‘द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग’ मिलान कुंदेरा (1923-2023) की बहुचर्चित कृति है. उनकी मृत्यु के बाद साहित्य पर टीका-टिप्पणी हुई लेकिन उपन्यास पर इसी नाम से अमेरिकी फिल्मकार फिलिप कॉफमैन के निर्देशन बनी फिल्म (1988) उपेक्षित रही. मूल चेक में लिखा यह उपन्यास (1984) पहले अंग्रेजी में ही छपा था. फिल्म के बाद ही किताब की धूम दुनिया भर में मची थी.
यह उपन्यास दर्शन, इतिहास, राजनीति, मानवीय संबंधों, द्वंदो, अधिनायकवादी सत्ता के दुरुपयोग को 1968 में प्राग स्प्रिंग (चेकोस्लोवाकिया) की पृष्ठभूमि में अद्भुत शिल्प में रचता है. इस बहुस्तरीय किताब के कई अंश को निर्देशक ने नहीं छुआ है. मसलन फिल्म में उपन्यासकार नहीं दिखता है. फिर भी उपन्यास के मूल कथ्य और किरदारों को ‘स्क्रीनप्ले’ में सुरक्षित रखा गया है. उपन्यास से अलग फिल्म एक स्वतंत्र विधा के रूप में हमें प्रभावित करती है. कई दृश्य, किरदारों के प्रभावी अभिनय और संगीत जेहन में टंगे रह जाते हैं.
टॉमास एक कुशल सर्जन है जो प्राग में रहता है. उसके कई स्त्रियों से संबंध है. तेरेजा से मुख्तसर सी मुलाकात के बाद वह शादी कर लेता है. टॉमास के संबंध हालांकि अन्य स्त्रियों से जारी रहते हैं. सबीना एक ऐसी स्वतंत्रचेता पेंटर है जिसके साथ भी टॉमास के अंतरंग रिश्ते हैं. सबीना की सहायता से तेरेजा की नौकरी एक फोटोग्राफर के रूप में लग जाती है. 1968 में जब साम्यवादी सोवियत संघ की सेना टैंकों के साथ प्राग पर धावा बोलती है, तब हम उसी के लेंस से लोमहर्षक दृश्य देखते हैं. फिल्मकार ने दस्तावेजी फुटेज के साथ बेहद खूबसूरती से टैंको के ईद-गिर्द लोगों के विरोध प्रदर्शन को चित्रित किया है. प्राग के निवासी अपने घर-बार छोड़ कर दूसरे देशों में रिफ्यूजी बनने को मजबूर हैं. फिल्म में आए घर, मानवीय अस्तित्व, स्वतंत्रता का सवाल मौजू है. आज जब रूसी सेना यूक्रेन में है, ‘द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग’ फिल्म प्रासंगिक हो उठी है.
उपन्यास की तरह ही फिल्म में टॉमास, तेरेजा, सबीना देश छोड़ कर स्विट्जरलैंड चले जाते हैं. यहाँ सबीना की मुलाकात फ्रांज (प्रोफेसर) से होती है. तेरेजा स्विट्जरलैंड को स्वीकार नहीं कर पाती है और प्राग लौट आती है. सबीना फ्रांज को छोड़ कर अमेरिका चली जाती है. टॉमास को एहसास होता है कि वह तेरेजा के बिना नहीं रह सकता है और फिर पीछे-पीछे प्राग लौट आता है. लेकिन फिर भी उसके संबंध अन्य स्त्रियों के साथ बने रहते हैं. टॉमास (डेनियल डे लेविस), तेरेजा (जूलीएट बिनोचे) और सबीना (लेना ओलेन) के बीच संबंधों के तनाव, अस्तित्व के भारीपन और हल्केपन के द्वंद को बेहद खूबसूरती से फिल्म सामने लाती है.
आम तौर पर साहित्यिक कृतियों पर बनने वाली फिल्मों से उनके रचनाकार खुश नहीं रहते हैं, कुंदेरा अपवाद नहीं थे. पर यदि हम ग्रैबिएल गार्सिया मार्केज़ या सलमान रुश्दी के उपन्यासों पर बनी फिल्मों से इस फिल्म की तुलना करें तो यह फिल्म उपन्यास की ‘देह और आत्मा’ को परदे पर साकार करने में सफल रही है. उपन्यास की तरह ही फिल्म का फलसफा है: ‘हम जीवन एक ही बार जीते हैं, जिसकी तुलना न हम पिछले जीवन से कर सकते हैं न ही इसे आने वाले जीवन में बेहतर बना सकते हैं’,
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