कहते हैं मुंबई को नींद नहीं आती. आए भी कैसे? हर दिन सैकड़ों लोग अपनी किस्मत आजमाने माया नगरी आते हैं. उनके ख्वाब मुंबई को जगाए रखते हैं, उनके संघर्ष सोने नहीं देते.
पिछले दिनों एक दोपहर वर्सोवा के नजदीक आराम नगर में बिताने का मौका मिला. यहाँ पर बीसियों कास्टिंग कंपनी है जहाँ अदाकारों की भीड़ रहती है. आँखों में सपने लिए, अदाकार, लेखक और भविष्य के फिल्म निर्देशक मिल जाते हैं. पिछले दशक में बॉलीवुड में यह नगर ऐसा अड्डा बन कर उभरा है जहाँ सैकड़ों युवा रोज आते-जाते हैं. कुछ दशक पहले जहाँ प्रोड्यूसरों के ऑफिस में अदाकार अपना ‘पोर्टफोलियो’ लेकर पहुँचते थे, वहीं अब कास्टिंग डायरेक्टर के यहाँ लंबी लाइन लगी रहती है.
दिल्ली के मुकेश छाबड़ा का नाम कास्टिंग डायरेक्टर में आज सबसे ऊपर है. आराम नगर में स्थित उनके ऑफिस के बाहर युवकों की लंबी लाइन लगी थी. उनमें ही एक 22 साल के युवा नमन भारद्वाज भी थे. नमन दिल्ली में थिएटर से जुड़े रहे और छह महीने पहले ही मुंबई आए हैं. वह कहते हैं ‘यहाँ पर आपको कैमरे के सामने अपना नाम, उम्र और एक्टिंग का अनुभव बताना होता है. यदि आपके लायक कोई काम किसी फिल्म या सीरीज में हो तो फिर कास्टिंग कंपनी आपको कॉन्टेक्ट करती है. इनके पास बहुत बड़ा डेटाबेस है.’ न सिर्फ संघर्षरत युवा बल्कि कई जाने-पहचाने नाम भी यहाँ मिल जाते हैं. ‘फैमिली मैन’ सीरीज से चर्चित हुए कुशल अभिनेता शारिब हाशमी भी यहाँ दिख गए.
आराम नगर में थिएटर के भी कई मंच उपलब्ध हैं, जहाँ पर आए दिन स्थापित और एमेच्योर थिएटर ग्रुप के नाटकों का मंचन होता रहता है. बहरहाल, जब मैंने नमन से पूछा कि क्या यहाँ पर आप किसी एक्टिंग वर्कशॉप या थिएटर से भी जुड़े हैं? उन्होंने कहा कि ‘एक्टर तो मैं हूं, पर काम नहीं है.' उन्होंने कहा कि यहां पर आपको 'मिडिल क्लास के स्ट्रगलर्स मिलेंगे, पृथ्वी थिएटर के आस-पास जो घूमते फिरते आपको मिलेंगे वे थोड़े अपर क्लास के होते हैं.’ शाम में जब पृथ्वी थिएटर फेस्टिवल में हम एक नाटक देखने गए तो नमन का कहा सच लगा.
ऐसा नहीं कि आराम नगर में सिर्फ कास्टिंग कंपनियां ही हैं. यहाँ पर कई नामी निर्माता-निर्देशकों के प्रोडक्शन हाउस भी रहे हैं. पर छाबड़ा के एक सहयोगी ने बताया कि ‘अब प्रोडक्शन हाउस कहाँ अभिनेता को काम दे पाती है, जो भी काम मिलता है कास्टिंग कंपनियों के माध्यम से ही उन्हें मिल रहा है.’
ऑफिस के केबिन के बाहर छाबड़ा का एक कथन मोटे अक्षरों में लिखा दिखता है: ‘दुनिया बदल गई है. अब हम हीरो या कद-काठी, डील-डौल से आगे बढ़ चुके हैं.’ यह सच है कि पिछले दशक में ओटीटी के उभार ने अदाकारों के लिए एक बड़ा स्पेस मुहैया कराया है. खुद छाबड़ा की पहचान अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में कास्टिंग डायरेक्टर से बनी. इस फिल्म ने कई कलाकारों को बॉलीवुड की दुनिया में स्थापित कर दिया, जो वर्षों से बॉलीवुड में समंदर के थपेड़े खा रहे थे.
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