हिंदुस्तान में टेलीविजन न्यूज चैनल के 'स्टार एंकर' फिल्म सितारे से कम लोकप्रिय नहीं हैं. असल में, टीवी के पास महज एक परदा है जिसके मार्फत पिछले दो दशक से ये एंकर रोज हमारे ड्राइंग रूम में हाजिर होते रहे हैं. टेलीविजन के एंकरों की एक खास शैली होती है, जो उन्हें विशिष्ट बनाती है. रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित टेलीविजन के चर्चित पत्रकार-एंकर रवीश कुमार जमीनी और लोक से जुड़े मुद्दों को सहज ढंग से चुटीले अंदाज में पेश करते रहे हैं. सत्ता से ईमानदारी से सवाल पूछना भी इसमें शामिल है. पिछले दिनों देश के एक प्रमुख समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया से उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इस चैनल से वे करीब पच्चीस वर्षों से जुड़े थे. इस्तीफे के बाद सोशल मीडिया पर रवीश के प्रति लोगों का प्रेम उमड़ पड़ा. साथ ही मीडिया और पूंजी के गठजोड़ को लेकर भी आलोचना हुई. यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि भले एक एंकर की भूमिका समाचार चैनल में प्रमुख हो, पर जहाँ ‘स्टार वैल्यू’ से उनका कद बढ़ा वहीं टीवी समाचार उद्योग की निर्भरता भी इन पर बढ़ती चली गई. टीआरपी के पीछे आज जो भागदौड़ दिखती है वह भी इसी से जुड़ी हुई है. एनडीटीवी के पूर्व रिपोर्टर संदीप भूषण ने अपनी किताब ‘द इंडियन न्यूजरूम’ में एनडीटीवी के हवाले से स्टार एंकरों के बारे में विस्तार से लिखा है कि किस तरह इनकी वजह से टीवी उद्योग में आज रिपोर्टर की भूमिका सिमट कर रह गई है. किताब में एनडीटीवी की आलोचना भी शामिल है.
जब हम बीस साल पहले पत्रकारिता का प्रशिक्षण ले रहे थे तब टीवी पत्रकार बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई का जोर था. पिछले दशक में अर्णब गोस्वामी, रवीश कुमार चर्चा में रहे. रवीश अपनी रिपोर्टिंग के लिए जाने गए, लेकिन बाद में वे प्राइम टाइम में ही सिमट कर रह गए. निस्संदेह रिपोर्टर की छवि का उन्हें प्राइम टाइम में लाभ हुआ. वर्ष 2014 में सत्ता बदलने के बाद भी रवीश सत्ता से बेलाग सच कहने के साहस के साथ खड़े रहे. यह हिंदी पत्रकारिता की एक उपलब्धि रही, रवीश उसके अगुआ है.
सोशल मीडिया के कोलाहल के बीच एक बात दबी रह गई, जिसका जिक्र जरूरी है. टेलीविजन मीडिया बड़ी पूंजी की मांग करता है. शुरुआती दौर से मीडिया पूंजीवाद का उपक्रम रहा है. मीडिया पर नजर रखने वाले जानते थे कि एनडीटीवी देर-सबेर कर्ज के बोझ से डूबेगी ही, हालांकि पारदर्शिता की बात करने वाले मीडिया की अर्थव्यवस्था की जानकारी लोगों के सामने कम ही आ पाती है.
मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैक्लुहान ने लिखा है कि ‘माध्यम ही संदेश’ है. पिछले दिनों देश के कई प्रमुख टेलीविजन एंकर टीवी उद्योग से अलग होकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (यूट्यूब चैनल) पर दिखाई देने लगे हैं. करण थापर, बरखा दत्त, पुण्य प्रसून वाजपेयी, अजीत अंजुम, आरफा खानम शेरवानी, अभिसार शर्मा आदि की लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया है, रवीश का. आने वाले समय में यह नया माध्यम लोकतंत्र के लिए क्या संदेश लेकर आता है, यह देखना रोचक होगा.
No comments:
Post a Comment