Sunday, July 13, 2025

आपातकाल और एक फिल्म की याद

 


पिछले दिनों आपातकाल (1975-77) के पचास वर्ष पूरे हुए. इस दौरान नागरिक अधिकारों के हनन, मीडिया पर सेंसरशिप और सत्ता के अलोकतांत्रिक रवैए को लोगों ने याद किया.

आपातकाल को बहुत सारे फिल्मकारों ने सीधे या अपरोक्ष रूप से अपनी फिल्म का आधार बनाया है और आज भी इससे प्रेरणा लेते हैं. पिछले दिनों चर्चित फिल्मकार सुधीर मिश्रा ‘समर ऑफ 76’ नाम से एक वेब सीरीज के फिल्मांकन में व्यस्त थे. जैसा कि नाम से जाहिर है यह आपातकाल के दौर की राजनीति के इर्द-गिर्द रची-बसी है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी इस सीरीज की शूटिंग हुई .
वे कहते हैं कि यह सीरीज में आपातकाल एक रूपक की तरह आया है. बहरहाल, आपातकाल की पृष्ठभूमि में बनी उनकी फिल्म ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ के बीस साल पूर हुए हैं. एक बार फिर से देखते हुए यह ख्याल बना रहता है कि 70 के दशक की देश की राजनीति, आपातकाल, नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़े संभ्रांत और शिक्षित वर्ग के युवाओं के सपने, इच्छा, हताशा को इस फिल्म से बेहतर चित्रित करने वाला हिंदी में शायद कोई अन्य फिल्म नहीं है. प्रेम कहानी के रूप में बुनी गई यह फिल्म एक साथ शहर (दिल्ली) और गाँव (भोजपुर) की यात्रा करती है.
‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ फिल्म है, जिसने 21वीं सदी में समातंर सिनेमा की नई धारा की शुरुआत की जिसे हम ‘नया सिनेमा’ कह सकते हैं. इन‌‌‌ फिल्मों का सौंदर्यशास्त्र पिछली सदी‌ के समांतर सिनेमा से अलहदा है. यहां गीत-संगीत की भूमिका भी उल्लेखनीय है. शांतनु मोइत्रा का संगीत आज भी कर्णप्रिय है.
यह फिल्म सिद्धार्थ, गीता और विक्रम के सहारे आपातकाल के दौर को राजनीति, आदर्श और युवा मन के उधेड़बुन को खूबसूरती के साथ सामने लाता है. विक्रम (शाहनी अहूजा) एक गांधीवादी का बेटा है पर उसे आदर्शवाद नहीं लुभाता वहीं सिद्धार्थ (के के मेनन) एक रिटायर्ड जज को बेटा है जो क्रांति के गीत गाता है. वहीं गीता (चित्रांगदा सिंह) विलायत से पढ़ कर लौटी एक ऐसी लड़की है जो प्रेम की तलाश में है. तीनों ही अदाकारों का अभिनय फिल्म को एक ऊंचाई पर ले जाता है.
इस फिल्म के सिलसिले में जब मैंने सुधीर मिश्रा ने कुछ महीने पहले बात किया था तब उन्होंने कहा था कि 'इस फिल्म को लिखने में पाँच-छह साल मुझे लगे. पहले कहानी एक नक्सल और एक लड़के की थी, जो कॉलेज में पढ़ता था और पुलिस वाले का... फिर मुझे लगा कि बहुत टिपिकल हो रही है. फिर धीरे से कहाँ से विक्रम मल्होत्रा उभरा.'
फिल्म में विक्रम का किरदार विरोधाभासों से भरा है. वे कहते हैं, "विक्रम एक ऐसा लड़का है जिससे हम कॉलेज मे दूर रहते हैं. उसे दूर रहने के लिए कहते हैं. जो कुछ बनने आया था, फिक्सर है. गीता और सिद्धार्थ हम जैसे लोग हैं. खास कर कोई मुझसे पूछता है कि फिल्म में आप कौन हैं, तो मैं कहता हूँ-गीता. मेरे ख्याल से फिल्म अभी तक जिंदा इसलिए है क्योंकि विक्रम का भी नजरिया है उसमें. जिंदगी आइडियोलॉजी से आगे कहाँ फिसल जाती है, कहाँ एस्केप करती है इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता.”