मशहूर फ्रेंच दार्शनिक रोलां बार्थ ने मिथक के प्रसंग में भाषा के रूपक का इस्तेमाल किया है, जिसका अर्थ इस्तेमाल करने पर ही हमारे सामने स्पष्ट होता है. महाभारत महाकाव्य की ‘द्रौपदी’ एक ऐसी मिथकीय चरित्र है जो लेखकों, कलाकारों को बार-बार अपनी तरफ आकृष्ट करती रही हैं. नए संदर्भों में इस चरित्र की सवर्था नई व्याख्या होती रही हैं. स्त्री विमर्श के इस दौर में द्रौपदी महज द्रुपद की बेटी, पांचाली या पांडवों की पत्नी नहीं है. वह अपनी पहचान और सवालों को लेकर उपस्थित होती है. महाभारत के युद्ध के केंद्र में द्रौपदी का चरित्र है. प्रतिशोध और हिंसा के बीच न्याय का सवाल बार-बार सामने आता है. क्यों द्रौपदी को युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है? क्यों द्रौपदी को अपना पति चुनने का अधिकार नहीं दिया गया? हिंसा के बाद आखिर क्या शांति स्थापित हो पाई?
पिछले दिनों दिल्ली के श्रीराम सेंटर सभागार में युवा नाट्यकर्मियों की संस्था ‘ट्रेजर आर्ट एसोसिएशन’ ने ‘अग्निसुता द्रौपदी’ नाटक का मंचन किया, जिसके केंद्र में द्रौपदी और उसके सवाल ही थे. इस नाटक को युवा रंगकर्मी मोहन जोशी ने लिखा है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित जॉय माईस्नाम और साजिदा की जोड़ी इस नाटक के पीछे थी. जहाँ परिकल्पना और निर्देशन जॉय का था, वहीं मंच पर साजिदा थी. इससे पहले मैंने इस टीम का प्रॉडक्शन-‘तमाशा-ए-नौंटकी’ और ‘अंधा युग’ देखा था और प्रभावित हुआ था.
द्रौपदी के चरित्र के माध्यम से हमारे समय में हिंसा के बीच अपने अस्तित्व और पहचान के सवाल को उठाया गया है. मणिपुर हो यूक्रेन या फिलिस्तीन सब जगह हिंसा के दृश्य दिखाई दे रहे हैं, ऐसे में महाभारत के विभिन्न प्रसंग, चरित्र उभर कर हमारे सामने आ जाते हैं. साथ ही युद्ध और शांति के सवाल भी हमें मथते रहते हैं. क्या महाभारत से हम कोई सबक ले पाएँ हैं?
महाभारत जैसे महाकाव्य को एक निश्चित समयावधि में मंच पर कुशल रूप में प्रस्तुत करना किसी भी निर्देशक के लिए एक चुनौती है. इस नाटक को देखते हुए लगता रहा है कि दृश्य बहुत तेजी से मंच पर घटित हो रहे हैं और अभिनेता हड़बड़ी में हैं. फिर भी इस नाटक के कई दृश्यों का संयोजन बेहद कुशलता से किया गया था और वे आकर्षक थे. चौसर के खेल और द्रौपदी को दांव पर लगाने के प्रसंग के लिए निर्देशक ने सवर्था नई युक्ति का सहारा लिया है. इसमें मिजोरम के प्रसिद्ध बांस नृत्य की झलक दिखाई देती हैं. खुद जॉय मणिपुर के हैं. महाभारत के विभिन्न प्रसंगों को निर्देशक ने बेहद कम साजो-सामान के साथ मंच पर प्रस्तुत किया. अवतार साहनी की प्रकाश परिकल्पना नाटक के अनुकूल थी.
दिल्ली या देश किसी भी शहर में आज व्यावसायिक थिएटर करना आसान नहीं है. संसाधनों के अभाव में गैर पेशवर या नौसिखुए कलाकारों से ही अभिनय करवाना पड़ता है. इस नाटक में भी युवा नाट्यकर्मियों के जुनून मंच पर दिखाई दे रहे थे, लेकिन उन्हें अभी और अभ्यास और कला के प्रति समर्पण की जरूरत है.
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