Sunday, March 05, 2023

बच्चों के विनोद कुमार शुक्ल


हिंदी के चर्चित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को मिले पेन/नाबाकोव पुरस्कार की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है. उनके उपन्यासकार, कवि, कथाकार रूप की एक बार फिर मीडिया में बात हो रही है. नौकर की कमीज और  ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी उपन्यास के अलावे लगभग जय हिंद’, ‘सब कुछ बचा रहेगा जैसा कविता संग्रह से उन्हें साहित्य जगत में काफी प्रतिष्ठा मिली. वे पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक हैं जिन्हें पचास हजार डॉलर का यह सम्मान मिला है.

विनोद कुमार शुक्ल की एक विशिष्ट भाषा और लेखन शैली है. यथार्थ चित्रण में भी एक रागात्मकता यहाँ दिखाई देती हैहालांकि कई बार यह बोझिल भी हो जाती है. पर उनके प्रशंसकों का एक अलग वर्ग रहा है, इससे इंकार नहीं.

बहरहाल, पिछले दिनों दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में विनोद कुमार शुक्ल का साहित्य नए कलेवर में पाठकों के लिए उपस्थित रहा. साथ ही मेले के दौरान इकतारा ट्रस्ट से छपी उनकी बच्चों के लिए लिखी किताबों- एक चुप्पी जगह’ , ‘गोदाम’, ‘एक कहानी’, ‘घोड़ा और अन्य कहानियाँ’ तथा बना बनाया देखा आकाश: बनते कहाँ दिखा आकाश’ (कविता संग्रह) दिखाई दिया. इन सब के बीच उनके बाल साहित्यकार रूप में उनकी चर्चा छूट जाती हैजबकि हाल के वर्षों में 86 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल बच्चों के लिए साहित्य रचने पर जोर दे रहे हैं.

पुरस्कार के बाद एक बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे कहा कि अभी मेरी सोच में बच्चों के लिए लिखने का अधिक रहता है. मैं इस उम्र में छोटा लिखता हूँ और कम लिखता हूँ क्योंकि ज्यादा देर तक किसी एक चीज पर कायम रहना बहुत कठिन हैलेखन में भी. ज्यादा देर तक खड़े नहीं रह सकताबैठ भी नहीं सकता. मेरी शारीरिक और मानसिक स्थिति अब वैसे नहीं हैलेकिन तब भी मैं बच्चों के लिए लिख रहा हूँ.

वे जोर देकर कहते हैं कि बच्चों पर लिखते हुए वे अपने बचपन में लौट रहे हैं. बातचीत के क्रम में वे अपनी अम्मा को याद करते हुए कहते हैं कि मेरी अम्मा के घर में हम बच्चों पर एक अच्छा प्रभाव पड़ा थाखासकर अपने साथ वह बंगाल के साहित्य का संस्कार भी लेकर आ गई थी.

पिछले कुछ सालों में पुस्तक मेले में बाल साहित्य में बच्चों और वयस्कों की दिलचस्पी काफी दिखाई देती रही हैलेकिन हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों का लेखन यहाँ नहीं दिखता. सच तो यह है कि हिंदी में साहित्यकारों ने बच्चों को ध्यान में रख कर बहुत कम लिखा है. प्रकाशकों ने भी इस वर्ग के पाठकों में रुचि नहीं दिखाई. इसके क्या कारण हैजहाँ हिंदी के प्रतिष्ठित प्रकाशक बच्चों के लिए किताबें छापने से बचते रहे हैं वहीं हाल में एकलव्यइकताराकथाप्रथम जैसी संस्थाओं में हिंदी में रचनात्मक और सुरुचिपूर्ण किताबें छापी हैं. नेशनल बुक ट्रस्ट बच्चों के लिए किताबें छापता रहा हैपर बदलते समय के अनुसार विषय-वैविध्य और गुणवत्ता का अभाव है यहाँ. ऐसे में विनोद कुमार शुक्ल का बाल साहित्यकार रूप अलग से रेखांकित करने की मांग करता है.

(प्रभात खबर, 5 मार्च 2023 को प्रकाशित)

No comments: