में 1940 और 1950 के बीच रह रहा था, वह किसी न किसी रूप में इप्टा से जुड़ा था. 25 मई 1943 को बंबई के मारवाड़ी विद्यालय हॉल में इप्टा की शुरुआत हुई. गीत-संगीत, नृत्य, नाटक के जरिए मौजूदा ब्रिटिश साम्राज्यवादी हुकूमत और फासीवाद से लड़ने के लिए इप्टा का गठन किया गया था, जिसके केंद्र में मेहनतकश जनता की संस्कृति थी. इस ‘जन संस्कृति’ में देशज कला रूपों और लोक संस्कृति को तरजीह दी गई. जाहिर है, इप्टा के नाटकों में गीत-संगीत हमेशा से रहा. प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े साहित्यकारों और वामपंथी बुद्धिजीवियों की इसमें बड़ी भूमिका थी. फ्रांस के चर्चित लेखक, नाटककार रोम्यां रोलां की ‘द पीपुल्स थिएटर' (1903) किताब से इप्टा ने अपना नाम लिया और नामकरण का श्रेय प्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा को जाता है. जनवादी थिएटर की दिशा में इप्टा ने क्रांतिकारी पहल की. बंगाल के अकाल (1942) की पृष्ठभूमि में लिखा नाटक ‘नबान्न’ (निर्देशक शंभु मित्रा), ‘जुबैदा’ (निर्देशक बलराज साहनी) की चर्चा आज भी होती है.
पिछले दिनों इप्टा के अस्सी साल पूरे होने पर मैंने चर्चित फिल्मकार, नाट्यकर्मी और इप्टा के संरक्षक 92 वर्षीय एम एस सथ्यू ने जब बात किया तब उन्होंने कहा कि ‘इप्टा देश में एमेच्योर थिएटर का एकमात्र ऐसा समूह है जिसने अस्सी साल पूरे किए हैं. एक आंदोलन और थिएटर समूह के रूप में किसी संगठन के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है.’ एक दौर में देश के विभिन्न राज्यों में हजारों सदस्य इप्टा से जुड़े थे. आजादी के बाद 60 के दशक में यह आंदोलन कमजोर पड़ गया. राष्ट्रीय स्तर पर एक बिखराव दिखा हालांकि राज्य स्तर पर विभिन्न इकाई काम करती रही. इसी दशक में वाम राजनीतिक दलों में हुए विभाजन का असर इप्टा पर भी पड़ा.
कई नाट्य संगठन हालांकि इससे प्रेरित रहे हैं. इप्टा जैसे राजनीतिक-सांस्कृतिक संगठन की यह ऐतिहासिक भूमिका है. जुहू थिएटर आर्ट (बलराज साहनी, बंबई), नटमंडल (दीना पाठक, अहमदाबाद), शीला भट्ट (दिल्ली आर्ट थिएटर) कुछ ऐसे ही नाम हैं. साथ ही इप्टा के सदस्य रहे सफदर हाशमी की संस्था जन नाट्य मंच (1973) इप्टा से ही निकली, जिसने पचास साल पूरे किए हैं. आज नुक्कड़ नाटकों के लिए ‘जनम’ पर्याय बन चुका है. इसकी पहल इप्टा ने की थी, जैसा कि एक बातचीत में ख्यात रंगकर्मी और जनम की अध्यक्ष मलयश्री हाश्मी ने पिछले साल मुझे कहा था: “इप्टा के शुरुआती दिनों (1943-44) में खास तौर पर बंबई में कामगारों के संघर्ष और सांप्रदायिक दंगे हुए थे. उस दौरान छोटे-छोटे नाटक, बिना विधिवत स्क्रिप्ट के, गली-चौराहे पर इप्टा से जुड़े कलाकार करते थे. इसकी अवधि दस-पंद्रह मिनट से ज्यादा नहीं होती थी. इसे मैं नुक्कड़ नाटक का प्रारूप समझती हूँ.” आम लोगों के बीच इप्टा अपने नाटकों को लेकर गया. जनता में राजनीतिक-सांस्कृतिक क्रांतिकारी चेतना का संचार, सामाजिक न्याय और मानव कल्याण घोषित उद्देश्य था.
प्रसंगवश, सथ्यू ने वर्ष 1973 में देश विभाजन को लेकर ‘गर्म हवा’ फिल्म बनाई जो आज भी अपनी संवेदनशीलता और कलाकारों की अदाकारी को लेकर याद की जाती है. उल्लेखनीय है कि इस फिल्म में इप्टा से जुड़े रहे बलराज साहनी, कैफी आज़मी, इस्मत चुगताई, शौकत आजमी आदि की प्रमुख भूमिका थी. बलराज साहनी ने इप्टा के दिनों को याद करते हुए ‘मेरी फिल्मी आत्मकथा (1974)’ में लिखा है: “और इस तरह अचानक ही जिंदगी का एक ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसकी छाप मेरे जीवन पर अमिट है. आज भी मैं अपने आपको इप्टा का कलाकार कहने में गौरव महसूस करता हूँ.” नया थिएटर (1959) के संस्थापक हबीब तनवीर का यह जन्मशती वर्ष है, इप्टा से शुरुआती दौर में वे भी जुड़े हुए थे.
नाटकों के अतिरिक्त वर्ष 1946 में धरती के लाल (के ए अब्बास) और नीचा नगर (चेतन आनंद) फिल्म के निर्माण में इप्टा की महत्वपूर्ण भूमिका थी. दोनों ही फिल्मों से इप्टा के कई सदस्य जुड़े थे. साहनी ने विस्तार से अपनी आत्मकथा में इन फिल्मों के निर्माण की चर्चा की है. भारतीय सिनेमा में इन फिल्मों ने एक ऐसी नव-यथार्थवादी धारा की शुरुआत की जिसकी धमक बाद के दशक में देश-दुनिया में सुनी गई. दोनों ही फिल्मों में संगीत सितार वादक रविशंकर ने दिया था, जो खुद इप्टा से जुड़े थे. इसी तरह ऋत्विक घटक और मृणाल सेन भी इप्टा से संबद्ध थे.
सथ्यू कहते हैं कि ‘आज के दौर में थिएटर ग्रुप को चलाना आसान काम नहीं है. टेलीविजन, सिनेमा में दस तरह के प्रलोभन और पैसा है. हालांकि कुछ लोग अभी भी नाटक को लेकर समर्पित हैं. इस तरह के काम को लेकर युवाओं में जुनून है.’ ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि इप्टा सौ वर्ष पूरा करेगा.
आज देश में सांप्रदायिकता और अधिनायकवादी सत्ता अपने उरूज पर है. ऐसे में इप्टा और ऐसे संगठनों की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है. इप्टा की इकाई विभिन्न राज्यों-- बिहार, असम, महाराष्ट्र, केरल आदि में सक्रिय है. पर जैसा कि सथ्यू कहते हैं, सवाल है कि नए सदस्यों को संगठन से कैसे जोड़ा जाए!
(नेटवर्क 18 हिंदी के लिए)
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