कोरोना महामारी ने प्रदर्शनकारी कला को किस रूप में प्रभावित किया, इसका लेखा-जोखा आने वाले समय में होगा, लेकिन उस दौर को पीछे छोड़ते हुए एक बार फिर से दर्शकों से जुड़ने, मुखामुखम संवाद को लेकर नाट्यकर्मियों में जबरदस्त उत्साह है.
दो साल बाद दिल्ली स्थित इंडिया
हैबिटेट सेंटर में नाट्य समारोह (23 सितंबर-2 अक्टूबर) का आयोजन किया गया. रंगमंच
की दुनिया के कई जाने-पहचाने नाम इस समारोह का हिस्सा थे. खास तौर पर युवा
रंगकर्मी और लेखक अमितोश नागपाल के निर्देशन में ‘महानगर के जुगनू’
नाटक
का मंचन इस समारोह की एक उपलब्धि कही जाएगी. हालांकि, चर्चित नाट्य
निर्देशक अतुल कुमार के निर्देशन में ‘आईन’ नाटक का भी मंचन
हुआ. इस नाटक से भी एक लेखक के तौर पर अमितोश जुड़े हुए थे. प्रसंगवश, दोनों
की जोड़ी ‘पिया बहरूपिया’ नाटक (शेक्सपीयर के ‘टवेल्थ
नाइट’ का अनुवाद) से सुर्खियां बटोर चुकी हैं और देश-विदेश में इसके कई शो
हो चुके हैं. नौटंकी शैली में गीत-संगीत का इस्तेमाल इस नाटक को लोक मन से जोड़ता
है.
बहरहाल, ‘महानगर के जुगनू’
नाटक
में एक लेखक, निर्देशक और अभिनेता के तौर पर अमितोश नागपाल
की केंद्रीय भूमिका थी. दिल्ली के रंगमंच पर आम तौर पर क्लासिक या मोहन राकेश,
गिरीश
कर्नाड, स्वदेश दीपक के लिखे आधुनिक नाटक का ही मंचन दिखता रहा है. हिंदी में
नए नाट्य लेखन का सर्वथा अभाव रहा है. ‘महानगर के जुगनू’ एक
ऐसा गीति नाटक है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए.
इस नाटक की कहानी मुंबई में स्थित है.
पर ये जुगनू कौन हैं? मुंबई में अपने सपनों को सच करने गए युवा
कलाकार, लेखक, संगीतकार ही वे जुगनू है जो माया नगरी में
टिमटिमाते रहते हैं. इन्हें चांद की तलाश है. पर चांद-सितारे बनने की हसरत कितनों
की पूरी होती है?
एनएसडी से प्रशिक्षित अमितोश खुद मुंबई
की फिल्मी दुनिया से जुड़े हैं, सो उस दुनिया के रस्मो-रिवाज, दांव-पेच,
संघर्ष,
आशा-निराशा
से बखूबी परिचित है. क्या यह नाटक आत्मकथात्मक है? हां, पर
यह महज एक कलाकार की कथा नहीं है. नाटक मुंबई के ‘आराम नगर’
में
रहने वाले कुछ कलाकारों के इर्द-गिर्द है. उनकी जिंदगी कैसी है? क्या
सपने हैं? और संघर्ष कैसा है. सामाजिक-आर्थिक यथार्थ नाटक की संरचना का हिस्सा
हैं.
इस नाटक में एक संवाद, ‘अपने
मन की कब करोगे यार’, गीत की शक्ल में आता है. आज के युवाओं के मन की
यह बात है. यह सवाल महज रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े युवाओं से ही नहीं है, बल्कि
बाजार के अंधी दौड़ में शामिल हर युवा इससे जूझ रहा है. इस नाटक में बड़े सपनों के
बीच, ‘रेंट कौन भरेगा, तेरा बाप’ जैसा
व्यंग्यात्मक, मारक टिप्पणी भी है.
नाटक के एक दृश्य में जब लेखक अपनी
स्टोरी प्रोड्यूसर को पिच करता है तब उससे ‘लोकल को ग्लोबल
से जोड़ने की सलाह दी जाती है’, जिस पर लेखक टिप्पणी करता है कि वह तो ‘मंडी
हाउस’ से बाहर ही कभी नहीं गया!
लेखक, जुगनू (अमितोश),
अपनी
रचना को बड़े परदे पर देखना चाहता है. वह अपने नाटक के लिए किरदारों को रचता है.
उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आते हैं. वह जीवन (गिरिजा गोडबोले) और सपना (सखी
गोखले) के बीच झूलता है. उसे अपने आदर्श और यथार्थ के बीच चुनाव करना है. यह किसी
भी कलाकार के लिए सच है, पर चुनना आसान कभी नहीं रहा. क्या यही
हमने गुरुदत्त के ‘प्यासा’ में नहीं देखा
था? क्या साहिर ने नहीं लिखा-ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?
इस
आत्मसंघर्ष में जुगनू की जिंदगी गुजर रही है. वह टूटता, गिरता है पर
हौसले नहीं हारता.
इस नाटक में जो विषय उठाए गए हैं वह
भले ही पुराने हैं, पर जिस तरह के रंग कौशल से इसे प्रस्तुत किया
गया है वह मनोरंजक है. गीत-संगीत की प्रस्तुति संवाद को आगे बढ़ाने में सहायक है.
असल में, इस नाटक में जो ऊर्जा है वह अलग से नोट की जाने वाली है.
हास्य-व्यंग्य, मिमिक की शैली
में लिखा यह नाटक युवा दर्शकों को लक्षित है. अमितोश की तरह महादेव लखावत एनएसडी
से प्रशिक्षित कलाकार हैं. इस नाटक में भले ही वे केंद्र में नहीं है, पर
उनका किरदार छाप छोड़ता है. खास कर जब वे एक कॉल सेंटर में काम करने के दौरान अपने
‘स्व’ के क्षरण और अस्तित्व की लड़ाई लड़ते दिखते
हैं.
गीत-संगीत में लोक शैली, हिप
हॉप से लेकर पापुलर बॉलीवुड फिल्मों का असर हैं, वहीं शिव कुमार
बटालवी के गीत- माए नी माए मैं इक शिकरा यार बणाया और बाउल गीत का इस्तेमाल नाटक
की मार्मिकता को बढ़ाता है. एनएसडी से प्रशिक्षित कलाकारों के साथ सखी, गिरिजा
गोडबोले जैसे कलाकार टीवी-फिल्मी दुनिया से खुद जुड़े हैं. कुल मिलाकर समकालीन
माया नगरी में बाहर से आए युवाओं के सपने और संघर्ष के दृश्य को रचने में यह नाटक
सफल है.
अंत में, फिल्म जगत में
जो भाई-भतीजावाद (नेपोटिज्म) पर इन दिनों बहस चल रही है, उसे भी यह नाटक
अपनी जद में लेता है. इससे पहले इतने स्पष्ट शब्दों में क्या किसी नाटक में हमने
नेपोटिज्म पर बात देखी-सुनी थी?
(नेटवर्क 18 हिंदी के लिए)
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