पिछले साल नीरज कुमार मिश्र निर्देशित मैथिली फिल्म ‘समानांतर’ को मैथिली में ‘बेस्ट फिल्म’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया. उल्लेखनीय है कि मैथिली सिनेमा के पचास वर्षों के इतिहास में महज दो फिल्मों को ही यह सम्मान मिला है. इससे पहले वर्ष 2016 में ‘मिथिला मखान’ को मैथिली भाषा में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.
पिछले दिनों दिल्ली के हैबिटेट फिल्म समारोह में ‘समानांतर’ फिल्म का प्रदर्शन किया गया. भले ही इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हो, यह फिल्म अभी तक आम लोगों के लिए प्रदर्शित नहीं हुई है. ‘मिथिला मखान’ को भी चार साल के बाद निर्देशक नितिन चंद्रा ने अपने निजी वेबसाइट पर रिलीज किया था.
इस बीच मैथिली में बनी ‘गामक घर’, ‘धुइन’ जैसी फिल्मों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहा गया और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर इसे रिलीज भी किया गया. यही बात हिंदी में बनी लेकिन मैथिली समाज को घेरे में लेती पार्थ सौरभ की फिल्म ‘पोखर के दुनू पार’ के बारे में भी कही जा सकती है. बहरहाल, ये फिल्में जहां बेरोजगारी, पलायन, जाति से बंटे समाज में प्रेम जैसे मुद्दों को चित्रित करती हैं, वहीं ‘समानांतर’ की दुनिया में हिंसा और पारलौकिक तत्व हैं. प्रसंगवश, पिछले साल रिलीज हुई नितिन चंद्रा की फिल्म ‘जैक्सन हॉल्ट’ में भी हिंसा कहानी के मूल में था. यह देखना सुखद है कि हाल के वर्षों में मैथिली सिनेमा के विषय-वस्तु में विस्तार आया है.
इस फिल्म में चार कहानियों को एक सूत्र में पिरोया गया है. ये चारों कहानियाँ सहरसा के इर्द-गिर्द बसी है. हर कहानी में हिंसा का तत्व है, पर सामाजिक विसंगतियों के समाधान के लिए लेखक-निर्देशक ने एक समानांतर दुनिया रची है. इस दुनिया में राज्य सत्ता, मसलन पुलिस और न्यायालय नहीं दिखते हैं. ऐसे में फिल्म महज एक फंतासी बन कर रह जाती है. एक कहानी में बकायदा ‘भूत’ के रहस्य पर चर्चा है. ऐसा लगता है कि सामाजिक विचलन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को सजा भी यही भूत देता है!
इस फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद जब मैंने निर्देशक से इस बाबत सवाल किया तो उनका कहना था कि ‘कर्म फल के लिए उन्होंने ‘सुपरनेचुरल’ तत्वों का इस्तेमाल किया है.’ यूँ तो फिल्में किसी भी विषय-वस्तु को परदे पर चित्रित कर सकती है, पर जब कहानियाँ मिथिला जैसे इलाके में अवस्थित हो तब आप ‘कर्म फल’ के नाम पर सामाजिक यथार्थ से मुंह नहीं चुरा सकते. यदि आधुनिक समाज में हिंसा है जो उसकी परिणति और सजा भी आधुनिक मानदंडों के अनुरूप ही होगी. जैसा कि ‘जैक्सन हॉल्ट’ फिल्म में हमने देखा था. इस फिल्म में जहाँ एनएसडी से प्रशिक्षित कलाकार थे ,वहीं ‘समानांतर’ फिल्म में अधिकांश कलाकार ‘एमेच्योर’ है.
मिथिला के भू-भाग को सुंदरता और सादगी से दिखाने में निर्देशक कामयाब रहे हैं. साथ ही इस फिल्म में गाँव-देहात में मौजूद विभिन्न ध्वनियों की बारीकियों को भी खूबसूरती से पकड़ा गया है. आश्चर्य नहीं कि ध्वनि संयोजन के लिए ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित रेसुल पोकुट्टी का नाम भी फिल्म के पोस्टर पर दिखता है. उन्होंने ही इस फिल्म को प्रस्तुत किया है.
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