वरिष्ठ आलोचक वीर भारत तलवार भारतीय नवजागरण के गंभीर अध्येता हैं। नवजागरण
को लेकर हिंदी में राम विलास शर्मा सहित अनेक आलोचकों की किताब उपलब्ध है। लेकिन
वर्ष 2002 में आई तलवार की किताब ‘रस्साकशी:
19वीं सदी
का नवजागरण और पश्चिमोत्तर प्रांत’ संदर्भ ग्रंथ के रूप में शोधार्थियों
के बीच प्रतिष्ठित है। ऐसा नहीं कि तलवार किताब लिख कर चुप बैठ गए। उन्होंने
भारतीय नवजागरण पर अपना शोध और लेखन जारी रखा। ‘रस्साकशी’ में
उन्होंने हिंदी नवजागरण पर सवाल खड़ा करते हुए लिखा, “भारतीय नवजागरण मुख्यत: धर्म और समाज
के सुधार का आंदोलन था जबकि हिंदी नवजागरण का मुख्य लक्ष्य यह कभी नहीं रहा।” उनकी
स्थापना है कि हिंदी नवजागरण के बजाय इसे ‘हिंदी आंदोलन’ कहा
जाए।
‘बगावत और वफादारी: नवजागरण के इर्द-गिर्द’ किताब इसी की कड़ी है, जिसमें विभिन्न समय पर लिखे लेखों का संकलन है। यह किताब नवजागरण के नायकों के विचारों और उनकी रचनाओं का शोधपरक विश्लेषण करती है। तलवार लिखते हैं कि ‘अपने धर्म की रक्षा और सुधार का उद्देश्य गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन ऐसा करते हुए हम किन विचारों का सहारा लेते हैं, किन उपायों से अपना उद्देश्य हासिल करते हैं?’ इस पर ध्यान देना जरूरी है। इस किताब में वे हिंदू-मुस्लिम नवजागरण की भद्रवर्गीय धाराओं में मौजूद अंतर्विरोधों को रेखांकित करते है।
किताब का शीर्षक सर सैयद अहमद खां के ऊपर लिखे पचास पेज के लंबे लेख से लिया गया है। उन्होंने विभिन्न कोणों से सैयद अहमद के ऊपर इस निबंध में विचार किया है। सन 1857 में हुए आंदोलन (सैयद इसे बगावत कहते हैं) के संदर्भ में तलवार ने नोट किया है कि ‘इसमें सैयद अहमद न सिर्फ एक सरकारी मुलाजिम की हैसियत से शरीक थे, बल्कि वे सबसे पहले भारतीय थे, जिन्होंने उसके बारे में लिखा, उसका विवेचन किया।’ वे लिखते हैं कि सैयद अंग्रेजी शासन के प्रति वफादार थे और इस विद्रोह के समर्थक नहीं थे, हालांकि उनका एक और पक्ष हिंदुस्तानियों, खास कर मुस्लिम कौम के प्रति उनकी वफादारी का भी है। विद्रोह के बाद अंग्रेजों के मन में मुसलमानों के प्रति जो द्वेष था वे इसे बदलना चाहते थे। उन्होने ईसाई धर्म और इस्लाम का तुलनात्मक अध्ययन किया। अलीगढ़ मोहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज (अलीगढ़ विश्वविद्यालय) की स्थापना के संदर्भ में तलवार ने लिखा है कि ‘सैयद के आधुनिक शिक्षा संबंधी प्रयासों में मुसलमानों ने उतना सहयोग नहीं किया, जितना हिंदुओं ने किया।’
इस किताब में ‘हिंदू धर्म प्रकाशिका सभा’ के संस्थापक श्रद्धाराम फिल्लौरी के ऊपर एक महत्वपूर्ण निबंध है। हिंदी में उनके ऊपर बहुत कम लिखा गया है। इसी तरह हिंदी नवजागरण के प्रसंग में खड़ी बोली आंदोलन के अगुआ अयोध्याप्रसाद खत्री और शिवप्रसाद ‘सितारेहिंद’ पर भी मूल्यांकन है। बिना किसी वाग्जाल में उलझे, सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा में तलवार इस किताब में ऐसे सवाल खड़े करते हैं जो नवजागरण संबंधी प्रचलित विचारों को घेरे में लेती है। रामविलास शर्मा की स्थापनाओं के परिप्रेक्ष्य में हिंदी क्षेत्र में सन 1857 के बाद आए बदलावों का एक सम्यक लेखा-जोखा भी इस किताब में है।
वीर भारत तलवार
प्रकाशक | वाणी प्रकाशन
मूल्य: 399 | पृष्ठ: 152
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