Friday, January 13, 2023

‘गोल्डन ग्लोब’ में नाटू-नाटू की सफलता और विस्मृति में एम एम करीम

 


तेलुगू फिल्म ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटू-नाटू’ को सर्वश्रेष्ठ ‘ओरिजिनल सॉन्ग-मोशन पिक्चर’ श्रेणी में प्रतिष्ठित ‘गोल्डन ग्लोब’ पुरस्कार मिला है. ‘नाटू नाटू’ के संगीतकार एम. एम. कीरावानी हैं और इसे काल भैरव और राहुल सिप्लिगुंज ने स्वर दिया है. ‘बाहुबली’ फेम के एस एस राजामौली की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफलता के परचम फहराने के बाद पश्चिमी देशों के फिल्म समारोहों में अपनी दावेदारी पेश कर रही है. मार्च में होने वाले प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कार समारोह के लिए भी ‘नाटू-नाटू’ को ‘म्यूजिक (ओरिजनल सांग)’ की कैटेगरी में शॉर्टलिस्ट किया गया है.

बॉलीवुड सहित दक्षिण भारतीय सिनेमा में ‘स्टार’ पर इतना जोर रहा है कि समीक्षक गीत-संगीत पर कम ही बात करते हैं, जबकि गीत-संगीत का फिल्मों में केंद्रीय महत्व रहा है. कई फिल्म तो बॉक्स ऑफिस पर असफल होने के बाद भी सिर्फ गीत-संगीत की वजह से ही लोगों के जुबान पर दशकों बाद भी रहती आई है. खुद एम. एम. कीरावानी हिंदी प्रदेश के लिए अपरिचित नाम नहीं है. एम एम करीम नाम से उन्होंने पिछली सदी के नब्बे के दशक में कुछ हिंदी फिल्मों में बेहतरीन संगीत दिया है. ‘तुम मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए (क्रिमनल)’, ‘चुप तुम रहो चुप हम रहें, खामोशी को खामोशी से ज़िंदगी को ज़िंदगी से बात करने दो (इस रात की सुबह नहीं)’, ‘जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला (जख्म)’ जैसे गीत आज भी लोगों को याद हैं, भले करीम को भूल गए! इस विस्मृति के क्या कारण हैं?

आरआरआर एक ‘एक्शन ड्रामा’ फिल्म है जिसे इतिहास, मिथक के इर्द-गिर्द भव्य स्तर पर रचा गया है. जिस ताम-झाम और तकनीक (वीएफएक्स) कौशल का यह सहारा लेती है उसका इस्तेमाल हॉलीवुड वर्षों से करता रहा है. असल में आरआरआर फिल्म के वितरण और प्रचार-प्रसार ने इसे देश-विदेश के एक बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँचाया है. पिछले दिनों लॉस एंजेलिस (अमेरिका) में प्रदर्शन के दौरान इस फिल्म के प्रति लोगों में जो उत्साह था वह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी रही. पिछले दिनों जर्मनी के एक समाजशास्त्री, प्रोफेसर माइकल बौरमैन ने मुलाकात के दौरान जब आरआरआर के बारे में बातचीत की तो मुझे आश्चर्य हुआ था. हालांकि उनकी दिलचस्पी के केंद्र में फिल्म में जिस तरह से राष्ट्रवाद को परोसा गया है वह थी. इस फिल्म की राजनीति पर बात नहीं होती. फिल्म में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई के दौरान जिस तरह धार्मिक मिथकों, प्रतीकों का इस्तेमाल किया गया है वह आलोचना से परे नहीं है.

बहरहाल, पिछली सदी में उदारीकरण-भूमंडलीकरण के बाद यह चिंता जताई जा रही थी कि हॉलीवुड, अमेरिकी पॉप म्यूजिक कहीं भारतीय समाज को अपने घेरे में न ले ले. अखबारों-पत्रिकाओं में एमटीवी, विसंस्कृतिकरण के खतरे के बारे में लेख लिखे जा रहे थे. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मंच में एक भारतीय फिल्म की मौजूदगी और पुरस्कृत होना उल्टी बयार को दिखाता है. भूमंडलीकरण भारतीय फिल्मों के लिए अवसर भी लेकर आया है जहाँ उसकी प्रतिस्पर्धा विश्व के बेहतरीन फिल्मकारों के साथ है.

यहां पर यह नोट करना उचित होगा कि कीरावानी की प्रतिस्पर्धा टेलर स्विफ्ट, रिहाना और लेडी गागा जैसे चर्चित संगीतकारों से थी. ऐसे में उनकी इस जीत को कम कर नहीं आंकना चाहिए. हालांकि संगीत के जानकारों का मानना है कि कीरावानी (करीम) का यह सर्वश्रेष्ठ नहीं है, न ही भारतीय सिने संगीत का सर्वश्रेष्ठ ही है.निस्संदेह एनटीआर जूनियर और राम-चरण ने नाटू-नाटू गाने में डांस के माध्यम से जो ऊर्जस्विता दिखाई है वह लोगों को लुभाता है. इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इस गाने को फिल्म से अलग जीवन प्रदान किया है.

हिंदी के कवि और सिनेमा के गहरे जानकार विष्णु खरे ने एक जगह लिखा है: “1950-60 के बाद फिल्म संगीत ने भारतीय युवक-युवतियों की निम्न मध्यवर्गीय भावनाओं को जो अभिव्यक्ति दी है, वह विश्व के किसी भी लोकप्रिय संगीत में मिलना असंभव है.” हिंदी फिल्मों की ही बात करें तो कई ऐसे संगीत निर्देशक हुए हैं जिनके भावपूर्ण गीत-संगीत दशकों से लोगों के दिलों पर राज करती हैं और लोक स्मृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. यह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भारतीय फिल्म संगीतकारों को और बेहतरीन संगीत रचने को प्रेरित करेगा. साथ ही उम्मीद की जानी चाहिए कि बॉलीवुड कीरावानी (करीम) की प्रतिभा का समुचित इस्तेमाल कर पाएगा.

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