Wednesday, September 18, 2024

बेखुदी में खोया शहर: नया संस्करण


शुभनीत कौशिक: लेखक-पत्रकार अरविंद दास की यह किताब लेखोंटिप्पणियों का संकलन है.  कुछ लेख दुनिया के नामचीन शहरों के बारे में हैंतो कुछ मीडिया के बदलते हुए परिवेशकला-संस्कृति के विविध पक्षों के बारे में. कुछ लेख संस्मरणात्मक हैंतो कुछ रिपोर्ताज की शैली में. ख़ुद लेखक लिखते हैं कि ‘मेरे लिए लेख-टिप्पणी-ब्लॉग लिखने का उद्देश्य छोटे-छोटे वाक्यों मेंसहज और कम शब्दों में एक विचार व्यक्त करनाएक चित्र खींचना और एक सवाल उठाना रहा है.’

शहरों के बारे में लिखे लेख दिलचस्प और पठनीय हैं. यहाँ शहरों के साथ नदी भी हमजोली की तरह मौजूद है. वह चाहे हाइडेलबर्ग और नेकर होंया लंदन और टेम्स या फिर पेरिस और सेन. बक़ौल लेखक, ‘यूरोप की नदियाँ शहरों से इस कदर गूँथी हुई हैं कि आप उसे शहर की संस्कृति से अलगा नहीं सकते.’ यहाँ तक कि सेन नदी तो लेखक को ‘ढीठ’ भी जान पड़ती है, ‘जो कल-कल करती हुई बेबात हँसती रहती है.’ दिवंगत चित्रकार और लेखक अमृतलाल वेगड़ अपनी अप्रतिम कृति ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ में नर्मदा के बारे में कुछ ऐसा ही विचार रखते हैं.

टेम्स के प्रति अपना हक़ अदा करते लंदनवासियों को देख लेखक को भारतीय नदियों की याद हो आती है. और फिर यह सवाल कि ‘हमने अपने नदियों को देवी-देवता मानकर उन्हें पूज्य बना दिया पर प्यार और सम्मान देना कहाँ सीखा!’

लेखक मीडिया के चरित्र में आते बदलाव पर भी अपनी राय बेबाकी से रखते हैं. आज के दौर में ‘कई बार पत्रकार राजनीतिक पार्टियों के पैरोकार बन जाते हैं और उनके एजेंडे को ही मीडिया का एजेंडा मान लेते हैं.’  वे मीडिया के साथ-साथ सिनेमा और हिंदुस्तानी संगीत के बारे में भी गहराई से लिखते हैं. ‘फिल्मी जुनून के किस्से’ हिंदुस्तानी सिनेमा के कुछ अनछुए पहलुओं से हमें रू-ब-रू कराते हैं. वह चाहे मणि कौल और कमल स्वरूप के सिनेमा पर लिखी टिप्पणियाँ हों या एफ़टीआईआई के मार्फत ऋत्विक घटक के योगदान पर लिखे लेख.

इन लेखों में कहीं दरभंगा घराने और विंध्यावासिनी देवी के संगीत की चर्चा हैतो कहीं मिथिला पेंटिंग और कोहबर की बात करते महासुंदरी देवीगंगा देवीसीता देवीजगदंबा देवी को भी बड़ी ही शिद्दत के साथ याद किया गया है. विद्यापति इन लेखों में आपको जगह-जगह मिलेंगे और अपने बहुरंगी तेवरों में मैथिल समाज भी. एक लेख राजस्थान के अनूठे गाँव तिलोनिया की यात्रा और बंकर रॉय के योगदान बारे में भी हैजिसे पढ़ते हुए मुझे बरसों पहले पढ़ा हुआ भीष्म साहनी का वह लेख याद हो आयाजिसका शीर्षक ही था ‘राजस्थान के एक गाँव की तीर्थ-यात्रा’.

तिब्बत पर लिखे लेख में लेखक जहां तिब्बती समुदाय के निर्वासन की त्रासदी व पीड़ा को शब्द देते हैंवहीं ‘जर्द पत्तों के वन’ में विचरते हुए कश्मीर के युवाओं और आम लोगों के दर्द को एक ऑटोवाले के इन शब्दों में दर्ज करते हैं : ‘साहबये चिनार का पेड़ आप देख रहे हैं. जितने पत्ते इस पेड़ में लगे हैं और जितने नीचे बिखरे हैंउतनी ही दर्द की दास्तान आपको यहाँ मिलेंगी.’

किताब: बेखुदी में खोया शहर: एक पत्रकार के नोट्स (चतुर्थ संस्करण)

लेखक: अरविंद दास

प्रकाशक: अनुज्ञा बुक्स

मूल्य: 299 रूपए 




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