Tuesday, December 12, 2006

'विर्ड, दे वेयर वंस इन लव'

पर्थ एयरपोर्ट पर उतरते ही हल्की गर्मी का एहसास होने लगा।  नवंबर के आख़िरी दिनों में मौसम यहाँ काफ़ी ख़ुशनुमा है। लंबी यात्रा के बाद मुझे भूख लगी है। रकसेक को यूथ हॉस्टल में पटक मैं टहलने निकल गया। शहर अनजाना है। हॉस्टल के आस-पड़ोस से आगे बहुत दूर नहीं निकलना चाहता, गोकि सिटी सेंटर ज़्यादा दूर नहीं है। 

कुछ दूर भटकने पर सामने एक चाइनीज रेस्तरां दिखा और मैंने Spinach का बना एक डिश ऑर्डर कर दिया, पर वह इतना तीख़ा था कि हलक के अंदर नहीं गया और मैं पानी पीकर वापस लौट आया। पहली विदेश यात्रा है और वेजिटेरियन होने की वजह से जहाँ-तहाँ खाने में झिझक भी। अगले दिन जब मैं नाश्ते के लिए विश्वविद्यालय के कैफेटेरिया में खड़ा था तो देखा कि जहाँ वेजिटेरियन का बोर्ड चस्पां है, वहां मछलियाँ भी रखी हैं!

मैं मीडिया: पॉलिसिज, कल्चर्स एंड फ्यूचर्स इन द एशिया फेसिफिक रिजनविषय पर होने वाले एक सेमिनार में भाग लेना आया हूँ। मुझे हिंदी पत्रकारिता पर वैश्विक तकनीक का प्रभावविषय पर पेपर पढ़ना है, जो मेरे पीएचडी शोध का एक हिस्सा है। तकनीक के अनेक प्रभावों में एक प्रभाव यह भी है कि हिंदी की पहुँच एक साथ ही स्थानीय (लोकल) और वैश्विक (ग्लोकल) हो गई है। मेरा ब्लॉग पर्थ में बैठा कोई उसी वक़्त पढ़ सकता है जिस वक़्त मैं दिल्ली या किसी अन्य जगह पर बैठ कर लिख रहा होता हूँ।

कर्टिन यूनिवर्सिटी के कैंपस में घूमते हुए ऐसा लगता है जैसे किसी सिद्धहस्त फ़ोटोग्राफर ने ख़ूबसूरत लैंडस्केप को अपने कैमरे में क़ैद कर रखा हो। यह बात पूरे शहर पर भी एक तरह से लागू होती है। शहर साफ़-सुथरा और खुला-खुला है। वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा शहर है पर्थ, पर आबादी बमुश्किल दस-बारह लाख (दस साल बाद अब बीस लाख के क़रीब है)।

सेमिनार में भाग लेने मलेशिया से आई अमीरा फिरदौस कहती है कि यूनिवर्सिटी का कैंपस मुझे अपने घर सा लगता है।’  ख़ुद वह मलय विश्वविद्यालय में मीडिया पढ़ाती है। बातों-बातों में पता चला कि उसके माता-पिता भी विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं और उसका बचपन विश्वविद्यालयों के कैंपस में ही गुज़रा है।

वह कहती है, ‘दोनों जब अमेरिका में फुलब्राइट स्कॉलर थे, तब मिले थे। दोनों अब अलग रहते हैं। मेरे पिता ने दूसरी शादी कर ली। तब मैं छोटी थी।’ 

विर्ड, दे वेयर वंस इन लव, बिना किसी भाव के उसने कहा।

ख़ुद अमीरा ने प्रेम विवाह किया है। जिंस और कमीज़ के ऊपर चादर लेपेटे, हँसमुख और बच्चों सी सूरत वाली अमीरा बातूनी और सहज है। भारत को लेकर उसके पास ढेर सवाल हैं। हम जब ब्रेकफास्ट कर रहे थे तब उसने बड़ी मासूमियत से पूछा कि क्या हिंदुस्तान की सारी महिलाएँ ऐश्वर्या रॉय की तरह ही सुंदर होती हैं?’  मैंने मुस्कुरा दिया। 

भारत से चर्चित फ़िल्म निर्देशक श्याम बेनेगल भी सेमिनार में भाग लेने आए हैं। उन्होंने हिंदी फ़िल्मों में विभाजन के चित्रण पर व्याख्यान दिया, जिस पर मैंने कुछ सवाल उठाए।  मैंने कहा कि हिंदी के प्रगतिशील साहित्यकी तरह ही हिंदी सिनेमा विभाजन की त्रासदी से भागता रहा है, ‘गरम हवाजैसे एक-दो अपवाद को छोड़ कर। इसे उन्होंने सहजता ने नहीं लिया और चिढ़ से गए।
Norman Lindsay's etching 

सेमिनार के बाद मुझे आलोक वाजपेयी मिले, जो बेनेगल के व्याख्यान के दौरान मौजूद थे। कानपुर के सिनेमा प्रेमी आलोक पर्थ में मनोचिकित्सक हैं। उन्होंने मेरे सवाल पर सहमति जताई और बातचीत के दौरान मुझे अगले दिन डिनर का न्योता दिया।  साथ ही उन्होंने मुझे नार्मन लिंडसेकी प्रदर्शनी देखने को भी कहा, जो इन दिनों पर्थ के म्यूजियम में लगी हुई है।  पता चला कि नार्मन लिंडसे ऑस्ट्रेलिया के चर्चित, बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार-लेखक थे और पहली बार उनके बनाए 200 इचिंग को एक साथ दिखाया गया है, इनमें न्यूड etching-stipple भी शामिल हैं। दुनिया भर में लिंडसे की पेटिंग, नक्काशी की ख़ूब सराहना और आलोचना हुई है। ख़ास करके न्यूड कलाकृतियाँ काफ़ी विवादास्पद रही है। 

इस प्रदर्शनी के बाद मैं वेस्ट ऑस्ट्रेलियन म्यूजियमभी गया, जहाँ ऑस्ट्रेलिया के aboriginals की संस्कृति, जीवन-यापन के बारे में एक खंड अलग से है। पर्थ शहर में घूमते हुए मुझे कुछ आदिवासी-मूलनिवासी दिखे थे ज़रूर, पर अलग-थलग। समाज और शहर दोनों से कटे। मेरी उत्सुकता उनसे मिलने की थी, पर उनकी भाषा सुन और रंग-ढंग देख कर मैंने टाल दिया। साथ ही मुझे सेमिनार के दौरान एक ऑस्ट्रेलियाई स्कॉलर ने उनसे घुलने-मिलने से मना किया था और दूर रहने की सलाह दी थी

मुझे शहर घूमने की इच्छा दी, पर उससे कहीं ज़्यादा समंदर देखने को मन मचल रहा था। अमीरा भी तैयार बैठी थी और हम scarbrough beach घूमने गए।  समंदर, समंदर का किनारा कहीं ना कहीं शहर की संस्कृति को एक खुलापन देता हैदिल्ली में तो प्रेम के कोने भी काफ़ी मुश्किल से मिलते हैं!

दिल्ली को समंदर के किनारे होना चाहिए था, इससे शहर का सौंदर्य निखरता है। पर्थ से लौटने पर जब मैं अपने एक क़रीबी मित्र से यात्रा के बारे में जिक्र कर रहा था तो उसने चुटकी ली—‘अच्छा तो आपको अमीरा बीच घूमाने ले गई थी।मित्र ने यात्रा के दौरान महिलाओं से ज़्यादा घुलने-मिलने से मना जो किया था!

No comments: