मिथिला पेंटिंग की सिद्धहस्त कलाकार गोदावरी दत्त (1930-2024), गंगा देवी, सीता देवी और महासुंदरी देवी की पीढ़ी की थी. उनके निधन से एक युग का अवसान हो गया. पद्मश्री सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित गोदावरी दत्त एक दक्ष गुरु भी थीं. मधुबनी जिले के नजदीक रांटी गाँव में रहकर उन्होंने अनेक कलाकारों को मिथिला कला में प्रशिक्षित किया. उनकी पोती, प्रीति कर्ण जो खुद एक पुरस्कृत कलाकार हैं ने बताया कि वे उनकी भी गुरु थीं और आखिरी समय तक कला को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर रही. प्रीति ने कहा कि ‘मैंने उनकी ही देख-रेख में बचपन से ही पेंटिंग करना सीखा है. उनके साथ मैंने कई कार्यक्रम में हिस्सा लिया.’
करीब दस वर्ष पहले जब मैं उनसे मिलने उनके गाँव गया तब उन्होंने मिथिला की प्रसिद्ध ‘कोहबर शैली’ के बारे में विस्तार से बताया था. प्रसंगवश, उनके घर की अंदरुनी दीवार पर एक विशाल कोहबर का चित्रण है. मिथिला में नव वर-वधू के लिए कोहबर लिखने की कला सदियों पुरानी है.
द्त्त ने इस पारंपरिक कला को अपनी माँ सुभद्रा देवी से सीखा था, जो खुद एक चर्चित कलाकार रही थी. वर्ष 2019 में जब उन्हें पद्मश्री मिला तब मैंने उनसे मैथिली में लंबी बातचीत की थी. उन्होंने बताया था कि ‘मेरी मां या पद्मश्री से सम्मानित जितवारपुर की जगदंबा देवी की पेंटिंग ‘फोक टच’ को लिए होता था. आधुनिक शिक्षा के आने से विषय-वस्तु और शैली दोनों में बदलाव आया है.’ उन्होंने कहा था कि ‘यह पेंटिंग आज की नहीं है, ये हमारी संस्कृति है. बिना पेंटिंग के मिथिला में शादी-विवाह का कोई काम पूरा नहीं हो सकता.’
गोदावरी दत्त की कला की विशेषता रेखाओं की स्पष्टता में है. उनके यहां रंगों का प्रयोग कम-से-कम होता है. साथ ही उनके बनाये चित्रों के विषय पारंपरिक आख्यानों से जुड़े हैं. रामायण, महाभारत के अनेक प्रसंगों को उन्होंने अपनी कला का आधार बनाया है. भले ही उनके विषय पारंपरिक हों, पर उनके चित्र आधुनिक भाव-बोध के करीब हैं. दत्त की पेंटिंग की प्रदर्शनियां देश-विदेश के कई शहरों में लगाई गई.
जापान स्थित मिथिला म्यूजियम के लिए गोदावरी दत्त ने सात बार जापान की यात्रा की. उन्होंने बताया कि मिथिला पेंटिंग की शैली में उन्होंने जापान स्थित संग्रहालय में 18 फुट लंबा एक त्रिशूल बनाया था, जिसे बनाने में उन्हें छह महीने का वक्त लगा. वहीं पर उन्होंने एक ‘अर्धनारीश्वर’ की पेंटिंग भी बनाई जिसमें भगवान शंकर के हाथ में त्रिशूल और डमरू है. बाहरी दुनिया में कागज पर लिखे मिथिला पेंटिंग का प्रचलन पिछली सदी के साठ के दशक में दिखाया गया है पर वर्षों से इसे दीवारों के अलावे कागज पर भी चित्रित किया जाता रहा है. उन्होंने कहा था कि इसे ‘बसहा पेपर’ पर लिखा जाता था और लोग इसे ‘लिखिया’ कहते थे.
मिथिला पेंटिंग की अन्य प्रसिद्ध कलाकारों की तरह उनकी जिंदगी भी काफी संघर्षपूर्ण रही. उनके जीवन पर ‘कलाकार नमस्कार’ नाम से एक फिल्म भी बनी है. मिथिला के सामंती समाज में गोदावरी दत्त जैसी स्त्रियों के जीवन का कटु यथार्थ उनकी कल्पना से जुड़ कर इस पारंपरिक कला को असाधारण बनाता रहा है.
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