Sunday, January 22, 2023

'आरआरआर’ से ऑस्कर की उम्मीद


पैन नलिन की गुजराती फिल्म 'छेल्लो शो' (आखिरी शो) को मार्च में होने वाले 95वें ऑस्कर पुरस्कार के लिए भले ही शॉर्टलिस्ट किया गया हो, लेकिन सबकी नज़र एस एस राजामौली की तेलुगू फिल्म ‘आरआरआर’ पर है. भारत की ओर से ‘छेल्लो शो’ फिल्म ‘बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी’ के लिए आधिकारिक रूप से भेजी गई थी. ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटू-नाटू’ को ‘म्यूजिक (ओरिजनल सांग)’ की श्रेणी में शॉर्टलिस्ट किया गया है. गौरतलब है कि अभी तक किसी भी भारतीय फिल्म को ऑस्कर पुरस्कार नहीं मिल सका है, जबकि दुनिया में आज सबसे ज्यादा फीचर फिल्म भारत में ही बनती हैं.

‘आरआरआर’ एक ‘एक्शन ड्रामा’ फिल्म है जिसे इतिहास और मिथक के इर्द-गिर्द भव्य स्तर पर रचा गया है. फिल्म में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई को धार्मिक प्रतीकों के सहारे काल्पनिक रूप में परदे पर दिखाया गया है, जिसके केंद्र में आंध्र प्रदेश-तेलंगाना के अल्लूरी सीताराम राजू (राम चरण) और कोमाराम भीम (एनटीआर जूनियर) जैसे स्वतंत्रता सेनानी हैं. ताम-झाम और तकनीक (वीएफएक्स) कौशल के सहारे यह फिल्म हॉलीवुड की फिल्मों से होड़ लेती हुई दिखती है. असल में ‘आरआरआर’ के वितरण, प्रचार-प्रसार और ‘नेटफ्लिक्स’ प्लेटफॉर्म ने इसे देश-विदेश के एक बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँचाया है. यही कारण है कि अमेरिका और यूरोप में भी इस फिल्म की चर्चा है. हॉलीवुड के प्रतिष्ठित फिल्मकार भी इस फिल्म की प्रशंसा कर रहे हैं, ऐसे में आश्चर्य नहीं कि लॉस एंजेलिस में फिल्म को इस हफ्ते ‘बेस्ट सांग’ और ‘बेस्ट फॉरेन फिल्म’ की श्रेणी में ‘क्रिटिक्स च्वाइस’ पुरस्कार मिला है. यह पुरस्कार हॉलीवुड के फिल्म समीक्षकों के वोट के आधार पर मिलते हैं.
ऑस्कर पुरस्कार के लिए फिल्म की गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण पहलू हो सकती है, पर वही काफी नहीं है. पुरस्कार के लिए एक बड़े स्तर पर ‘लॉबिंग’ की जरूरत होती है. ‘आरआरआर’ जैसे बड़े बजट की फिल्म के लिए यह असंभव नहीं है और निर्माता इस काम में जुटे हुए भी हैं.
जबसे ‘नाटू-नाटू’ को लॉस एंजेलिस में सर्वश्रेष्ठ ‘ओरिजिनल सांग-मोशन पिक्चर’ श्रेणी में प्रतिष्ठित ‘गोल्डन ग्लोब’ पुरस्कार मिला है, उम्मीद की जा रही है कि अगले हफ्ते ‘आरआरआर’ को बेस्ट पिक्चर के लिए नामांकित (नॉमिनेशन) किया जा सकता है. यदि ऐसा होता है तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी. फिल्मी दुनिया से जुड़े अकादमी के सदस्य अपने वोट के जरिए फिल्मों को नामांकित और पुरस्कृत करते हैं.
ऑस्कर पुरस्कारों पर बहुलता की अनदेखी करने और नस्लवाद का आरोप दशकों से लगता रहा है. पिछले वर्षों में सदस्यों में स्त्रियों और अल्पसंख्यकों की भागेदारी बढ़ी है फिर भी इनमें अधिकांश श्वेत पुरुष ही है. हाल के वर्ष में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर विरोध भी दिखते रहे हैं. प्रसंगवश, ऑस्कर के इतिहास में महज पाँच ब्लैक अभिनेता को ही अब तक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है.
ऐसे में सवाल है कि क्या ऑस्कर इतना समावेशी है कि उनकी नज़र भारतीय भाषा में बनी एक ऐसी फिल्म पर पड़ेगी जिसे आधिकारिक रूप से नहीं भेजा गया हो? क्या अकादमी के सदस्य ‘आरआरआर’ की विषय-वस्तु और संस्कृति को लेकर संवेदनशील होंगे? क्या ‘नाटू-नाटू’ उन्हें थिरकने को मजबूर कर पाएगा?

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