Tuesday, April 26, 2022

पीढ़ियों के साथ संवाद करती श्याम बेनेगल की फिल्में

पिछले दिनों आलिया भट्ट ने कहा कि गंगूबाई काठियावाड़ी’ के किरदार की तैयारी के दौरान  उन्होंने मंडी फिल्म देखी थी. वर्ष 1983 में रिलीज हुई श्याम बेनेगल निर्देशित इस फिल्म में आलिया भट्ट की माँ सोनी राजदान एक सेक्स वर्कर की भूमिका में है. दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित श्याम बेनेगल 87 वर्ष की उम्र में आज भी सक्रिय हैं और नई पीढ़ी के साथ उनका संवाद कायम है. 

सिनेमा पीढ़ियों को आपस में जोड़ती हैंहाल ही में बेनेगल ने मुजीब-द मेकिंग ऑफ ए नेशन फिल्म  निर्देशित किया है. ऐतिहासिकजीवनीपरक विषयों के फिल्मांकन में उन्हें महारत हासिल है. वे कहते हैं कि ऐतिहासिक विषयों पर आधारित फिल्मों में एक निश्चित मात्रा में वस्तुनिष्ठता का होना जरूरी है. साथ ही वे फिल्मकारों की इतिहास के प्रति जिम्मेदारी पर जोर देते हुए आगाह करते हैं कि बिना वस्तुनिष्ठता के फिल्म प्रोपगेंडा बन जाती हैकश्मीर फाइल्स फिल्म के संदर्भ में इस कथन का महत्व बढ़ जाता है.

बांग्लादेश के जनक और बंगबंधु के नाम से चर्चितबांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रीशेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान (1920-1975) मुजीब-द मेकिंग ऑफ ए नेशन फिल्म के केंद्र में हैं. पिछले साल उनकी जन्मशती मनाई गई और बांग्लादेश ने भी आजादी के पचास वर्ष पूरे किए. बेनेगल कहते हैं कि मुजीब इस उपमहाद्वीप के बेहद खास शख्सियत थेजिन्होंने एक नए राष्ट्र को जन्म दिया. उनकी कहानी रोचक है. खुद वे बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे.’ क्या यह फिल्म उनकी द मेकिंग ऑफ महात्मा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ के करीब हैवे कहते हैं कि चूँकि यह भी एक ऐतिहासिक जीवनीपरक फिल्म हैइस लिहाज से इसे हम गाँधी और बोस फिल्म के नजदीक कह सकते हैं. हालांकि वे जोड़ते हैं कि शेख मुजीब की पृष्ठभूमि गाँधी या नेहरू की तरह नहीं थी. वे धनाढ्य या जमींदार नहीं थे. वे एक काम-काजी शख्स थे और मध्यवर्ग से ताल्लुक रखते थे. गौरतलब है कि इसी कड़ी में जवाहरलाल नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर आधारित बेनेगल की भारत एक खोज सीरिज भी हैजो उन्होंने दूरदर्शन के लिए बनाई थी.

 

वर्ष 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की उनके परिवार के ज्यादातर सदस्यों के साथ हत्या कर दी गई थी. शेख मुजीब के भारतीय नेताओं के साथ मधुर संबंध थे. इस फिल्म को भारत और बांग्लादेश की सरकार का सहयोग प्राप्त है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश-दुनिया में जिस तरह आज संघर्ष दिखाई पड़ रहा हैसिनेमा के माध्यम से दो राष्ट्रों के नजदीक आने की पहल स्वागत योग्य है. सिनेमा के इतिहास में इस तरह के उदाहरण बहुत कम ही मिलते हैं. पचास साल पहले बनी ऋत्विक घटक की फिल्म तिताश एकटि नदीर नाम’ (1973) अपवाद ही कही जाएगी जो मुजीब’ फिल्म की तरह ही भारत और बांग्लादेश सरकार के संयुक्त परियोजना का हिस्सा थी.

मुजीब फिल्म की शूटिंग भारत और बांग्लादेश में हुई है. बांग्लादेश के कलाकार अरिफिन शुभो ने मुजीब का किरदार निभाया है. बेनेगल कहते हैं कि फिल्म निर्माण के जरिए आप सतत रूप से कुछ सीखते हैं. आप अपने आस-पड़ोसलोगों और देश के बारे में जानते हैं. सितंबर के आखिर में इस फिल्म के रिलीज होने की संभावना है. यह फिल्म शेख मुजीबुर्रहमान के जीवन को संपूर्णता में चित्रित करती है.

श्याम बेनेगल की फिल्मों का दायरा काफी व्यापक और विविध रहा है. समांतर सिनेमा के दौर के फिल्मकारों मसलनमणि कौलकुमार शहानी आदि से उनकी फिल्में अलग हैं. मुख्यधारा से अलग, समीक्षकों ने उनकी फिल्मों को मध्यमार्गी कहा. उनकी फिल्में आर्थिक रूप से भी सफल रही. साथ ही उन्होंने बॉलीवुड को कई बेहतरीन अदाकार दिए हैं. एनएसडीएफटीआईआई से प्रशिक्षित नए अभिनेताओं के लिए उनकी फिल्मों ने एक ऐसा स्पेस मुहैया कराया जहाँ उन्हें प्रतिभा दिखाना का भरपूर मौका मिला. उल्लेखनीय है कि बेनेगल की पहली फिल्म अंकुर (1974) से ही शबाना आजमी ने फिल्मी दुनिया में कदम रखा था. मंडी’ फिल्म से हमने बात शुरु की थीइस फिल्म में शबाना आजमी, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाहओम पुरीपंकज कपूरनीना गुप्ताइला अरुणअमरीश पुरीकुलभूषण खरबंदा जैसे कलाकारों को परदे पर एक साथ दिखना किसी आश्चर्य से कम नहीं!

 

श्याम बेनेगल की फिल्मी यात्रा के कई चरण हैं. पिछली सदी के 70 के दशक में अंकुर’, ‘निशांत’, ‘भूमिका जैसी फिल्में जहाँ सामाजिक यथार्थ और स्त्रियों की स्वतंत्रता के सवाल को समेटती हैवहीं मम्मो’, ‘सरदारी बेगम’, ‘जुबैदा जैसी फिल्में मुस्लिम स्त्रियों के जीवन को केंद्र में रखती है. इस बीच उन्होंने जुनूनत्रिकाल जैसी फिल्म भी बनाई जो इतिहास को टटोलती है. फिर बाद में बेनेगल ऐतिहासिक जीवनीपरक फिल्मों की ओर मुड़े. पिछली सदी में जहाँ एक निश्चित अंतराल पर उनकी फिल्में आती रहींवहीं नई सदी में यह रफ्तार धीमा पड़ा है. वर्ष 2010 में रिलीज हुई वेल डन अब्बा के बारह वर्ष के बाद मुजीब’ आ रही है. बातचीत में बेनेगल टीवी और ओटीटी प्लेटफार्म के संदर्भ में एक वैकल्पिक स्पेस के उभार को रेखांकित करते हैं.

नई सदी में सिनेमा निर्माण और दृश्य संस्कृति में काफी बदलाव आया है. इसे बेनेगल भी स्वीकार करते हैं. वे कहते हैं कि सिनेमा काफी बदल गया है. जरूरी नहीं कि सिनेमा देखने के लिए हम सिनेमाघर ही जाएँ. ज्यादातर लोग टेलीविजन पर ही फिल्म देखते हैं.’ ऐसे में सिनेमा का क्या भविष्य हैबेनेगल कहते हैं कि सिनेमा का भविष्य तो हैपर आवश्यक नहीं कि हमने जैसा सोचा था वैसा ही हो! बहरहालफिलहाल हम वर्तमान की बात करें. आज भी सिनेमा को लेकर बेनेगल में एक युवा फिल्मकार की तरह ही उत्साह है. समांतर सिनेमा के पुरोधा की रचनात्मक सक्रियता हमारे लिए आश्वस्तिपरक है.


(नेटवर्क 18 हिंदी के लिए)

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