बिहार
में पठन-पाठन की प्राचीन संस्कृति रही है. जहां मिथिला वैदिक सभ्यता का केंद्र था, वहीं मगध बौद्ध सभ्यता का. लेकिन गुणात्मक
रूप से शिक्षा का प्रसार भले हुआ हो, यह इलाका शिक्षा के
क्षेत्र में आजादी के बाद भी पिछड़ा रहा. आधुनिक काल में शिक्षा का लोकतंत्रीकरण
हुआ. इस संबंध में सार्वजनिक पुस्तकालयों की क्या भूमिका रही, यह शोध का विषय है.
मिथिला
के मधुबनी जिले में स्थित गांव, बेलारही, में एक पुस्तकालय है- मिथिला मातृ-मंदिर.
पिछले दिनों जब गांव गया तो यह देखकर खुशी हुई कि पिछले चार साल में करीब डेढ़ लाख
रुपये की किताब की आमद हुई है. यह सांसद-विधायक विकास निधि के योगदान से संभव हुआ.
हालांकि, पुस्तकालय में किताबों के रख-रखाव की व्यवस्था नहीं
थी. बैठने के लिए मेज-कुर्सियां भी नहीं थीं. अंधेरे कमरे में किताबों की गंध
आकर्षित करने की बजाय उनसे दूरी बढ़ा रही थी.
नब्बे
के दशक में जब बिहार के गांवों से मध्यवर्ग के बच्चे पढ़ने-लिखने के लिए दूसरे
राज्यों में पलायन करने लगे, तबसे पुस्तकालय की स्थिति बदहाल होने लगी. साथ ही सरकार और नागरिक समाज की
बेरुखी का भी इसमें योगदान है.
बीसवीं
सदी के शुरुआती दशक में, आजादी के आंदोलन के दौरान, मिथिला के गांवों में
सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना हुई थी. मेरे गांव का पुस्तकालय 80 साल पुराना है.
मां
ने बताया कि प्रेमचंद, हरिमोहन झा, फणीश्वरनाथ रेणु की किताबें उन्होंने
इसी पुस्तकालय से मंगवाकर पढ़ी थी. कई संग्रहणीय पुस्तकें वहां मौजूद थीं, पर किसी पेशेवर के हाथों में नहीं होने के कारण दुर्लभ किताबें गायब होती
गयीं.
इस
बीच किताबों की खरीद में कोई दृष्टि नहीं दिखती. सरकारी खरीद में पाठकों की रुचि
का ख्याल नहीं दिखता. बच्चों के लिए कोई किताब नहीं है, जबकि गांव में प्राइमरी और माध्यमिक
विद्यालय है. विचारधारा विशेष की किताबों को पुस्तकालय पहुंचाने पर जोर है.
आश्चर्य नहीं कि ‘दीन दयाल उपाध्याय संपूर्ण वांग्मय’
के दर्शन हुए.
मिथिला मातृ मंदिर पुस्तकालय की एक किताब |
चर्चित चित्रकार और कला मर्मज्ञ उपेंद्र महारथी के बनाये चित्र इस संग्रह की एक उपलब्धि है. प्रसंगवश रामलोचन शरण पुस्तक भंडार के संस्थापक थे. उन्होंने बच्चों के लिए चर्चित पत्रिका ‘बालक’ का संपादन किया था. उनकी पुस्तक मनोहर पोथी आज भी बच्चों के बीच लोकप्रिय है.
मोबाइल और तकनीक के दौर में
किताबों के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है. यदि इन पुस्तकालयों को नयी दृष्टि के
साथ पेशेवर ढंग से चलाया जाये, तो सूरत बदल सकती है.
(प्रभात खबर के कुछ अलग कॉलम के तहत 4 जुलाई 2018 को प्रकाशित)
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