Sunday, February 04, 2024

दरभंगा घराने के ध्रुपद का सम्मान


 हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद  के लिए दरभंगा-अमता घराने की चर्चा होती रही है. यह घराना दरभंगा राज की छत्रछाया में 18वीं सदी से फलता-फूलता रहा. पर राज के विघटन के बाद संरक्षण के अभाव में यह घराना दरभंगा से निकल कर इलाहाबादवृंदावनदिल्ली आदि जगहों पर फैलता गया. बिहार में इसके कद्रदान नहीं रहे.

पिछले दिनों दरभंगा घराने के चर्चित गायक और ध्रुपद के शिक्षक राम कुमार मल्लिक को शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई. 71 वर्षीय मल्लिक दरभंगा में रहते हैं और पंडित विदुर मल्लिक गुरुकुल (दरभंगा) में छात्र-छात्राओं को ध्रुपद में प्रशिक्षण दे रहे हैं. पंडित विदुर मल्लिक उनके पिता और गुरु थे जो 80 के दशक में वृंदावन चले गए और वहाँ पर उन्होंने ध्रुपद एकेडमी की स्थापना की थी.

इसी घराने में पंडित रामचतुर मल्लिक और सियाराम तिवारी जैसे प्रसिद्ध गायक हुए हैं, जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. करीब पचास साल के बाद इस घराने के हिस्से पद्म पुरस्कार आया है, जबकि विदुर मल्लिक और अभय नारायण मल्लिक जैसे ध्रुपदिए भी इसके हकदार थे. राम कुमार मल्लिक कहते हैं, यह अचल पद है. सारी दुनिया की संगीत का तत्व समझिए इसे. ख्याल विचलित हो सकता हैध्रुपद नहीं. कनकमुरकी मूर्छना नहीं लगता, यह मीड़ और गमक की चीज है.

ध्रुपद गायकी की चार शैलियां- गौहरडागरखंडार और नौहर में दरभंगा गायकी गौहर शैली को अपनाए हुए है. इसमें आलाप चार चरणों में पूरा होता है और जोर लयकारी पर होता है. जिस तरह कबीर के पदों के लिए कुमार गंधर्व और मीरा के पदों के लिए किशोरी अमोनकर विख्यात हैंउसी तरह से दरभंगा घराने के गायक विद्यापति के पदों को गाते रहे हैं. मल्लिक कहते हैं चारों पट की गायकी दरभंगा घराने में आपको मिलेगी. ध्रुपद के साथ मैं ख्यालदादराठुमरीगजल-भजनलोकगीत भी गाता हूँ.

वे कहते हैं कि तानसेन के घराने से ही हमारे पूर्वजों ने गायन सीखा था. राधाकृष्ण और कर्ताराम (दो भाई और थे) ने ग्वालियर में रह कर भूपत खान जीजो तानसेन के नाती थेसे बाइस वर्ष तक संगीत की शिक्षा ग्रहण की जिसके बाद वे नेपाल बादशाह के पास आए. वहाँ वे दरबारी गायक थे. कालांतर में वे दरभंगा राज से जुड़े. इस घराने में पखावज और सितार के भी कुशल कलाकार हुए हैं. मल्लिक बताते हैं कि हमारे घराने में शिवदीन पाठक हुए (मेरे दादाजी के मामा) उनका जो सितार बजता था वह तो विश्व में कोई नहीं बजा पाया. उनकी ऊँगली का रखाव इतना सुंदर (सही) थासब स्वरों के अंदर बद-बदबद-बद होता था. रामेश्वर पाठक ने उन्हीं की छत्रछाया में कुछ-कुछ सीखा था.” रामेश्वर पाठक की चर्चा सितारवादक रविशंकर भी अपनी आत्मकथा में करते हैं. वे सितार के गुर सीखने अमता भी गए थे.  जहाँ बिहार के बेतिया, गया घराने के शास्त्रीय संगीत की आज चर्चा नहीं होती, वहीं दरभंगा घराने की नई पीढ़ी शास्त्रीय संगीत का अलख जगाए हुए हैं. मल्लिक दरभंगा घराने के बारहवीं पीढ़ी के सिद्ध गायक हैं. 

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