Sunday, December 10, 2023

हाशिए की आवाज का संगीत


पिछले दिनों इंडिया हैबिटेट सेंटर के भारतीय भाषाओं के समारोह ‘समन्वय’ का समापन चर्चित रॉक बैंड इंडियन ओशन के कार्यक्रम से हुआ. जब मैं दस वर्ष की कैथी से इस बैंड के बारे में बात कर रहा था तो उसने आश्चर्य से मुझसे कहाइंडियन बैंड! पिछले कुछ वर्षों में भारतीय किशोरों-युवाओं के बीच कोरियन पॉप बैंड खूब चर्चित हुआ हैउसकी भी पसंद के-पॉप है.

पिछली सदी में भारतीय संगीत में कई तरह के प्रयोग और फ्यूजन देखने को मिले. देश में उदारीकरणभूमंडलीकरण की बयार बहीजिसने श्रोताओं का मिजाज बदला. उनकी रुचि भी बदली.  इन्हीं दिनों स्पिक मैके जहाँ स्कूल-कॉलेजों और आम जनों के बीच भारतीय शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देना शुरू कियावहीं कई रॉक और पॉप बैंड उभरे. इनमें से अधिकांश जहाँ आज विस्मृति में है, वहीं इंडियन ओशन टिका हुआ है. इसके क्या कारण हैं?

इंडियन ओशन बैंड के मुख्य गायक और गिटारवादक राहुल राम ने कहा कि यह बैंड अपने 34वें साल में है. गिटार वादक सुष्मित सेन ने असीम चक्रवर्ती के साथ मिल कर दिल्ली में वर्ष 1990 में इस बैंड की स्थापना की थी. वर्ष 199में इंडियन ओशन नाम से पहला एलबम रिकार्ड किया था. राहुल शुरुआती दिनों से इस बैंड से जुड़े रहे हैंहालांकि इस बीच इसके सदस्य बदलते रहे. इस साल इनका नया एलबम तू है रिलीज हुआ हैजिसमें राहुल रामहिमांशु जोशीअमित किलामनिखिल राव का योगदान है. समन्वय के मंच पर भी ये सब कलाकार मौजूद दिखे. प्रसंगवशपिछले दिनों रिलीज हुई विशाल भारद्वाज की फिल्म खुफिया में कबीर और रहीम के पदों को गाते राहुल दिखे थे. उनकी छोटी भूमिका भी इस फिल्म में थी. इंडियन ओशन ने 'पीपली लाइव', 'ब्लैक फ्राइडेजैसी फिल्मों में भी संगीत दिया. मसान’ (2015)  फिल्म के लिए दिया संगीत काफी लोकप्रिय हुआ.

इंडियन ओशन के गीत-संगीत में पारंपरिक लोक धुनों और शब्दों पर जोर रहा है जो आसानी से लोगों की जुबान चढ़े. एक तरफ नथ बेसर बालम मंगवा देमंगवा दे’  जैसे पारंपरिक गानों को उन्होंने गायावहीं लोक धुनों पर माँ रेवा थारो पानी निर्मल, कल कल बहतो जायो रे भी गाया जो खूब चर्चित हुआ था. आईआईटी कानपुर से पढ़े और अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यलाय से पर्यावरण इंजीनियरिंग में पीएचडी राहुल खुद नर्मदा आंदोलन से जुड़े हुए थे. इसी तरह इंडियन ओशन ने हिंदी के जनकवि गोरख पांडेय के लिखे गीत जनता के आवे पलटनियाहिल्ले ले झकझोर दुनिया को आम लोगों तक पहुँचाया. युवा छात्रों के बीचआंदोलनों में ये आज भी सुनाई देता है. असल मेंयह बैंड हाशिए के समाज और संघर्षरत जनता की आवाज है.

समन्वय में जब उन्होंने नया गाना आयो रेबाघ आयो रे’ सुनाया तो बरबस केदारनाथ सिंह की कविता बाघ की याद ताजा हो गई. बाघ यहाँ व्यवस्था का रूपक है. बिना बोझिल हुए इस बैंड की पक्षधरता स्पष्ट रही है. जहाँ एक तरफ बैंड में कबीर जैसे क्रांतिधर्मा कवि की झीनी चदरिया सुनाई देती रही है, वहीं युवा कवि वरुण ग्रोवर और अदाकार पीयूष मिश्रा के शब्दों को भी उन्होंने स्वर दिया है.