कोरोना महामारी की मार सबसे ज्यादा प्रदर्शनकारी कला पर पड़ी है. पहली और दूसरी लहर के दौरान नाट्यकर्मियों की सुध लेने वाला कोई नहीं था, ये दर्शकों से दूर थे. सुखद है कि उस दौर को पीछे छोड़ते हुए एक बार फिर से नाट्यकर्मी दर्शकों से आमने-सामने जुड़ रहे हैं. पिछले दिनों दो साल के बाद दिल्ली में महिंद्रा एक्सीलेंस इन थिएटर अवार्ड्स एंड फेस्टिवल- (मेटा) का आयोजन किया गया.
इसमें हिंदी, असमिया, मलयालम, बांग्ला के चार नाटकों का मंचन किया गया, जिसे मेटा 2020 में पुरस्कृत किया गया था. सबसे ज्यादा चर्चा साहिदुल हक निर्देशित ‘द ओल्ड मैन’ नाटक की हुई. यह नाटक अर्नेस्ट हेमिंग्वे की प्रसिद्ध कृति ‘द ओल्ड मैन एंड द सी’ पर आधारित है, पर इसकी भावभूमि ब्रह्मपुत्र नदी है और भाषा असमिया है. हेमिंग्वे के मुख्य पात्र सेंटियागो की तरह ही इस नाटक में एक बूढ़ा, वोदाई, बिना कोई मछली पकड़े लगातार 84 दिनों तक नदी से खाली हाथ लौटता है. निराशा और अवसाद के साथ-साथ उसे सामाजिक उपेक्षा भी झेलनी पड़ती है. युवा रोंगमोन को उसके पास नहीं जाने की सलाह दी जाती है. एक तरह से लोग उसे अपशकुन की तरह देखते हैं. पर वोदाई जिजीविषा और संघर्ष से अपनी परिस्थिति पर विजय पाता है.
यह नाटक जहाँ मानवीय भावों के इर्द-गिर्द बुना गया है, वहीँ एक बड़े सवाल जो प्रकृति और मानवीय रिश्तों से से जुड़ा हुआ उसे अपने घेरे में लेता है. इस समय असम में बाढ़ से लाखों लोग बेघर हुए हैं और जान-माल का काफी नुकसान हुआ है. सच तो यह है कि यह तबाही हर साल आती है. जो अपनी जीविका के लिए नदी पर निर्भर हैं, वे नदीपुत्र कैसे जीवन-बसर करते हैं, किस तरह झंझावतों से लड़ते हैं? वोदाई प्रकृति और मानव के बीच संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है. हाल के वर्षों में मुख्यधारा के मीडिया में भले पर्यावरण की चिंता देखने-सुनने को मिल रही हो, पर सिनेमा-नाटक में अभी भी यह विषय अपवाद स्वरूप ही दिखाई देते हैं. ऐसे में 'द ओल्ड मैन’ नाटक अपने विषय-वस्तु की वजह से अलग से रेखांकित किए जाने योग्य है.
इस नाटक की भाषा असमिया है, लेकिन निर्देशक ने रंगयुक्ति के बल पर वाचिक पक्ष को गौण कर दिया और यहाँ आंगिक पक्ष प्रधान है. साथ ही प्रकाश संयोजन इस नाटक का एक सशक्त पक्ष है. नदी में आई बाढ़ की विकरालता, लहरों में फंसे नाव को बिंब और ध्वनि के मेल से बेहद कौशल से निर्देशक ने मंच पर जीवंत किया है. अनायास नहीं कि नाटक देखते हुए सिनेमाई तत्वों का ख्याल मन में आता रहता है, जबकि यहाँ किसी कैमरे या यंत्र की कोई भूमिका नहीं थी. निरंजन नाथ वोदाई की भूमिका में प्रभावी थे. मंच पर साज-सज्जा बेहद सीमित था. एक छोटा सा नाव उनके लिए जीवन-यापन का साधन और घर भी है. असल में नाव अपना रूप बदलता रहता है. साहिदुल कहते हैं कि ‘द ओल्ड मैन’ में वोदाई और रोंगमोन में अपने पिता और खुद को देखते हैं. मूलत: असम से ताल्लुक रखने वाले साहिदुल की ‘बबल्स इन द रिवर’ नाटक भी काफी चर्चित रहा है.
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