पिछले दिनों मणिपुर से लगातार जातीय हिंसा की खबरें आती रही है. ऐसे में प्रतिष्ठित कान अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के ‘क्लासिक खंड’ में मणिपुर की एक फिल्म का प्रदर्शन होना सुखद है. चर्चित फिल्मकार अरिबम स्याम शर्मा की फिल्म ‘इशानो’ क्लासिक खंड में दिखाई गई. उल्लेखनीय है वर्ष 1991 में कान समारोह में इसे ‘उन सर्टेन रिगार्ड’ में प्रदर्शित की गई थी. अरिबम स्याम शर्मा के पोते ध्रुव कहते हैं कि ‘इस फिल्म ने खुशी मनाने की हमें एक वजह दी है’.
इस समारोह में भाग लेने अरिबम स्याम शर्मा को
जाना था, पर अस्वस्थ होने की वजह से वे नहीं गए.
साथ ही बात करने में भी वे असमर्थ हैं. हालांकि ध्रुव कहते हैं कि इस खबर से
दादाजी बहुत ही खुश हैं. इस फिल्म के मुख्य अभिनेता कंगबाम तोम्बा बॉलीवुड के
अभिनेताओं, निर्देशकों के संग कान में मौजूद हैं
और वहां ‘रेड कारपेट’ पर चहलकदमी करते हुए उनकी तस्वीरें
दिखाई दे रही हैं.
1936 में इंफाल में जन्मे शर्मा मणिपुर सिनेमा के
ख्यात निर्देशक के साथ एक संगीतकार भी हैं, जिनकी फिल्में दुनिया भर के फिल्म समारोहों में दिखाई जा चुकी हैं. ‘इशानो’ के अलावा ‘इमागी
निंग्थेम’, ‘ओलांगथामी वांगमदुसू’, ‘सनाबी’ आदि उनकी चर्चित फिल्में हैं. इन फिल्मों को देश-विदेश में कई
पुरस्कारों से भी नवाजा गया है.
‘इशानो’ की
कहानी के केंद्र में एक महिला थाम्फा (अनुबाम किरणमाला) है, जो मणिपुर के एक गांव में अपने पति और
बेटी के साथ रहती है. अचानक से उसके व्यक्तित्व में बदलाव दिखाई देता है. यह बदलाव
उसे माइबी धार्मिक समुदाय की स्त्रियों के पास ले जाता है. वे गुरु की तलाश में
अपने परिवार को छोड़ देती है. लोक में व्याप्त विश्वास, तंत्र-मंत्र के सहारे प्रेम और वियोग
को खूबसूरती से यह फिल्म हमारे सामने लाती है. मैतेई भाषा में बनी इस फिल्म में
मणिपुर के जीवन और संस्कृति से हम रू-ब-रू होते हैं.
‘फिल्म हेरिटेज फाउण्डेशन’ और मणिपुर स्टेट फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी के सहयोग से इस फिल्म को
फिर से संजोया और संरक्षित किया गया है. मणिपुर स्टेट फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी के
सचिव और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित फिल्मकार सुंजू बाचस्पतिमयूम कहते
हैं कि उनकी संस्था मणिपुर की फिल्म विरासत को संभालने में लगी हैं.
बाचस्पतिमयूम कहते हैं कि ‘इशानो’ एक बेहद महत्वपूर्ण मणिपुरी फिल्म है जो मणिपुर के जीवन और जटिलताओं
को सामने लाती है.’ अभी
यह फिल्म आम दर्शकों के लिए उपलब्ध नहीं है, लेकिन बाचस्पतिमयूम कहते हैं कि कान और अन्य फिल्म समारोहों मे दिखाई
जाने के बाद यह ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी आएगी.
उत्तर-पूर्वी राज्यों में सिनेमा निर्माण की एक
लंबी परंपरा रही है, हालांकि
उनका बाजार बहुत छोटा है. यह एक वजह है कि राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में इन
फिल्मों की चर्चा नहीं हो पाती. उल्लेखनीय है कि मणिपुर सिनेमा का इतिहास पचास साल
पुराना है. वर्ष 1972 में बनी ‘मातमगी मणिपुर’ पहली फिल्म थी, जिसे देवकुमार बोस ने निर्देशित किया
था. प्रसंगवश, इस फिल्म में अरिबम स्याम शर्मा की
प्रमुख भूमिका थी. इस फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म समारोह में राष्ट्रपति पदक से
सम्मानित किया गया. पिछले साल मणिपुरी सिनेमा की स्वर्ण जयंती मनाई गई थी. साथ ही
गोवा में हुए भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में मणिपुर की फीचर
और गैर-फीचर फिल्मों का प्रदर्शन भी किया गया था, जिसमें ‘इशानो’ भी शामिल थी.
वर्तमान में कई युवा फिल्मकार मणिपुरी में फिल्म बना रहे हैं लेकिन संसाधन के अभाव से वे जूझ रहे हैं. सुंजू बाचस्पतिमयूम कहते हैं कि ‘हमारे फिल्म निर्देशक का ध्यान बाहर के बाजार पर नहीं है और इस वजह से वे कई बात उतनी उत्कृष्ट फिल्म नहीं बन पाते हैं. अत्याधुनिक तकनीक का भी हमारे पास अभाव है.’ फिर भी डिजिटल तकनीक के सहारे पिछले कुछ सालों में युवा फिल्मकार ने अच्छी फिल्में बनाई हैं जिसकी फिल्म समारोहों में चर्चा भी हुई है. वे खास कर हाउबम पवन कुमार (लोकटक लैरेम्बी) और रोमी मैतेई (स्नेक अंडर द बेड) जैसे निर्देशकों की तारीफ करते हैं.
सिनेमा किसी भी समाज की संस्कृति, परंपरा को बिंबो, ध्वनियों के माध्यम से संग्रिहत करने
और संजोने का काम करता है. अपवाद को छोड़ दिया जाए तो बॉलीवुड की फिल्मों में
उत्तर-पूर्व की संस्कृति नहीं दिखती है. साथ ही वहाँ के कलाकार भी गिने-चुने ही
जगह बना पाते हैं.
हम उम्मीद करते हैं कि कान अंतरराष्ट्रीय फिल्म
समारोह में ‘इशानो’ फिल्म के प्रदर्शन के बाद दर्शकों की नजर मणिपुर के सिनेमा और
समकालीन फिल्मकारों पर जाएगी.
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