एक पत्रकार के नोट्स
Monday, December 22, 2025
Sunday, December 21, 2025
द ग्रेट शम्सुद्दीन फैमिली: नागरिक राष्ट्रवाद की अनुगूंज
फ्रेंच फिल्मकार जां रेनुआ ने कहा था कि ‘सिनेमा की शब्दावली में ‘कमर्शियल’ फिल्म वह नहीं होती जो पैसा कमाए, बल्कि वह फ़िल्म होती है जिसकी कल्पना और निर्माण व्यवसायी के मानदंडों के अनुसार किया गया हो.’ सुर्खियां ओर बॉक्स ऑफिस पर पैसे बटोर रही आदित्य धर की फिल्म ‘धुरंधर’ देखते हुए यह बात मन में आती रही.
Sunday, December 07, 2025
लल्ल दैद् को वाणी देतीं मीता वशिष्ठ
ख का पाठ मंच पर वह करती रसानुभूति में खलल पड़ता. साथ ही पटकथा में विस्तार का अभाव दिखा.
Sunday, November 23, 2025
किताबघरों की पगडंडी
Wednesday, November 12, 2025
The Children of Ritwik Ghatak
During the Osian’s Cinefan Film Festival in Delhi in 2006, a special highlight was the screening of films paying tribute to the great Indian filmmaker Ritwik Ghatak and Hong Kong’s Stanley Kwan. Along with seven of Ghatak’s films, Anup Singh’s Ekti Nadir Naam (The Name of a River) — dedicated to Ghatak — was also screened.
Sunday, October 26, 2025
एक मुकम्मल हास्य अभिनेता थे असरानी (1941-2025)
कभी-कभी किसी कलाकार या रचनाकार के व्यक्तित्व पर उनकी कोई एक कृति इतनी हावी हो जाती है कि सारा मूल्यांकन उसी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाता है. मशहूर अभिनेता असरानी के साथ यही हुआ. जयपुर में जन्मे असरानी ने अपने पचास साल के करियर में 350 से ज्यादा फिल्में की और विभिन्न तरह के किरदार निभाए पर शोले के ‘जेलर’ का किरदार उनसे जीवनपर्यंत चिपका रहा. वे आम लोगों की निगाह में ‘अंग्रेजों के जमाने के जेलर’ रहे. पर क्या उसी दौर में बनी फिल्में मसलन, अभिमान, चुपके-चुपके, छोटी सी बात, बावर्ची, नमक हराम आदि में उनके किरदारों को भुलाया जा सकता है?
उनके निधन के बाद भी मुख्यधारा और सोशल मीडिया में शोले फिल्म की यही क्लिप वायरल रही. पिछले दिनों शोले फिल्म के पचास साल पूरे होने पर जब उन्होंने मीडिया से बातचीत की तो उन्होंने इस बात की रेखांकित किया वे पुणे फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के एक प्रशिक्षित अभिनेता रहे. जयपुर से स्नातक की परीक्षा पास कर उन्होंने पिछली सदी के साठ के शुरुआत वर्ष में एक्टिंग का प्रशिक्षण लिया था. इससे पहले से वे ऑल इंडिया रेडियो में बतौर वॉइस आर्टिस्ट से रूप से जुड़े थे.
बीबीसी से पिछले दिनों हुई बातचीत में उन्होंने कहा था कि “फ़िल्म इंस्टीट्यूट पहुंचने के बाद पता चला कि एक्टिंग के पीछे मेथड होते हैं. ये प्रोफ़ेशन किसी साइंस की तरह है. आपको लैब में जाना पड़ेगा, एक्सपेरिमेंट्स करने पड़ेंगे." मशहूर निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी साथ उनकी जोड़ी चर्चित रही और उन्होंने से उन्हें एक्टिंग में प्रशिक्षण लेने की सलाह दी थी. मुखर्जी की मध्यमार्गी फिल्मों ने असरानी को चरित्र अभिनेता के रूप में उभरने का मौका दिया. मध्यवर्ग को संबोधित करती ये फिल्में पचास वर्ष बाद भी विभिन्न उम्र से दर्शकों का मनोरंजन करती है.
उन्होंने कहा था कि उन्हें समझ आया कि एक्टिंग में आउटर मेक-अप के अलावा इनर मेक-अप भी बहुत ज़रूरी है.
असरानी हास्य अभिनेता के रूप में उभरे और अपनी छोटी-छोटी भूमिकाओं में जान डाल दी. यहाँ पर बावर्ची फिल्म में बाबू के उनके किरदार को याद करना रोचक है. वह संगीत प्रेमी है हिंदी फिल्मों में संगीत देना चाहता है. वह विदेशी संगीतकारों के खजाने को सुनता रहता है ताकि उसे प्रेऱणा मिलती रहे! यह उस दौर के नकलची फिल्म संगीतकारों पर एक टिप्पणी भी है.
उनकी कॉमिक टाइमिंग जबरदस्त थी. उनके हास्य-बोध में फूहड़ता नहीं दिखती बल्कि एक गहरे मानवीय दृष्टि से यह संचालित रही. ‘आज की ताज़ा खबर' के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट कॉमेडियन अवॉर्ड था मिला था. सहजता उनकी अदाकारी का हिस्सा रही.एक कुशल अभिनेता के साथ ही उन्होंने कुछ हिंदी और गुजराती फिल्मों का निर्देशन भी किया था.
जयपुर से शुरू हुई उनकी जीवन यात्रा मुंबई जाकर खत्म हुई, पर इस यात्रा में उन्होंने जो किरदार निभाए वह लोगों की यादों का हिस्सा बन गए. आज जब समाज और राजनीति में हास्यबोध कम हो रहा है, उनकी जरूरत ज्यादा महसूस की जा रही है. उनका हास्य सिर्फ हंसाने के लिए नहीं था. गहरे जा वह व्यंग्य की शक्ल अख्तियार कर लेता था जो हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति पर एक टिप्पणी होती थी.






