शायद ही कोई इससे इंकार करे कि हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों की हिंदी मीडिया में बहुत कम चर्चा होती हैं. सवाल है कि क्यों हम इन्हें क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों के खाते में डाल कर छुट्टी पा लेते हैं, जबकि सिनेमा के विकास में विभिन्न भाषा-भाषी समाज की ऐतिहासिक भूमिका रही है.
सच तो यह है कि भारत में पचास भाषाओं में फिल्मों का निर्माण होता है. करीब पचासी प्रतिशत फिल्में बॉलीवुड के बाहर बनती हैं. तकनीक के विस्तार के साथ आए ओटीटी प्लेटफॉर्म के मार्फत क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को भी देश-विदेश के स्तर पर आज दर्शक देख व सराह रहे हैं. ऐसी फिल्में हिंदी क्षेत्र में पहले महज फिल्म समारोहों तक ही सीमित रहती थी. इसका सबसे बड़ा उदाहरण पिछले दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई मलयालम फिल्में हैं.
महामारी के दौरान मलयालम में रिलीज हुई ‘द ग्रेट इंडियन किचन’, ‘जोजी’, ‘आरकारियम’, ‘मालिक’ आदि मलयालम फिल्मों की चर्चा देश-विदेश में हो रही है. लॉकडाउन के बीच मध्यवर्गीय दर्शकों ने इन फिल्मों को हाथों-हाथ लिया. ‘जोजी’ और ‘आरकारियम’ फिल्म में तो ‘लॉकडाउन’ और ‘मास्क’ के रूपक का कथ्य में खूबसूरती से निरूपण भी हुआ है. पिछले दिनों ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ के निर्देशक जियो बेबी ने एक बातचीत के दौरान मुझे बताया कि इस फिल्म को अमेजन और नेटफ्लिक्स ने पहले अस्वीकार कर दिया था. उन्होंने इसे ‘नीस्ट्रीम’ पर रिलीज किया था. जब फिल्म की चर्चा होने लगी, अच्छे रिव्यू आने लगे तब इसे अमेजन प्राइम ने रिलीज किया. इसी तरह ‘आरकारियम’ फिल्म पहले सिनेमा हॉल में रिलीज हुई थी, पर महामारी के दौरान ओटीटी पर फिल्म को व्यापक दर्शक वर्ग मिला. मलयालम सिनेमा की इस नई धारा की चर्चा प्रतिष्ठित विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में भी हो रही है.
सत्तर-अस्सी के दशक में समांतर सिनेमा की धारा को मलयालम फिल्मों के निर्देशक अडूर गोपालकृष्णन, के जी जार्ज, जी अरविंदन, शाजी करुण ने संवृद्ध किया था. उनकी फिल्मों ने मलयालम सिनेमा को देश-दुनिया में स्थापित किया, पर उसके बाद ऐसा लगा कि कथ्य और शैली में मलयालम सिनेमा पिछड़ गई. पिछले एक दशक में बनी मलयालम फिल्मों को देखकर हम कह सकते हैं कि मलयालम सिनेमा में यह एक नए युग की शुरुआत है जहाँ पापुलर और समांतर की रेखा मिट रही है. कम लागत से बनने वाली इन फिल्मों में इन विषय-वस्तु और सहज अभिनय पर जोर है. यही कारण है कि फाहाद फासिल जैसे अभिनेता (कुंबलंगी नाइट्स, जोजी, मालिक) की खूब प्रशंसा हो रही है. महेश नारायणन निर्देशत मालिक इस फिल्म में सुलेमान के ‘एंटी होरी’ के किरदार को जिस खूबसूरती से फासिल ने निभाया है लोग इसकी तुलना ‘गॉड फादर’ और ‘नायकन’ फिल्म से कर रहे हैं. मलयालम में बनने वाली अन्य फिल्मों की तरह यह फिल्म भी केरल के समाज में रची-बसी है. इस फिल्म में राजनीतिक स्वर भी मुखर रूप से व्यक्त हुआ है, जो बॉलीवुड में इन दिनों मुश्किल से सुनाई पड़ता है. उल्लेखनीय है कि इससे पहले महेश नारायणन की फाहाद फासिल और पार्वती थिरूवोथु अभिनीत ‘टेक ऑफ’ (2017) फिल्म ने भी खूब सुर्खियाँ बटोरी थी.
(प्रभात खबर, 25.07.2021)
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