काश, अनूप सिंह द्वारा निर्देशित ‘द सॉन्ग ऑफ स्कॉर्पियंस’ इरफान (1967-2020) के रहते रिलीज होती! यह फिल्म लोकार्नो,
सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में वर्ष 2017 में ही दिखाई
जा चुकी थी, लेकिन इसे भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज होने के
लिए लंबा इंतजार करना पड़ा.
इरफान की तीसरी पुण्यतिथि पर अंततः यह फिल्म भारत में रिलीज हुई है. लोग
अपने प्रिय अभिनेता को फिर से याद कर रहे हैं. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी)
से प्रशिक्षित इरफान एक ऐसे फिल्म अभिनेता थे, जिनके अभिनय कौशल की
चर्चा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई. उनकी हँसी, आँखों की भाव-भंगिमा, संवाद अदायगी का
अंदाज उन्हें आम दर्शकों के करीब ले आता था. ‘द सॉन्ग ऑफ
स्कॉर्पियंस’ में भी उनके सहज अभिनय के विभिन्न रूप दिखाई देते हैं.
उनकी संवाद अदायगी में एक लय है और चाल-ढाल में एक राग.
राजस्थान (जैसलमेर) में अवस्थित इस फिल्म की कहानी एक दंतकथा के सहारे बुनी
गई है, जिसके केंद्र में बिच्छुओं के डंक को अपने गीत के
सहारे दूर करने वाली दादी जुबैदा (वहीदा रहमान) और उसकी खूबसूरत पोती नूरन
(गोलशिफतेह फरहानी) है. उनके जीवन में गीत है, वहीं रेगिस्तान में
ऊंट का व्यापारी आदम (इरफान) के जीवन में न सुर है, न संगीत! आदम की नजर
नूरन पर टिकी है. वह किसी भी सूरत में उसे पाना चाहता है.
नूरन के मन में भी आदम के प्रति एक आकर्षण है, लेकिन
उसे पाने की चाहत आदम को हिंसा की तरफ मोड़ती है. नूरन से जीवन छीन जाता है. संगीत
छूट जाता है. क्या आदम को नूरन मिलती है? फिल्म ‘प्रेम की पीर’ को सूफियाने ढंग से, धोरों के बीच गीत के सहारे आगे ले जाती है. इसकी भाव-भूमि हालांकि सामंती
नहीं, हमारा आधुनिक समाज है. यहां हिंसा है, छल-प्रपंच है. आधुनिक समय में भी स्त्री को लेकर सामंती दृष्टि कायम है. इस
फिल्म में इरफान का किरदार सफेद और स्याह दोनों ही रंग लिए हुए हैं.
अनूप सिंह एक ऐसे प्रयोगधर्मी फिल्मकार हैं जहाँ भूगोल और लैंडस्केप का
काफी महत्व है. इस फिल्म के बारे में बातचीत करते हुए उन्होंने मुझसे कहा था: “रेगिस्तान में जहर और बाम दोनों होते हैं. हम रेगिस्तान को कैसे देखना
चुनते हैं, शायद यह हमें बताता है कि हम खुद को कैसे देखते हैं.
हम क्या देखना चुनते हैं- बिच्छू या गीत?”
अनूप सिंह के इस वक्तव्य के सहारे यदि हम आदम के चरित्र को देखें तब पता
चलता है कि क्यों आदम के प्रति दर्शकों के मन में कोई विद्वेष नहीं रह पाता. इससे
पहले वर्ष 2013 में अनूप सिंह इरफान के साथ ‘किस्सा’ (द टेल ऑफ ए लोनली घोस्ट) बना चुके थे, जिसकी काफी चर्चा भी
हुई. पिछले साल अपने अभिनेता मित्र को याद करते हुए उन्होंने ‘इरफान: डॉयलाग्स विद द विंड’ किताब भी लिखी थी. इस किताब को पढ़ने पर एक अभिनेता
के रूप में इरफान की तैयारी, कार्यशैली और उनका क्राफ्ट सामने आता है. इरफान एक ऐसा संभावनाशील अभिनेता
थे, जिन्हें अभी लंबा सफर तय करना था. आज जब इरफान हमारे बीच
नहीं हैं, इस फिल्म से बेहतर श्रद्धांजलि नहीं हो सकती.
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