Saturday, July 27, 2019

धीमी पत्रकारिता के प्रयोग: महात्मा गाँधी


समकालीन मीडिया परिदृश्य पर सोशल मीडिया और टेलीविजन हावी हैं. सूचना क्रांति से लैस इन माध्यमों में खबरों के उत्पादन और प्रसारण की हमेशा हड़बड़ाहट रहती है. ब्रेकिंग न्यूज’, ‘फास्ट न्यूजपर जोर रहता है. हालांकि मीडिया विमर्शकारों के बीच समाचार पत्र जैसे पारंपरिक माध्यम की अहमियत फिर से बढ़ी है. ऐसे में 150वें जयंती वर्ष में महात्मा गाँधी की पत्रकारिता और उनके मूल्यों को याद करना जरूरी लगता है. वे राजनेता, विचारक के साथ-साथ एक कुशल पत्रकार भी थे. जब वे बैरिस्टर की पढ़ाई करने लंदन गए तब कानून के एक छात्र के रूप में पत्रकारिता से उनका मुखामुखम हुआ. साथ ही वर्ष 1890 में द वेजिटेरियनमें छह लेखों की एक श्रृंखला से उनके पत्रकारिता कर्म की शुरुआत हुई. इन लेखों में उनके एक सजग आलोचक रूप के दर्शन होते हैं. बाद में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधीजी ने पत्रकारिता के माध्यम से जो भूमिका निभाई, भारतीय जनमानस और पत्रकारों को जिस रूप में उद्वेलित किया वह भारतीय पत्रकारिता के इतिहास की एक धरोहर है. गाँधीजी के सत्य और अहिंसा के विचारों की गहरी छाप हिंदी अखबारों पर खास तौर पर पड़ी. उस दौर में हिंदी के अधिकांश पत्रकार-संपादक स्वतंत्रता सेनानी भी थे.

जहाँ गाँधी जी के द्वारा संपादित पत्रों- यंग इंडिया, नवजीवन, हरिजन आदि की चर्चा होती है, वहीं इंडियन ओपिनियन पत्र के साथ उनके जुड़ाव हमारे विचार-विमर्श में शामिल नहीं हो पाता, कहीं ना कहीं छूट जाता है. असल में, दक्षिण अफ्रीका में अपने प्रवास (1893-1914) के दौरान गाँधी जी ने इंडियन ओपिनियन के साथ जुड़ कर अपने विचारों की धार को तेज किया, जो बाद के उनके सत्याग्रह और पत्रकारीय कर्म में काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ था. गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा में इस पत्र के बारे में लिखा है: मनसुखलाल नाजर इसके संपादक बने. पर संपादन का सच्चा बोझ तो मुझ पर ही पड़ा.दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह की लड़ाई, भारतीयों के अस्मिता संघर्ष में इस पत्र की केंद्रीय भूमिका थी. उन्होंने इस बात को रेखांकित किया है कि इंडियन ओपिनियन के बिना सत्याग्रह असंभव होता.

वर्ष 1903में इंडियन प्रिंटिंग प्रेस से निकलने वाला यह एक बहुभाषी पत्र था. अंग्रेजी के अलावे गुजराती में यह पत्र प्रकाशित होता था. साथ ही कुछ समय तक यह तमिल और हिंदी में भी छपा. इतिहासकार उमा धुपेलिया मिस्त्री ने नोट किया है कि इस पत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब गाँधी ने वर्ष 1904 में इसे डरबन से 24 किलोमीटर दूर फीनिक्स के सौ एकड़ फॉर्म में पुर्नस्थापित किया. यह गाँधी पर लियो टॉलस्टाय और जॉन रस्किन का प्रभाव दिखलाता है...इंडियन ओपनियन का इतिहास फीनिक्स आश्रम से साथ अंतर्गुंफित है.यह विचार प्रधान साप्ताहिक समाचार पत्र भारत, अफ्रीका और ब्रिटेन में मौजूद पाठकों को लक्षित था. पत्र का मुख्य लक्ष्य पाठकों में चेतना का विकास और नैतिक बल विकसित करना था. इसके लिए गाँधीजी इंडियन ओपिनियन में सदूर देशों के पत्रों से संकलित सार संग्रह को प्रकाशित किया करते थे. पत्र की भाषा उन्होंने सहज और सरल रखी. विचारों और खबरों के संप्रेषण और संपादन के लिए जो तरीका उन्होंने अपनाया वह साम्राज्यवाद विरोधी और मशीनी दखल से जिरह करता हुआ नजर आता है.

वर्ष 2013 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी, इतिहासकार इसाबेल हॉफ्मायर की किताब गाँधीज प्रिंटिंग प्रेस: एक्सपेरिमेंट इन स्लो रीडिंगमें इस बात की विस्तार से चर्चा है कि किस तरह गाँधी ने खबरों के उत्पादन, प्रसारण और पढ़ने के तरीकों के लिए धीमी गति की पत्रकारिता पर जोर दिया. वे अपने लेखों में पाठकों को समाचारपत्र पढ़ने की गति धीमी रखने और पाठ को बार-बार पढ़ने को कहते थे. पाठकों के मनन और चिंतन उनकी चिंता के केंद्र में था. यह सब गाँधीजी के सत्याग्रही तेवर को दिखाता है. वे हर पाठक में एक सत्याग्रही की संभावना देखते थे. उल्लेखनीय है कि गाँधी ने इंडियन ओपिनियन के गुजराती के पाठकों के लिए ही पैफलेंट के रूप में हिंद स्वराज की रचना की थी, जहाँ पाठक और संपादक के बीच संवाद प्रमुख है.

सवाल है कि गाँधी जी की धीमी पत्रकारिता के प्रयोग को हम किस रूप में देखें. सोशल मीडिया और न्यूज चैनल आज भी सच दिखाने, सच के साथ खड़े होने, सत्ता से सच बोलने की बात करते हैं. जाहिर है उनका आग्रह भी सत्य के साथ ही है, पर गाँधी के सत्याग्रह के ये कितने करीब कहे जा सकते हैं? ‘फेक न्यूजके इस दौर में मुख्यधारा की पत्रकारिता की जवाबदेही राष्ट्र-राज्य और नागरिक समाज के प्रति पहले से कहीं ज्यादा है. पर क्या तथ्य से सत्य की प्राप्ति पर उनका जोर है? गाँधीजी ने ऐसी पत्रकारिता की परिकल्पना की थी जो राज्य और बाजार के दवाब से मुक्त हो. सवाल यह भी है कि आज का पाठक/दर्शक खुद को पत्रकारिता के पूरे परिदृश्य कहाँ खड़ा पाता है?

(जनसत्ता, 27 जुलाई 2019)

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