मिथिला चित्र शैली अपने अनोखेपन और बारीकी के लिए देश-दुनिया में
प्रतिष्ठित है, और कलाजगत में खास महत्व रखती है। इस पारंपरिक कला
में 70 के दशक से मैथिल समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों का
दखल बढ़ा, जिसने इसे एक अलग तेवर दिया। ब्राह्मणों और कायस्थों
से इतर इन समुदायों के निजी-जीवन, आस-पड़ोस की जिंदगी
की झलक इन चित्रों में देखी जा सकती है। खास तौर पर दुसाध कलाकारों ने गोदना शैली
को अपनाया, जिसमें समांतर रेखाओं, वृत्तों और आयातों
में गोदना को ज्यामितीय ढंग से सजाया जाता है। इनमें उनके लोक देवता वीर योद्धा
राजा सहलेस का जीवन वृत्त मिलता है। साथ ही काम-काज और पेशे का चित्रण भी है।
शांति देवी के चित्र भरनी शैली से मिलते-जुलते हैं। शांति देवी और उनके पति शिवन
पासवान को मिथिला कला में योगदान के लिए पद्मश्री देने की घोषणा हुई है। पिछले
दिनों अरविंद दास ने शांति देवी से उनकी कला यात्रा और गोदना शैली को लेकर विस्तार
से बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंशः
अरविंद दास: अपनी लंबी मिथिला कला यात्रा के उतार-चढ़ावों के बारे
में बताइए...
शांति देवी: चालीस साल से ज्यादा समय से मैं इस कला से जुड़ी हूं।
यह तो हमारी परंपरा है, धरोहर है, जो हमने अपनी
दादी-नानी से सीखी है। मेरी मां (कौशल्या देवी) और सास (कुसमा देवी) दोनों को ही
मिथिला कला में राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1976
में मेरी शादी शिवन से हुई। बहुत संघर्ष और गरीबी से गुजरी हूं। मैं अब
लोगों से यही कहती हूं कि मिथिला पेंटिंग ही मेरी खेती-बाड़ी है। शादी के बाद हम
दोनों ने मिलकर पेंटिंग बनाई है।
अरविंद दास: आप दोनों पति-पत्नी की प्रसिद्धि गोदना शैली को लेकर
है। इससे पहले जितवारपुर (मधुबनी) की चानो देवी, रौदी पासवान भी गोदना
पेंटिंग जुड़े रहे हैं...
शांति देवी: सत्तर के दशक के आखिर में रौदी पासवान भाई और चानो
देवी के साथ ही हमने पेंटिंग बनानी शुरू की। राजा सहलेस की कहानी को हमने पेंटिंग
में उतारना शुरू किया। चानो देवी शांत स्वभाव की विशुद्ध कलाकार थीं।
अरविंद दास: मिथिला के कायस्थों और ब्राह्मणों की पेंटिंग चर्चित
रही है। कछनी (कायस्थ), भरनी (ब्राह्मण) शैली से आपकी पेंटिंग किस रूप में
अलग है?
शांति देवी: असल में मेरी पेंटिंग मिथिला पेंटिंग है। राजा सलहेस
की कहानी भी पेंटिंग में मैंने बनाई है। मेरे पति गोदना शैली में पेंटिंग करते रहे
हैं। जब मैंने दुर्गा, सीता की पेंटिंग (रामायण-महाभारत) बनाई तो काफी विरोध
हुआ। मुझसे कहा गया कि मैं अपने देवता को चित्रित करूं। मैंने कहा कि कलाकार की
कोई जाति नहीं होती। कलाकारों की ओर से मुझे किसी तरह के विभेद का सामना नहीं करना
पड़ा। बौआ देवी के साथ मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं, उनकी बेटी जैसी हूं।
गंगा देवी (मिथिला पेंटिंग की प्रसिद्ध कलाकार) के साथ भी मेरी मुलाकात रही है, उनके साथ दो महीने
अहमदाबाद में रही। मैंने किसी की शैली कॉपी नहीं की है।
अरविंद दास: अभी आपने चंद्रयान-तीन को लेकर एक पेंटिंग बनाई, जिसकी खूब चर्चा भी
हुई...
शांति देवी: हां, बिलकुल। मुझसे जब G20
के लिए पेंटिंग बनाने को कहा गया तब मैंने कहा कि राजा सलहेस, गीता-रामायण जिंदगी
भर बनाई है। कुछ नया बनाने की इच्छा है। मैंने कहा कि पोता-पोती के संग टीवी पर
मैंने चंद्रयान को देखा है, उसे ही बनाना चाहती हूं। मैंने रॉकेट को उड़ते देखा
था, कल्पना चावला के बारे में सुना था। उसी सब को अपनी
पेंटिंग में उतारा। प्रधानमंत्री मोदी से भी मेरी मुलाकात हुई और मैंने उन्हें
अपनी पेंटिंग के बारे में विस्तार से बताया था।
अरविंद दास: हमने सुना है प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भी आप एक
बार अपनी पेंटिंग लेकर डेनमार्क प्रतिनिधिमंडल के संग गई थीं, उस अनुभव के बारे में
कुछ बताएं...
शांति देवी: हां, दस बाय दस की एक
पेंटिंग (फूल-पत्ती के संग) राजा सहलेस को लेकर बनाई थी। उसी को लेकर 1983
में मैं डेनमार्क गई। वह मेरी पहली विदेश यात्रा थी। बाद में जापान, जर्मनी, नॉर्वे, मलेशिया, दुबई आदि जगहों पर भी
गई। पुपुल जयकर, मनु पारेख की प्रेरणा से मैं डेनमार्क गई थी। मेरी
अमेरिका जाने की इच्छा है अब। वैसे मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूँ. मेरी पढ़ाई बस
नौवीं कक्षा तक हुई है।
अरविंद दास: आप बच्चों के संग भी वर्कशॉप करती रही हैं, नई पीढ़ी की इस
पेंटिंग में कैसी रुचि है?
शांति देवी: जी, बहुत वर्कशॉप मैंने
किए हैं। अभी हाल ही में मैंने कानपुर में पांच सौ बच्चों के संग वर्कशॉप किया।
मिथिला के घर-परिवार के बच्चों में इस पेंटिंग के प्रति रुचि तो है ही, आजकल राज्य से बाहर
भी लोगों में इस पेंटिंग को लेकर आकर्षण बढ़ा है और काफी लोग उत्साह से सीख रहे
हैं। आपको बताऊँ कि पांच-छह साल के बच्चों को भी मैंने पेंटिंग बनाते देखा है
अरविंद दास: गोदना शैली में नए कलाकारों के बारे में आपका क्या
कहना है?
शांति देवी: बहुत प्रतिभावान कलाकार आज हैं। शिवन खुद गोदना शैली
में बनाते रहे हैं। उर्मिला देवी, महामना देवी, दिलीप कुमार पासवान
गोदना के अच्छे कलाकार हैं, जिनसे काफी उम्मीदें हैं।
अरविंद दास: अपनी कला यात्रा का कोई ऐसा अनुभव जो आप शेयर करना चाहें...
शांति देवी: मैं देश-विदेश में अपनी पेंटिंग लेकर लोगों के बीच कई बार गई हूं। चार बार
जापान (हासेगावा मिथिला आर्ट इंस्टिट्यूट) गई। एक बार नब्बे साल के एक बुजुर्ग
वहां मुझे मिले, जो मुझसे और बौआ देवी से मिथिला पेंटिंग सीखना चाहते थे। मैंने उनसे पूछ
दिया कि बाबूजी अब आपको यह सीखने की क्या जरूरत है। उन्होंने मुझसे कहा कि जब मैं
ऊपर जाऊंगा तो यही न लेकर जाऊंगा! मेरा दिमाग खुल गया और अपनी परंपरा पर गर्व भी
हुआ।
(नवभारत टाइम्स, 27.01.24)
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