मणिपुर के सिनेमा की चर्चा आम तौर पर मुख्यधारा के मीडिया में नहीं होती. मणिपुरी फिल्मों का हालांकि पचास साल पुराना इतिहास है. दुर्भाग्य से पिछले दिनों मीडिया में मणिपुर में हुई जातीय हिंसा की खबरें ही छाई रही. ऐसे में प्रतिष्ठित कान फिल्म समारोह (16-27 मई) में मणिपुर के प्रतिष्ठित फिल्मकार अरिबम स्याम शर्मा की फिल्म ‘इशानो’ का दिखाया जाना सुखद है. इसे समारोह के ‘क्लासिक खंड’ में दिखाया गया.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित यह फिल्म वर्ष 1991 में कान समारोह में 'उन सर्टेन रिगार्ड’ में प्रदर्शित की गई थी. ‘फिल्म हेरिटेज फाउण्डेशन’ और मणिपुर स्टेट फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी के सहयोग से इस फिल्म को फिर से संजोया और संरक्षित किया गया है. अरिबम स्याम शर्मा के पोते ध्रुव शर्मा कहते हैं कि ‘इस फिल्म ने खुशी मनाने की हमें एक वजह दी है’.
इस समारोह में भाग लेने अरिबम स्याम शर्मा को जाना था, पर अस्वस्थ होने की वजह से वे नहीं गए. ध्रुव कहते हैं कि इस खबर से दादाजी बहुत ही खुश हैं. इस फिल्म के मुख्य अभिनेता कंगबाम तोम्बा बॉलीवुड के अभिनेताओं, निर्देशकों के संग कान में मौजूद थे और वहाँ ‘रेड कारपेट’ पर चहलकदमी करते हुए उनकी तस्वीरें दिखाई दी.
वर्ष 1936 में इंफाल में जन्मे शर्मा मणिपुर सिनेमा के ख्यात निर्देशक के साथ कुशल अभिनेता और संगीतकार भी हैं. ‘इशानो’ के अलावा ‘इमागी निंग्थेम’, ‘ओलांगथामी वांगमदुसू’, ‘सनाबी’ आदि उनकी चर्चित फिल्में हैं. इन फिल्मों को देश-विदेश में कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है.
इशानो की कहानी के केंद्र में एक स्त्री थाम्फा (अनुबाम किरणमाला) है, जो मणिपुर के एक गाँव में अपने पति और बेटी के साथ रहती है. अचानक से उसके व्यक्तित्व में बदलाव दिखाई देता है. यह बदलाव उसे माइबी धार्मिक समुदाय की स्त्रियों के पास ले जाता है. वे गुरु की तलाश में अपने परिवार को छोड़ देती है. लोक में व्याप्त विश्वास, अध्यात्म के सहारे प्रेम और वियोग को खूबसूरती से यह फिल्म हमारे सामने लाती है. मैतेई भाषा में बनी इस फिल्म में मणिपुर के जीवन और संस्कृति से हम रू-ब-रू होते हैं. संगीत इस फिल्म का विशिष्ट पहलू है.
मणिपुर स्टेट फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी के सचिव और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित फिल्मकार सुंजू बाचस्पतिमयूम कहते हैं कि ‘इशानो एक बेहद महत्वपूर्ण मणिपुरी फिल्म है जो मणिपुर के जीवन और जटिलताओं को सामने लाती है.’ उत्तर-पूर्वी राज्यों में सिनेमा निर्माण की एक परंपरा रही है, हालांकि उनका बाजार बहुत छोटा है. वर्तमान में कई युवा फिल्मकार मणिपुरी में अच्छी फिल्में बना रहे हैं लेकिन संसाधनों के अभाव से वे जूझ रहे हैं. सुंजू बाचस्पतिमयूम कहते हैं कि ‘अत्याधुनिक तकनीक का हमारे पास अभाव है’. वे खास कर हाउबम पवन कुमार और रोमी मैतेई जैसे युवा निर्देशकों की तारीफ करते हैं. पिछले साल गोवा में हुए भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में मणिपुर की फीचर और गैर-फीचर फिल्मों का प्रदर्शन किया गया था, जिसमें ‘इशानो’ भी शामिल थी.
उम्मीद करते हैं कि कान समारोह में 'इशानो' के प्रदर्शन के बाद दर्शकों की नजर मणिपुर के सिनेमा और समकालीन फिल्मकारों पर जाएगी.
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