नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई विक्रमादित्य मोटवानी की फिल्म सीटीआरएल (कंट्रोल) चर्चा में है. यह फिल्म सोशल मीडिया, कृत्रिम मेधा (एआइ) और दो युवा सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर प्रेमियों के संबंधों के इर्द-गिर्द बुनी गई है. इस लिहाज से यह फिल्म समकालीन यथार्थ से रू-ब-रू है.
इससे पहले भी फिल्म, डॉक्यूमेंट्री और चर्चित किताब ‘द एज ऑफ सर्विलांस कैपिटलिज्म’ में हमने खुफिया पूंजीवाद, डेटा और हमारे आचार-व्यवहार की पड़ताल को देखा-पढ़ा है. फिल्म ‘खुफिया पूंजीवाद’ के हवाले से दिखाती है कि किस तरह सोशल मीडिया, एआइ, डेटा आदि हमारे आचार-व्यवहार को प्रभावित कर रहा है. किस तरह आपसी रिश्ते, युवाओं के मनोभाव और प्रेम संबंध इससे प्रभावित होने लगे हैं.
नेल्ला (अनन्या पांडे) एआइ के किरदार से कहती है-टेक कंट्रोल ऑफ माई लाइफ! यहाँ निजी गोपनीयता का कोई अर्थ नहीं है और नशे की लत की तरह हम खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं. अपनी सारी जानकारी किसी तकनीक के हवाले कर देते हैं. पर रास्ता क्या है? इसका जवाब फिल्म दर्शकों पर छोड़ देती है.
फिल्म देखते हुए जिस बात पर मेरी नजर पड़ी वह थी हिंदी फिल्म में ‘एआइ’ के इस्तेमाल की पहल. असल में एआई कंप्यूटर के माध्यम से हमारे व्यवहार और मनोभावों को मिमिक करता है. एक एआइ चरित्र ऐलन (स्वर अपारशक्ति खुराना का है), कंट्रोल ऐप के माध्यम से नेल्ला का तब हमसफर और हमनवा बनता है जब उसका ब्रेकअप अपने पार्टनर जो (विहान समत) के साथ होता है. वह खिलंदड़ा है और अनन्या के साथ हंसी-मजाक करता है.
सवाल उठता है कि क्या आभासी दुनिया का यह हमसफर उसके यथार्थ से वाबस्ता है? आभासी दुनिया में नेल्ला की विगत स्मृतियों से छुटकारा दिलाने में वह सहयोग करता है. पर क्या वह नेल्ला के आगामी जीवन को बुनने में भी सहयोगी है या वह बाजार का मात्र उपक्रम है जो हमारी कमजोरियों, इच्छाओं का महज दोहन करता है? यहाँ सोशल मीडिया के दौर में शब्दों, चित्रों के माध्यम से स्मृतियों के निर्माण और उसे सहेजने और मिटाने की दुष्कर प्रक्रिया से भी हमारा मुखामुखम होता है. बाद में फिल्म एक दिलचस्प मोड़ लेती है और नेल्ला एक दुष्चक्र में फंसती चली जाती है.
बहरहाल, कृत्रिम मेधा में अनंत संभावनाएँ हैं. मीडिया के न्यूजरूम में भी कृत्रिम मेधा की पहल बढ़ी है. अनुवाद करने, तस्वीर बनाने, संपादन करने, ऑडियो से टेक्स्ट में ट्रांसक्राइब करने, शब्द को ध्वनि में बदलने के साथ-साथ एआइ टेलीविजन एंकर की भूमिका में भी आ चुका है. एआइ के इस अवतार से आने वाले समय में मीडिया का चरित्र किस रूप में बदलेगा इसके बारे में मुकम्मल तौर पर अभी कुछ नहीं कहा सकता पर इतना तय है कि पिछली सदी में हुए तकनीकी बदलावों के बरक्स एआइ का असर आने वाले समय में मीडिया पर बहुआयामी पड़ेगा.
सिनेमा भी इसमें शामिल है. एक बात नोट की जानी चाहिए कि तकनीक के अन्य रूपों की तरह ही भाषा के माध्यम के रूप में कृत्रिम मेधा के क्षेत्र में भी अंग्रेजी का ही वर्चस्व है. एक लोकतांत्रिक समाज के लिए अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में एआइ के प्रयोग और शोध की जरूरत है.
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