Monday, May 15, 2006

बोल केः लब आज़ाद हैं तेरे

बोल केः लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुतवा जिस्म है तेरा
बोल केः जाँ अब तक तेरी है

1 comment:

अनूप शुक्ल said...

हिंदी में लिखना शुरू करने के लिये बधाई तथा स्वागत! आशा है नियमितलिखते रहेंगे। जेएनयू
परिशर की खबरें भी देते रहें-गंगा ढाबा की चटपटी खबरों सहित!
hindini.com/fursatiya