बहरहाल, मॉल में जो बड़े व्यवसायियों की दुकानें हैं, वहां किताबों की बिक्री हो या न हो, उन्हें बहुत फर्क नहीं पड़ता. लेकिन छोटे दुकानदारों के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाता है. ऐसे में पुणे के पाषाण इलाके में एक छोटी सी दुकान ‘पगडंडी’ की लोकप्रियता आश्चर्यचकित करती है.
इस दुकान को विशाल और नेहा पिपरैया चलाते हैं. पेशे से इंजीनियर विशाल कहते हैं “मैं एक पैशन के तहत ही इसे चलाता हूँ.” यह पूछने पर कि कारोबार भी तो जरूरी है? वे कहते हैं कि 'हां, पर स्वतंत्र दुकानदारों के लिए आज के दौर में किताब की दुकान चलाने लिए जुनून चाहिए.'
पुणे में किताब पढ़ने-पढ़ाने की एक संवृद्ध संस्कृति रही है, पर तकनीक क्रांति के इस दौर में यह सांस्कृतिक परंपरा कमजोर हुई है. उल्लेखनीय है कि पुणे पठन-पाठन का पुराना केंद्र रहा है. पर क्या यह बात पुणे तक ही सीमित है?
‘पगडंडी’ में अकादमिक, साहित्यिक और लोकप्रिय साहित्य का जैसा संग्रह दिखाई देता है वह दुर्लभ है. यहाँ आने पर दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में स्थित ‘फैक्ट एंड फिक्शन’ की याद आ जाती है, जिसे दस साल पहले बंद करना पड़ा. इस किताबघर को बंद करते हुए मालिक अजीत विक्रम ने मुझे कहा था: “अपने पुस्तक प्रेम के कारण ही मैं इस व्यवसाय में आया, लेकिन अब न उतने निष्ठावान पाठक रहे और न इतनी आमदनी होती है कि इस महंगी जगह का किराया भी चुका सकूं.”
विशाल ने एक पुस्तकालय और कॉफी शॉप के रूप में ‘पगडंडी’ की शुरुआत वर्ष 2013 में की थी और कोरोना के दौरान इसे एक स्वतंत्र किताबघर का रूप दिया. हालांकि कॉफी शॉप और लाइब्रेरी मौजूद है, जहाँ पर बैठ कर आप पढ़ सकते हैं.
यह पूछने पर कि युवाओं में कैसे पढ़ने को लेकर रूचि पैदा की जाए, वे कहते हैं कि हमें ‘बुक क्लब’, बनाना चाहिए, ‘रीडिंग सेशन’ पर जोर देना चाहिए. देश में इन वर्षों में साहित्यिक उत्सवों की भीड़ बढ़ी है, पर क्या ये नए पाठकों को जोड़ने में कामयाब रही हैं? धीरे-धीरे ये उत्सव एक सेलिब्रेटी शो की तरह बन गए. सुधीर मिश्रा की फिल्म अफवाह में इन समारोहों पर कटाक्ष किया गया है, जो तमाशे के केंद्र बनते जा रहे हैं.
किताबघरों में जाने का एक फायदा यह होता कि आपको आनायास कोई ऐसी किताब दिख जाती है, या किताबघर के मालिक आपको बताते हैं जो ऑनलाइन खरीददारी से पता नहीं चलता.
‘पगडंडी’ में मेरी नजर नानको हानाडा की जापानी किताब पर पड़ी, जिसका अंग्रेजी अनुवाद ‘द बुकशॉप वूमन’ (कैट एंडरसन) के नाम से किया गया है. असल जिंदगी में लेखिका टोक्यो में किताबघर चलाती है. किताब में एक जगह लिखा है, “किताबों की कीमत बहुत कम होती है और मुनाफ़े का अंतर भी बेहद कम होता है, इसलिए इससे पैसे कमाना मुश्किल है.” यह किताब सोशल मीडिया के दौर में मानवीय संबंधों में साहित्य के महत्व को स्थापित करती है.

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