Wednesday, March 21, 2018

काग़ज़ी है पैरहन, हर पैकर-ए-तस्वीर का

(20 नवंबर 1934-19 मार्च 2018)

बड़े भाई नवीन उनके शिष्य थे और मैं भी उन्हें अपना गुरु मानता रहागोकि मेरे जेएनयू ज्वाइन करने से पहले वे सेंटर (भारतीय भाषा केंद्र) से रिटायर हो चुके थे. पर उनका सेंटर आना-जाना लगा रहता था. वे इमेरिटस प्रोफेसर थे.

इसी साल जनवरी महीने में प्रगति मैदान में हुए विश्व पुस्तक मेले में केदारनाथ सिंह राजकमल प्रकाशन के बुक स्टॉल पर बैठे दिखे.  मैंने पाँव ज़मीन पर जमाउकड़ूँ बैठ अपने मोबाइल से ये तस्वीर ली थी. उनकी कवि नज़र मुझे परख रही थी.

मैंने नजदीक जा कर प्रणाम किया और फिर अपना परिचय दिया. कहा कि मैं तो आपसे नहीं पढ़ पाया पर बड़े भाई आपके शिष्य रहे हैं. हम आपको याद करते रहते हैं. फिर उन्हें बड़े भाई का यह कहा सुनाया -केदार जी कहते थे कि कविता बिटवीन द लाइंस होती है.'

बड़े बूढ़े की निश्छल हँसीजो ममत्व से भरी उनकी आँखों में थीमैंने देखी. उन्होंने मेरी पीठ ठोकी. हम उन्हें यह तस्वीर भेंट करना चाहते थे. पता चला कि वे बीमार हैं, अस्पताल में भर्ती हैं. फिर जब पता चला कि वे घर आ गए हैं तो उनके मोबाइल पर फ़ोन किया जो स्वीच ऑफ था...

वर्ष 2001-02 के दौरान जब मैं आईआईएमसी, जेएनयू कैंपस में छात्र था तब हम पुस्तक मेले घूमने गए थे. उस दौरान भी राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर बैठे दिखे थे, साथ में प्रोफेसर नामवर सिंह भी थे. मैं उनके पास गया और पूछाआपने ऐसा क्यों लिखा है कि यह जानते हुए कि लिखने से कुछ नहीं होगा, मैं लिखना चाहता हूँ. मेरे हाथों को छूते हुए उन्होंने कहा- यहाँ इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाएगा, घर आओ. लेकिन संकोचवश मैं उनके घर नहीं जा सका, हालांकि इन वर्षों में उनकी कविता से लगाव बढ़ता ही गया.

एक बार मुझे किसी को प्रपोज करना था, काफ़ी उधेड़बुन में था. क्या पता क्या सोचे, बुरा मान गई तो. फिर केदारनाथ सिंह याद आए-

इन्तज़ार मत करो
जो कहना है कह डालो
क्योंकि हो सकता है
फिर कहने का कोई अर्थ न रह जाय

वे दिन कुछ इश्क किया, कुछ काम किया वाले थे.  हम सोचते थे दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए.

कवि उदय प्रकाश ने उनकी ताल्सताय और साइकिल’ कविता के प्रसंग में टिप्पणी करते हुए लिखा है कि 'वे एक उदास गिरगिट से बात कर सकते थे'. मैंने सच में एक कवि को उदास गिरगिट से बात करते हुए देखा है जो उनके शिष्य भी थे. मैं बात रमाशंकर विद्रोही की कर रहा हूँ जो शाम को जेएनयू के गंगा ढाबा के कोने में अपनी मंत्र कविता को बुदबुदाते एक उदास गिरगिट से बात करते हुए मिला करते थे. वे केदार नाथ सिंह की कविता नूर मियां को याद करते थे.

केदारनाथ सिंह की कविता एक साथ गाँव-शहर की यात्रा करती है. मेरे जैसे लोगों के लिए जो इन दो दुनियाओं के बीच कहीं टिका है, उनकी कविताओं से संबल, सांत्वना पाता रहा. इस मायने में वे एक विरल कवि थे, न सिर्फ हिंदी के बल्कि भारतीय भाषाओं के. उनकी एक कविता है जाना, जिसे उनके सुधी पाठक आज बहुत शिद्दत से याद कर रहे हैं-

मैं जा रही हूँ- उसने कहा
जाओ-मैंने उत्तर दिया
यह जानते हुए कि जाना
हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है.

(द लल्लन टॉप वेबसाइट पर प्रकाशित)

Tuesday, March 06, 2018

ऑनलाइन समाचार की दुनिया में नयापन क्यों नहीं है?


श्रीदेवी की दुखद मौत बॉलीवुड और उनके फैन्स के लिए सदमे से कम नहीं था. उनकी मौत होटल के बाथटब में दुर्घटनावश डूबने के कारण हुई, लेकिन टेलीविजन न्यूज चैनल ने जिस तरह से इस दुखद घटना को कवर किया उसकी ख़ूब आलोचना हुई. लोगों ने इसे बाथटब जर्नलिज्मकहा. हालांकि इस तरह की सनसनी टीवी न्यूज ने पहली बार नहीं फैलाई थी. अब तो टीवी चैनल के कई वरिष्ठ एंकर भी टीवी न्यूज से दूर रहने की सलाह देने लगे हैं. पर जिस तरह से हिंदी ऑन लाइन न्यूज वेबसाइटों पर श्रीदेवी को लेकर खबर परोसी गई उस पर लोगों ने गौर नहीं किया.

भले पिछले वर्षों में हिंदी के अखबारों के प्रसार और पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई है, अब हिंदी अखबारों के न्यूज रूम में डिजिटल फर्स्टजैसे स्लोगन सुनाई पड़ने लगे हैं. लोग पत्रकारिता का भविष्य ऑनलाइन पत्रकारिता को ही मान रहे हैं. यहाँ तक कि अब हिंदी मुख्यधारा के अखबारों का जोर ऑनलाइन सामग्री उपलब्ध करवाने पर ज्यादा है. जाहिर है ऑनलाइन में खबरों का बाजार बढ़ा है. पर यदि इन अखबारों के ऑनलाइन सामग्री पर गौर करें तो खबरों के परोसने का रंग-ढंग हिंदी के खबरिया चैनलों से ही प्रेरित है, अखबारों से नहीं. यहाँ बुलेटिन की तरह हेडलाइन, वीडियो और फोटो गैलरी देने पर जोर है, विवेचन-विश्लेषण पर कम. इस बात से इंकार नहीं कि नया माध्यम नए तरह के सामग्री के उत्पादन और प्रसार की अपेक्षा रखता है, पर विश्वसनीय खबरों को आम-फहम भाषा में लोगों तक पहुँचाना, सत्ता से सवाल करना और बहस-मुबाहिसे का एक मंच मुहैया करना इनके लिए उसी तरह मायने रखता है जितना अखबार या टीवी के लिए. भ्रष्टाचार के खिलाफ चले अन्ना आंदोलन, निर्भया आंदोलन के दौरान राजनीतिक लामबंदी में इनकी भूमिका रेखांकित करने योग्य रही. पर अपवाद को छोड़ दें तो करीब दो दशकों की अपनी इस यात्रा में हिंदी अखबारों की ऑनलाइन दुनिया ने सार्वजनिक दुनिया (पब्लिक स्फीयर) का विस्तार भले किया हो, इसमें कोई गुणात्मक परिवर्तन या बदलाव करता हुआ नहीं दिखता.

श्रीदेवी की मौत को जिस तरह सनसनीखेज भाषा में हिंदी अखबारों के वेबसाइटों ने कवर किया, कयास लगाए इस बात की ताकीद करते हैं. ऐसा लगता है कि हिंदी के अखबार के ये वेबसाइट पूरक नहीं है. किसी ने अर्जुन कपूर के श्रीदेवी और उनकी बेटी से अलगाव को हेडलाइन बनाया तो किसी ने श्रीदेवी की संपत्ति, उनकी तथाकथित सर्जरी और दुबई के होटल के आखिरी लम्हों को. ऐसा लग रहा था कि श्रीदेवी की मौत की खबर को लोगों तक पहुँचाने से ज्यादा इनकी रूचि इसे सेलिब्रेट करने में रही. कई हेडलाइंस तो स्त्री-विरोधी भी थे. 

बीबीसी हिंदी ऑनलाइन बेवसाइट, जिसकी साख हिंदी श्रेत्र में काफी रही है, उसका रवैया भी वही था, जो टीवी चैनलों का रहा है. 26 तारीख को एक समय वेबसाइट के मेन पेज कम से कम श्रीदेवी से जुड़ी चौदह स्टोरी, रिपोर्ट, वीडियो, ब्लॉग आदि की शक्ल में थी. यह हिंदी ऑन लाइन मीडिया की दिशा और दशा का भी सूचक है. यहाँ खबरों का मतलब मनोरंजन है और मनोरंजन का मतलब बॉलीवुड. यहाँ तक कि बीबीसी हिंदी वेबसाइट ने संवाददाता के हवाले से एक और ख़बर चलाई थी-क्या श्रीदेवी को पहले से ख़तरा था? इस ख़बर के मुताबिक: श्रीदेवी की मौत के बाद अब उनके परिवार में भी हृदय रोग फ़ैमली हिस्ट्री का हिस्सा होगी. इसलिए उनकी दोनों बेटियां जाह्नवी और खुशी को ज़्यादा सजग रहने की ज़रूरत है.ऐसा लगता है कि खबरों का चुनाव ही नहीं, उसे बरतने की नीति, विश्वसनीयता का पैमाना भी बीबीसी के अंग्रेजी और हिंदी पाठकों के लिए अलग-अलग है. साथ ही हिंदी की जो स्टोरी ऑनलाइन दी जाती है और यदि फिर उसमें फेर-बदल किया जाता है तो पाठकों को इस बात की जानकारी क्यों नहीं दी जाती जो कि बीबीसी के गाइडलाइंस के विपरीत है. हिंदी के खबरिया वेबसाइट सॉफ्ट पोर्नऔर क्लिकबेट’ (पाठकों को आकर्षित करने के लिए भड़काऊ शब्दों का हेडलाइन में इस्तेमाल) की नीति पर चल रहे हैं.

इन वर्षों में अन्य भारतीय भाषाओं के मुकाबले ऑनलाइन पर हिंदी के पाठकों की मौजूदगी कई गुणा बढ़ी है. गूगल और केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 तक इंटरनेट पर हिंदी के यूजर की संख्या अंग्रेजी के यूजर से ज्यादा हो जाएगी. जाहिर है, इंटरनेट पर खबरों की तलाश, उसमें दिलचस्पी हिंदी के उपभोक्ताओं में बढ़ेगी. हिंदी के ऑनलाइन न्यूज वेबसाइट की भविष्य में पहचान क्या होगी, किस रास्ते पर चल कर यह आगे बढ़ेगी यह देखना दिलचस्प होगा. पर यदि वह टीवी न्यूज के बनाए रास्ते पर चल कर आगे बढ़ती है तो उससे उम्मीद रखना बेमानी होगी.

(जानकी पुल वेबसाइट पर प्रकाशित)