दक्षिण एशिया में बॉलीवुड का इतना दबदबा है कि अन्य फिल्म उद्योगों की चर्चा नहीं होती. भूटान की फिल्म ‘लुनाना: ए यॉक इन द क्लास रूम’ को 94वें ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. यह अलग बात है कि इसे सफलता नहीं मिली पर कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे सम्मानित किया गया है. इसी तरह पाकिस्तान की फिल्म ‘जॉयलैंड’ को पिछले साल, 95वें ऑस्कर पुरस्कार में, ‘बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म’ के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था. यह फिल्म भी ऑस्कर जीतने में सफल नहीं हुई, पर प्रतिष्ठित कान फिल्म समारोह में इसे ‘उन सर्टेन रिगार्ड’ में प्रदर्शित किया गया जहाँ ज्यूरी पुरस्कार मिला था. इस फिल्म के निर्माताओं में हैदराबाद की अमेरिका में रहने वाली भारतीय अपूर्व गुरु चरण भी शामिल हैं.
भारतीय मीडिया में पाकिस्तान की चर्चा जब भी होती है खबरें आतंकवाद या राजनीतिक उथल-पुथल से ही जुड़ी रहती है. साहित्य, संस्कृति या सिनेमा अमूमन गायब ही रहते आए हैं. फरवरी में पाकिस्तान के चर्चित अदाकार और उर्दू साहित्य को लयात्मक और अपने सस्वर पाठ से चर्चित करने वाले जिया मोहिउद्दीन की जब मौत हुई तब भारतीय मीडिया में उनकी चर्चा बेहद कम हुई जबकि हिंदुस्तान में भी उनके चाहने वाले (खास कर फैज की नज्म पढ़ने की वजह से) बहुत हैं. प्रसंगवश, पाकिस्तान के युवा निर्देशक उमर रियाज की एक डॉक्यूमेंट्री- ‘कोई आशिक किसी महबूब से’ जिया मोहिउद्दीन को लेकर बनाई है, जिसकी काफी चर्चा भी हुई.
बहरहाल, विभिन्न फिल्म समारोह में पाकिस्तानी फिल्म ‘जॉयलैंड’ ने सुर्खियाँ बटोरी लेकिन आम भारतीय दर्शकों के लिए यह फिल्म उपलब्ध नहीं थी. पिछले महीने अमेजन प्राइम (ओटीटी) पर इसे रिलीज किया गया. सैम सादिक ने इसे निर्देशित किया है. फिल्म में सलमान पीर, सरवत गिलानी, रस्ती फारूक और अली जुनैजो सहित ट्रांसजेंडर अभिनेता अलिना खान की प्रमुख भूमिका है.
भले ही यह फिल्म पाकिस्तान में रची-बसी है, लेकिन कहानी भारत समेत दक्षिण एशिया के दर्शकों के लिए जानी-पहचानी है. फिल्म के केंद्र में लाहौर में रहने वाला एक परिवार है. इस परिवार का मुखिया एक विधुर है जिसके दो बेटे और बहुएँ हैं. परिवार को एक पोते की लालसा है. बड़ी बहु की तीन बेटियाँ हैं. छोटा बेटा (हैदर) जो बेरोजगार है उसकी नौकरी एक ‘इरॉटिक थिएटर कंपनी’ में लग जाती है. वहाँ वह एक ट्रांसजेंडर डांसर (बीबा) का सहयोगी डांसर होता है. धीरे-धीरे वह उसकी तरफ वह आकर्षित होता है. घर में छोटे बेटे की बहु (मुमताज) की नौकरी छुड़वा दी जाती है. घुटन और इच्छाओं के दमन से उसका व्यक्तित्व खंडित हो जाता है.
यह फिल्म घर-परिवार के इर्द-गिर्द है, पर किरदारों की इच्छा-आकांक्षा से लिपट कर लैंगिक राजनीति, स्वतंत्रता और पहचान का सवाल उभर कर फिल्म में सामने आता है. चाहे वह घर का मुखिया हो, उसका बेटा हो, बहु हो या थिएटर कंपनी की डांसर बीबा. फिल्म में एक संवाद है-मोहब्बत का अंजाम मौत है! सामंती परिवेश में प्रेम एक दुरूह व्यापार है, बेहद संवेदनशीलता के साथ निर्देशक ने इसे फिल्म में दिखाया है.
यह फिल्म अपने विषय-वस्तु का जिस कुशलता से निर्वाह करती है उसी कुशलता से परिवेश, भावनाओं और तनाव को भी उकेरती है. ‘ट्रांसजेंडर’ की पहचान और अधिकार को लेकर मीडिया में बहस होने लगी है. सिनेमा भी इससे अछूता नहीं है. फिल्म में अलिना खान ने ट्रांसजेंडर डांसर, बीबा की भूमिका विश्वसनीय ढंग से निभाई है. सादिक की शॉर्ट फिल्म डार्लिंग (2019) में उन्होंने अभिनय किया था. 'जॉयलैंड' एक तरह से ‘डार्लिंग’ का विस्तार है. इस वर्ष मई में लाहौर में अलिना खान को ‘मिस ट्रांस पाकिस्तान’ से सम्मानित किया गया.
फिल्म में कोई विलेन नहीं है. पितृसत्ता यहाँ प्रतिपक्ष की भूमिका में है. सवाल बहुत सारे हैं, जवाब कोई नहीं. ऐसे में रास्ता नजर नहीं आता. नाम ‘जॉयलैंड’ है, पर यहाँ खुशी के क्षण रेगिस्तान में पानी की बूंद की तरह हैं- अप्राप्य. इस बोझिल वातावरण को निर्देशक ने सहजता से बुना है. इसमें उन्हें कलाकारों का काफी सहयोग मिला है.
फिल्म के कई दृश्य जेहन में रह जाते हैं. एक ऐसा ही दृश्य फ्लाईओवर पर बीवा का कट-आउट लिए, स्कूटर के पीछे सीट पर बैठे हैदर का है.
निर्देशक ने जबरन अपने विचारों को दर्शकों के ऊपर थोपा नहीं है. न ही फिल्म में किसी तरह का उपदेश या प्रवचन ही दिया गया है, जैसा कि आम तौर पर बॉलीवुड की फिल्मों में हम देखते हैं. फिल्म एक प्रवाह में आगे बढ़ती है. बिंबों के सहारे कई बातें मुखरता से कहीं गई है. युवा निर्देशक सादिक की यह पहली फिल्म है, जहाँ वे संभावनाओं से भरे नज़र आते हैं.
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