Sunday, March 10, 2024

कठपुतली कला में रचा संसार


 पिछले दिनों दिल्ली और चंडीगढ़ में इशारा अंतरराष्ट्रीय कठपुतली नाट्य समारोह का आयोजन किया गया. नाटक के अंतिम दिन दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में दादी पुदुमजी अपनी नई प्रस्तुति ‘बी योरसेल्फ’ लेकर मौजूद थे. क्रिश्चियन एंडरसन की बहुचर्चित कृति ‘द अग्ली डकलिंग’ पर आधारित यह कठपुतली नाटक इस अर्थ में विशिष्ट था कि निर्देशक ने पशु-पक्षियों (कठपुतलियों) को देश के विभिन्न हिस्सों के वस्त्रों मसलन इकत कलमकारी, सिल्क आदि से सजाया था. बुनकरों के विभिन्न रंगों में भारतीय संस्कृति की विविधता मंच पर दिखाई पड़ रही थी. युवा कलाकारों ने अपने अभिनय से इस नाटक को रोचक और मनोरंजक बना दिया.

बच्चों की इस कहानी की सीख बड़ों के लिए भी थी कि हर कोई अपने आप में विशिष्ट होता है और उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. इस नाटक में हालांकि समकालीन समय और समाज की प्रतिध्वनियाँ भी थीं. आश्चर्य नहीं कि दर्शकों में विभिन्न आयु वर्ग के लोग शामिल थे.
इशारा ट्रस्ट के तहत कठपुतली कला को समर्पित यह 20वाँ समारोह था, जिसके केंद्र में दादी पुदुमजी रहे हैं. पिछले करीब चालीस सालों से कठपुतली कला से जुड़े और पद्मश्री से सम्मानित दादी पदुमजी बातचीत में कहते हैं कि ‘हमने इस समारोह को बहुत छोटे से स्तर पर शुरु किया था, पर धीर-धीरे इसका विस्तार अंतरराष्ट्रीय फलक तक होता गया’. वे जोड़ते हैं कि टिकट से मिली राशि और स्कूलों के सहयोग से यह संभव होता रहा है. साथ ही आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि क्यों उन्हें शो के लिए ‘स्पांसर’ नहीं मिलते.
इसमें कोई संदेह नहीं कि इन वर्षों में इशारा ने देश-विदेश की कठपुतली कला से जुड़े कलाकारो के लिए एक मंच प्रदान किया है. इस बार भी भारत समेत ब्राजील, फ्रांस, कोरिया, रूस, ताइवान, अमेरिका, तुर्की और श्रीलंका के कलाकार समारोह में हिस्सा ले रहे थे. कार्यक्रम में मुझे ग्रीस से आई कुछ महिला कलाकार मिली जो कठपुतली कला के वर्कशॉप में भाग लेने दिल्ली आईं हुई थी. इस समारोह में मौखिक और गैर-मौखिक दोनों तरह की प्रस्तुतियों में विभिन्न विषयों मसलन, प्रेम, मानवता, विविधता के साथ इतिहास और विभिन्न संस्कृतियों का समावेश था.
देश में कठपुतली का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह की कठपुतली कला का चलन अभी भी बना हुआ है, हालांकि वर्तमान में टेलीविजन और सिनेमा के विस्तार ने कला के इस रूप को लोगों से दूर कर दिया है. फिर भी देश के विभिन्न कोनों में युवा कलाकार अपनी प्रस्तुतियों को लेकर गाहे-बगाहे उपस्थित होते रहते हैं. अनुरुपा रॉय एक ऐसी ही कलाकार है जिन्हें काफी प्रतिष्ठा प्राप्त है. वे अपनी संस्था ‘कठकथा’ के माध्यम से देश भर में प्रस्तुतियों से दर्शकों का मनोरंजन करती रही है. इशारा के प्रोडक्शन की तरह ही अपनी प्रस्तुतियों में वे मल्टी-मीडिया का इस्तेमाल करती हैं.
बहरहाल, यह पूछने पर कि वे इस कला का क्या भविष्य देखते हैं, दादी पुदुमजी कहते हैं कि ‘जो अन्य कलाओं का भविष्य है वही इस कला का भी है. आपको अपना भविष्य खुद बनाना पड़ता है. कलाकारों को नई प्रस्तुतियाँ के साथ आगे आना होगा. उन्हें वर्कशॉप करना होगा.’

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