Sunday, October 24, 2021

एक क्रांंतिकारी जीवन का आख्यान: सरदार उधम

समकालीन राजनीति में इतिहास की घटनाएँ समय समय पर नए अर्थ और विवाद के साथ उद्धाटित होती रहती है. खास तौर पर जब बॉलीवुड की कोई फिल्म रिलीज होती है तो आहत भावनाएँ उग्र राष्ट्रवाद की शक्ल में हमारे सामने आती हैं. ऐसे में पिछले दिनों अमेजन प्राइम ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई शूजित सरकार निर्देशित और विक्की कौशल अभिनीत फिल्म ‘सरदार उधम’ अपवाद ही कही जाएगी. एक तरह से यह फिल्म उग्र राष्ट्रवाद का प्रतिकार है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में पनपा राष्ट्रवाद औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ था, जहाँ आत्म और अन्य की अवधारणा हिंदू-मुस्लिम-सिख के रूप में नहीं दिखती थी. आश्चर्य नहीं कि क्रांतिकारी उधम सिंह फिल्म में ‘राम मोहम्मद सिंह आजाद’ के रूप में हमारे सामने आते हैं.


पिछले कुछ सालों में राष्ट्रवादी भावनाएँ ‘उड़ी’, ‘केसरी’ जैसी फिल्मों में भी अभिव्यक्त हुई है जहाँ जोश ‘हाई’ था, पर बॉलीवुड की शैली में बनी इन फिल्मों से ‘सरदार उधम’ की कोई होड़ नहीं है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह फिल्म स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी उधम सिंह (1899-1940) के जीवन वृत्त को चित्रित करती है.
उधम सिंह की दास्तान मुख्यधारा के इतिहास और पापुलर कल्चर में फुटनोट में ही दर्ज है, इस कमी को यह फिल्म संवेदनशीलता के साथ पूरा करती है. फिल्म की शुरुआत वर्ष 1931 के पंजाब से होती है, पर इसके केंद्र में है जालियाँवाला बाग का नरसंहार (1919), जिसे जनरल रेजिनॉल्ड डायर ने अंजाम दिया था. उस समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर थे. 21 वर्ष के बाद उधम सिंह ने लंदन में माइकल ओ डायर की कॉक्सटन हॉल (1940) में भरी सभा में गोली मार कर हत्या कर दी और नरसंहार का बदला लिया था. उन्हें उसी वर्ष फांसी दे दी गई थी.
भगत सिंह ने बम का दर्शन में लिखा है- ‘आतंकवाद संपूर्ण क्रांति नहीं है और क्रांति आंतकवाद के बिना पूर्ण नहीं होती.’ उधम सिंह और भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े कामरेड थे. यह फिल्म गाँधी-नेहरू के अहिंसात्मक रास्ते से अलग भगत सिंह और उधम सिंह के क्रांतिकारी जीवन को वृत्तचित्र की शैली में हमारे सामने लाती है, हालांकि फिल्म में ‘फिक्शन’ का तत्व भी है. यह फिल्म एक रैखिक आख्यान के विपरीत विभिन्न देश-काल में यात्रा करती है. विक्की डोनर, पीकू और अक्टूबर जैसी फिल्में को निर्देशित कर चुके शूजित सरकार ने सधे ढंग से इस फिल्म को ‘सेपिया टोन’ में शूट किया है. खास कर जालियाँवाला बाग के नरसंहार को चित्रित करते समय उन्होंने उधम सिंह के जज्बात, आक्रोश और घनीभूत पीड़ा को जिस रूप में चित्रित किया गया है वह हिंदी सिनेमा परंपरा में अभूतपूर्व है. हालांकि अनेक दर्शकों के लिए यह थोड़ा बोझिल हो सकता है, पर उधम सिंह की निडरता, दृढ़ इच्छा शक्ति जो बाद के क्रांतिकारी जीवन में दिखी उसका बीज यहीं जन्म लेता है.
पिछले सदी के शुरुआती दशक के पंजाब और लंदन को अपने प्रोडक्शन डिजाइन के जरिए मानसी ध्रुव मेहता और दिमित्री मालिच ने जीवंत बना दिया है. यह बड़ी सिनेमाई उपलब्धि है. हिंदी-अंग्रेजी में बनी यह फिल्म पूरी तरह से विक्की कौशल की है, जिसे उन्होंने शिद्दत के साथ जिया है.

(प्रभात खबर, 24.10.21)

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