करीब सात महीने के बाद देश में सिनेमाघर खुले हैं, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर ‘वीरानी सी वीरानी’ है. बॉक्स ऑफिस के लिहाज से दो प्रमुख राज्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सिनेमाघर अभी भी नहीं खुले हैं.
Wednesday, October 28, 2020
सिनेमा हॉल खुले, पर दर्शक कहां हैं
करीब सात महीने के बाद देश में सिनेमाघर खुले हैं, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर ‘वीरानी सी वीरानी’ है. बॉक्स ऑफिस के लिहाज से दो प्रमुख राज्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सिनेमाघर अभी भी नहीं खुले हैं.
Thursday, October 15, 2020
टीआरपी घोटाले से टीवी चैनलों पर संकट
मुंबई पुलिस और आर्थिक अपराध शाखा (EOW) टीवी चैनलों की TRP में हुए कथित घोटालों की जाँच कर रहे हैं। इस मामले में अभी तक मुंबई पुलिस Republic TV के CEO और COO से पूछताछ कर चुकी है। Republic TV के प्रधान संपादक Arnab Goswami को सोशल मीडिया पर ट्रॉल किया जा रहा है। मुंबई पुलिस ने अब तक इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार रिपब्लिक टीवी और दो अन्य चैनलों ने अपनी टीआरपी बेहतर करने के लिए हेरफेर की। TRP क्या है और इसमें घोटाला कर के किसी टीवी चैनल को क्या फायदा हो सकता है? इन्हीं सवालों के जवाब देने के लिए आज हमने बात की मीडिया विशेषज्ञ अरविंद दास से। (साभार, लोकमत हिंदी)
Sunday, October 11, 2020
उदारीकरण, राष्ट्रवाद और टीवी न्यूज़
भारत में उदारीकरण की नीतियों के फलस्वरूप निजी टेलीविजन समाचार चैनलों का अभूतपूर्व प्रसार हुआ. जनसंचार, विचार-विमर्श, छवियों के निर्माण और संसदीय चुनावों के दौरान राजनीतिक
लामबंदी में टेलीविजन समाचार चैनल एक प्रमुख माध्यम बनके उभरे हैं. इन्हीं दशकों
में पूरी दुनिया में बाजार और संचार
तकनीक के माफर्त भूमंडलीकरण के आने से राष्ट्र-राज्य के स्वरूप में परिवर्तन भी आया है. जहाँ कुछ राष्ट्र्-राज्य की शक्ति बढ़ी, वहीं कुछ राष्ट्र-राज्य की शक्ति में कमी आई. साथ ही दक्षिणपंथी ताकतों और उग्र-राष्ट्रवाद का उभार भी हुआ है. 21वीं सदी के दूसरे दशक के आखिर में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने (ब्रेगिजट) को हम दक्षिणपंथी ताकतों की मजबूती और राष्ट्र-राज्य की कमजोर होती शक्ति को फिर से पाने के प्रयास में रूप में पाते हैं.
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप, इंग्लैंड में बोरिस जानसन, ब्राजील में जेयर बोलसोनारो, तुर्की में रेसेप तैयप एर्दोगान और भारत में नरेंद्र मोदी जैसे पापुलिस्ट नेताओं के उभार ने राष्ट्रवाद और मीडिया के आपसी संबंध को बहस के घेरे में ला दिया है. टेलीविजन समाचार माध्यम में राष्ट्रवादी विमर्श एक प्रमुख प्रवृत्ति के रूप में उभरा है. हालांकि जैसा कि अरविंद राजगोपाल ने अपने चर्चित अध्ययन ‘पॉलिटिक्स आफ्टर टेलीविजन’ में विस्तार से दिखाया है कि भारत में उदारीकरण के बाद (80 के दशक के आखिरी और 90 के दशक के शुरुआती सालों में) उभरे नव मध्यवर्ग के बीच रामायण जैसे महाकाव्यों का सिरीयल के रूप में हफ्ते दर हफ्ते दूरदर्शन पर प्रसारण ने राम जन्मभूमि आंदोलन को मजबूती दिया और भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व विचारधारा के प्रसार लिए जमीन तैयार किया था.[i] संक्षेप में, उदारीकरण एक विस्तृत संकल्पना है जिसमें निजीकरण और बाजारीकरण की अवधारणा भी शामिल है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में, इसके तहत भारतीय अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने में राज्य की भूमिका को कम करने, निजीकरण को बल प्रदान करने तथा निवेश तथा निर्यात की नीति में आमूलचूल परिवर्तन कर भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की नीतियों को लागू करना शामिल था. इसे वर्ष 1991 में नई आर्थिक नीति के माध्यम से लागू किया गया. हालांकि इसकी शुरुआत राजीव गांधी के नेतृत्व में (1985-86) राज्य प्रेरित आयात प्रतिस्थापन की नीति को बदल कर निर्यातोन्मुख विकास की नीति को लागू करने के साथ हो गया था.[ii] सवाल है कि उदारीकरण के बाद राष्ट्रवाद और टेलीविजन समाचार चैनलों के बीच उभरे संबंध को हम किस रूप में देखें? क्या यह उदारीकरण-भूमंडलीकरण के साथ ही सहज रुप से विकसित हुए हैं? या भारतीय संदर्भ में इसकी कोई ख़ास विशेषता है? इस लेख में सेटेलाइट, निजी हिंदी टेलीविजन समाचार चैनलों के हवाले से इन सवालों की पड़ताल की गई है.
(संवाद पथ, जनसंचार और पत्रकारिता केंद्रित पत्रिका, खंड-2, अंक-3, जुलाई-सितबंर 2019, पेज 38-46)