Sunday, October 30, 2022

बॉलीवुड के 'आइकन' अमिताभ बच्चन


हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसे अभिनेता कम ही हुए हैं, जिन्हें अस्सी साल की उम्र में केंद्रीय भूमिका मिलती रही हो. फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन की नई फिल्म ‘गुडबाय’ कुछ दिन पहले आई है. विकास बहल निर्देशित इस ‘ट्रेजीकॉमेडी’ में एक भी ऐसा दृश्य नहीं है, जिसमें वे नहीं हो. यह मनोरंजक फिल्म पारिवारिक रिश्तों को समेटे है. फिल्म में नीना गुप्ता, रश्मिका मंदाना, आशीष विद्यार्थी, सुनील ग्रोवर की भी प्रमुख भूमिका है, लेकिन परिवार के मुखिया अमिताभ बच्चन की चिर-परिचित आवाज सब पर भारी है.

अमिताभ बच्चन पचास साल से ज्यादा समय से बॉलीवुड में सक्रिय हैं. हमारी पीढ़ी ने पिछली सदी में 70 के दशक के अमिताभ को परदे पर नहीं देखा. हमने जब होश संभाला तब तक ‘दीवार’, ‘जंजीर’, ‘शोले’ आदि फिल्में हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गई थी. अस्सी के दशक के आखिर में, बिहार के एक छोटे कस्बे में जब दस-बारह साल की उम्र में अमिताभ को ‘शहंशाह’, ‘तूफान’, ‘जादूगर’ में देखा, तब उनका ‘स्टारडम’ ढलान पर था और फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट रही थी. ‘मैं आजाद हूं’ (1989) फिल्म में मसीहाई अंदाज में वे दिखते हैं. ऐसा लगने लगा था कि इस दशक के अमिताभ की आभा क्षीण हो गई.
सत्तर के दशक में अमिताभ ने ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि में आम आदमी के असंतोष, क्षोभ, हताशा, सपने और मोहभंग को स्वर दिया. ‘दीवार’ (1975) फिल्म का विजय व्यवस्था से विद्रोह करता हुआ, हाशिये पर पड़ा एक आम आदमी है. देश के सामाजिक-राजनीतिक हालात के साथ ही इसमें लेखक सलीम-जावेद की जोड़ी की भी प्रमुख भूमिका रही. अस्सी के दशक में इसे हम समांतर सिनेमा की धारा में ओम पुरी अभिनीत ‘आक्रोश’, ‘अर्धसत्य’ जैसी फिल्मों में देखते हैं, जहाँ व्यवस्था से विद्रोह मुखर है.
हमारी पीढ़ी के लिए 90 के दशक में शाहरुख-आमिर-सलमान खान ही बॉलीवुड के हीरो रहे, हालांकि अमिताभ ‘अग्निपथ’, ‘अजूबा’, ‘मेजर साहब’ जैसी फिल्मों के माध्यम से मौजूद थे. सही मायनों में 21वीं सदी में ‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो में कंप्यूटर जी’ से संवाद करते जब वे रुपहले परदे से उतर कर ड्राइंग रूम में पहुंचे तब उनसे हमारा परिचय हुआ. प्रसंगवश, ‘गुडबाय’ फिल्म में अमिताभ बच्चन एक जगह इस शो के इर्द-गिर्द एक चुटकुले का जिक्र भी करते हैं!
भूमंडलीकरण और उदारीकरण के बाद आई संचार क्रांति ने सिनेमा की विषय-वस्तु को भी गहरे प्रभावित किया. सिनेमा ने सामाजिक बदलावों को अंगीकार किया है. मनोरंजन के साथ समाज को देखने का निर्देशक-लेखक का नजरिया बदला है. जाहिर है, ऐसे में अमिताभ के लिए लेखक ने नए किरदार गढ़े. ‘सरकार’, ‘चीनी कम’, ‘पा’,’ पीकू’, ‘पिंक’, ‘गुलाबो सिताबो’, ‘झुंड’ आदि फिल्में इसका उदाहरण है. इन फिल्मों में अमिताभ अपने ‘स्टार’ छवि से अलग होकर एक किरदार के रूप में हमसे जुड़ते हैं.
पचास साल तक लगातार लोगों का मनोरंजन करना आसान नहीं है. इस मायने में वे बॉलीवुड के 'आइकन' है, जिन्होंने दो पीढ़ी के दर्शकों और कलाकारों को प्रभावित किया है. हालांकि यहाँ पर यह जोड़ना उचित होगा कि यदि वे एक कलाकार के रूप में राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर गाहे-बगाहे अपनी आवाज बुलंद करते तब वे हमारे समय के और करीब होते.

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