Sunday, February 07, 2021

नाच के सौंदर्य का सम्मान: रामचंद्र मांझी


कोरोना काल में लोक कलाकारों की स्थिति बदहाल रही. ऐसे में इस बार पद्म पुरस्कारों में लोक कलाकारों की पहचान और उन्हें पुरस्कृत करने की पहल प्रशंसनीय है ‘भोजपुरी के शेक्सपीयर’ भिखारी ठाकुर (1887-1971) के सहयोगी रहे बिहार के चर्चित कलाकार रामचंद्र मांझी को नाच परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पद्मश्री देने की घोषणा हुई है, वहीं मिथिला पेंटिंग के लिए दुलारी देवी और भीली शैली चित्रकला के लिए भूरीबाई को भी यह पुरस्कार मिला है. ये सभी कलाकार हाशिए के समाज से आते हैं जिन्हें काफी संघर्ष से अपने क्षेत्र में प्रसिद्धि मिली है.

बारह वर्ष की उम्र में मंच पर पैर रखने वाले 94 साल के मांझी आज भी नाच कला में सक्रिय हैं. पिछले साल एनएसडी के भारत रंग महोत्सव में ‘भिखारीनामा’ में लोगों ने उन्हें मंच पर देखा था. असल में लौंडा नाच की प्रसिद्धि का श्रेय भिखारी ठाकुर और उनकी मंडली को है. रामचंद्र मांझी भिखारी ठाकुर की नाट्य मंडली में शामिल थे. स्त्री रूप और साज-सज्जा में मंच पर आकर दर्शकों को रिझाने की कला को भिखारी ठाकुर और उनकी मंडली ने अपूर्व ऊंचाई दी, पर धीरे-धीरे यह कला समाज से ओझल होती चली गयी.रात भर दर्शकों का मनोरंजन करने वाली यह कला सामंती संस्कृति की उपज थी, जिसे मंडली ने पिछले सदी में सामाजिक-राजनीतिक जागरूकता का औजार बनाया. भिखारी ठाकुर की रचना में निम्नवर्गीय चेतना (सबअल्टर्न) मुखर रूप से अभिव्यक्त हुई है.
गीत-संगीत, हास्य, व्यंग्य इस कला के मूल में है. ‘बिदेसिया’ नाटक में जो पलायन और अपनी जमीन से बिछुड़ने की पीड़ा है वह सिनेमा और नाटक के समकालीन कलाकारों को आज भी अपनी कला में ढालने के लिए उकसाता रहता है. हाल के दशक में इस कला के प्रति सामाजिक अस्वीकृति और तिस्कार का भाव जन्मा है. समाजशास्त्री पूरनचंद जोशी ने लिखा है, “लोक अध्ययन अवधारणाओं के संबंध में एक तरफ हम ऐसी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त रहे हैं, जिसने लोक समुदाय को आधुनिक सभ्यता के दायरे से बाहर मानकर वास्तव में सभ्यता के ही बाहर माना है.” हालांकि भिखारी ठाकुर की कला को लेकर कुछ शोध हुए हैं.

हिंदी के प्रसिद्ध रचनाकार संजीव ने भिखारी ठाकुर को केंद्र में रख कर ‘सूत्रधार’ की रचना की थी. उत्साह से भरपूर ठेठ भोजपुरी में मांझी कहते हैं कि ‘समाज में इसे हीन भावना से लोगों ने देखना शुरू किया पर इस पुरस्कार से लोगों में कला के प्रति फिर से वैसी ही सम्मान की भावना जागेगी जैसा कि भिखारी ठाकुर के समय में थी.’ वे कहते हैं कि उन्हें पहले भी बहुत पुरस्कार मिले हैं, पर यह सम्मान उनके लिए खास है.
हाल ही में जैनेंद्र दोस्त और शिल्पी गुलाटी ने चार कलाकारों को केंद्र में रख कर ‘नाच भिखारी नाच’ वृत्तचित्र का निर्देशन किया है. चारों कलाकार भिखारी ठाकुर नाच मंडली के सदस्य रह चुके हैं. इस वृत्तचित्र में लोक कला की राजनीति और सौंदर्य बोध को उजागर किया है. साथ ही इस कला से जुड़ा जातीय पहलू भी सामने आता है, क्योंकि ज्यादातर कलाकार सामाजिक रूप से पिछड़े तबके से ही आते रहे हैं.

(प्रभात खबर, 7 फरवरी 2021)

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