Sunday, March 01, 2020

भारतीय संगीत के विश्वदूत : पंडित रवि शंकर

पंडित रवि शंकर (1920-2012) को जिसने भी देखा-सुना है, उसकी अपनी मोहक स्मृतियाँ है. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में वे जीते जी किंवदंती बन गए थे. सिरीफोर्ट आडिटोरियम, दिल्ली में जब उन्हें मैंने पहली बार सुना तब था, वे अस्सी वर्ष के थे. उस जादुई शाम का रोमांच अभी भी मेरे मन में है.
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को दुनिया के नक्शे पर स्थापित करने में पंडित रवि शंकर की महती भूमिका थी. दिल्ली, लंदन, अमेरिका के शहरों में हो रहे विभिन्न संगीत समारोहों के माध्यम से यह पूरा साल ‘रवि शंकर जन्मशती वर्ष’ के रूप में मनाया जा रहा है. इसी सिलसिले में दिल्ली के नेहरू पार्क में दो दिन के ‘स्मरण’ संगीत समारोह में पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, जाकिर हुसैन, विश्वमोहन भट्ट, अश्विनी देशपांडे, बेगम परवीन सुल्ताना जैसे दिग्गज उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देने जुटे.
बनारस में एक बंगाली परिवार में उनका जन्म हुआ. घर में उन्हें रवींद्र शंकर नाम दिया गया था. बाद में रवि शंकर नाम उन्होंने खुद चुना. बचपन में उन्हें गुरु के रूप में प्रसिद्ध नर्तक उदय शंकर मिले, जो उनके बड़े भाई थे. शुरुआती दीक्षा उनकी नृत्य में ही हुई, लेकिन जब वे करीब अठारह वर्ष के थे तब बाबा अलाउद्दीन खाँ के शागिर्द बने, जिन्हें वे पिता तुल्य मानते थे. उनके संगीत पर ध्रुपद शैली का जो प्रभाव है वह उस्ताद अलाउद्दीन खाँ की देन है. संगीत के अध्येता पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह ने दरभंगा घराने के ध्रुपद के प्रसिद्ध गायक पद्मश्री रामचतुर मल्लिक के हवाले से लिखा है कि ‘अलाउद्दीन खाँ अपने लाडले जमाता-शिष्य रवि शंकर को गंडाबद्ध शागिर्द बनवाने के लिए दरभंगा रामेश्वर पाठक के पास ले गए थे. पाठक जी ने गंडा बाँधने से तो इनकार कर दिया, लेकिन सितार के कुछ रहस्य उन्होंने रविजी को बताये.’ पंडित रवि शंकर ने अपनी आत्मकथा ‘राग-अनुराग’ में उन्हें अपना ‘आदर्श पुरुष’ बताया है.
पंडित रवि शंकर के सितार पर राग तिलक कामोद में आलाप, जोड़, झाला और धमार को सुनना अह्लादकारी है. स्त्री सौंदर्य के प्रति रवि शंकर में सहज आकर्षण था. उन्होंने माना था कि ‘सुर बहार’ की सिद्धहस्त कलाकार अन्नपूर्णा देवी से उनकी शादी ‘मैरिज ऑफ कन्वीनियंस’ थी.
स्मरण, नेहरू पार्क
पश्चिमी दुनिया के श्रोता उनकी विशिष्ट शैली और प्रयोग के दीवाने थे. ‘वेस्ट मीट्स ईस्ट’ (1967) के लिए उन्हें पहला प्रतिष्ठित ग्रैमी पुरस्कार मिला था. जहाँ जुबिन मेहता, येहूदी मेनुहिन और जार्ज हैरिसन के साथ उनकी जुगलबंदी या साठ के दशक में बीटल्स के साथ उनके संगीत सफर को लोग आज भी याद करते हैं, वहीं प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ उनके रिश्ते की चर्चा कम होती है. पाथेर पांचाली, अपराजितो और अपूर संसार (अपू त्रयी) का पार्श्व संगीत उन्होंने दिया था. रवि शंकर का सिनेमा के साथ भी गहरा रिश्ता था. चेतन आनंद की ‘नीचा नगर’ और रिचर्ड एटेनबरो की बहुचर्चित फिल्म ‘गाँधी’ के संगीत का श्रेय उन्हें ही है.
‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा’ को नई धुन में पिरोने वाले भारत रत्न रवि शंकर आधुनिक भारत की पहचान हैं. घर-बाहर, आत्म-अन्य के विभेद को मिटाते उनके संगीत की जरूरत पहले से आज कहीं ज्यादा है.

(प्रभात खबर, 1 मार्च 2020)

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