Monday, August 14, 2023

पुराने गाने नए रंग में: व्हाट झुमका?

 


शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ के बाद करण जौहर की फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ ने दर्शकों को सिनेमाघरों की ओर आकर्षित किया है. आम बॉलीवुड की फिल्मों की तरह मनोरंजक शैली में बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाई भी अच्छी कर रही है, जबकि इसे ‘ओपेनहाइमर’ और ‘बार्बी’ जैसी हॉलीवुड की फिल्मों से टक्कर है.

बॉलीवुड के फिल्मों की व्याख्या कई स्तरों पर होती है. इस फिल्म को भी समीक्षक कई तरीकों से देख-परख रहे हैं. कहा जा रहा है कि अपने पच्चीस साल के फिल्मी करियर में पहली बार जौहर की इस फिल्म में राजनीतिक स्वर उभरे हैं. स्त्री-पुरुषों के संबंध में आ रहे बदलाव को भी यह फिल्म बखूबी पकड़ती है, साथ ही नृत्य कला को ‘जेंडर’ के चश्मे से देखने पर भी सवाल उठाया गया है. यथार्थ और फैंटेसी के बीच फिल्म आवाजाही करती रहती है.
मेरे लिए इस फिल्म की एक खूबी पुराने फिल्मी गानों का का इस्तेमाल है, जिसे निर्देशक ने कहानी में खूबसूरती से बुना है. ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में किरदार फिल्मी गानों के सहारे ही स्मृतियों और सपनों को जीते हैं. जीवन भी तो स्मृतियों, इच्छाओं और सपनों का ही पुंज है. याद कीजिए हिंदी के प्रसिद्ध रचनाकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की कहानी ‘पंचलाइट’ में भी गोधन मुनरी को देखकर ‘सलीमा’ का गाना गाता है- ‘हम तुमसे मोहब्बत करके सलम..’.
बॉलीवुड में जहाँ कथा तत्व हमेशा हावी रहता आया है, वहीं गीत-संगीत की भूमिका कम नहीं है. जैसा कि चर्चित फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने लिखा है: ‘इंडियन ‘टॉकी’ फिल्मों ने बोलने से पहले ही गाना शुरु कर दिया था. इंदर सभा (1932) फिल्म में 70 गाने थे.’ हिंदी सिनेमा अगर समाज के एक बड़े तबके की भावनाओं, आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करता रहा है तो इसमें सिनेमा के गीत-संगीत की बड़ी भूमिका रही है. गहन वेदना, एकाकीपन या प्रेम के क्षणों में अनायास फिल्मी गाने मुँह से निकल पड़ते हैं. अपवाद छोड़ दिया जाए तो आजकल गीतकार-संगीतकार की बात समीक्षक कम ही करते है. साहिर लुधियानवी, शकील बदायुनी, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, मजरूह सुल्तानपुरी, गुलजार के बाद आनंद बक्षी, जावेद अख्तर, इंदीवर, समीर जैसे गीतकारों से होते हुए गीतों की परंपरा वर्तमान पीढ़ी तक पहुँची है.
बहरहाल, इस फिल्म की शुरुआत में रॉकी (रणवीर सिंह) और रानी (आलिया भट्ट) के ऊपर फिल्माए गाने- ‘रायबरेली के बीच बजारी जब हुस्न दिखाने जाएगी...’ में रानी मोहक अदा से रॉकी से पूछती है, ‘व्हाट झुमका’? असल में, अमिताभ भट्टाचार्य ने इस गाने को भले लिखा हो, एक तरह से यह गाना ‘मेरा साया (1966)’ फिल्म के सदाबहार गाने ‘झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में’ (राजा मेंहदी अली खान) को श्रद्धांजलि है. मदन मोहन के लोक धुनों को संगीतकार प्रीतम ने सुरक्षित रखा है. प्रसंगवश, भट्टाचार्य आज की पीढ़ी के समर्थ गीतकार हैं, जिन्हें राष्ट्रीय समेत कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.
इसी तरह से फिल्म में पुरानी पीढ़ी के किरदारों की कहानी ‘हम दोनों (1961’) फिल्म में साहिर लुधियानवी के लिखे गाने ‘अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं’ के माध्यम से कही गई है. साथ ही ‘गाइड (1965)’ फिल्म के गाने ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ (शैलेंद्र) और ‘कुर्बानी (1980)’ के बेहद लोकप्रिय गाने ‘आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए, तो बात बन जाए’ (इंदीवर/बिड्डू) का भी बखूबी इस्तेमाल किया गया है. नाजिया हसन के गाए इस ‘डिस्को’ की धूम आज भी सुनाई देती है. पाकिस्तान की नाजिया उस वक्त महज पंद्रह वर्ष की थी, जब उन्हें इस गाने के लिए ‘फिल्म फेयर’ पुरस्कार से नवाजा गया. ऐसा नहीं कि ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में’ में मूल गाने नहीं है, लेकिन पुराने गाने की तासीर फिल्म को एक अलग खुशबू देती है.
पिछले 75 सालों में चर्चित हुए हर फिल्मी गानों की एक अलग कहानी है. पीढ़ियों की स्मृतियों को इन गानों ने सुरक्षित रखा है. पाँच साल पहले आई किताब ‘नोट बाय नोट’ में बेहतर ढंग से आजादी के बाद हिंदी फिल्मों की संगीत यात्रा को आजाद भारत की कहानी से जोड़ कर देखा गया है. खैर, ‘प्रीटी लेडी’ रानी का सवाल ‘व्हाट झुमका’ असल में नयी पीढ़ी से है.
ये पुराने गाने एक दौर की सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक परिस्थितियों को स्वर देने के साथ ही आधुनिक पीढ़ी की प्रेम कहानी भी कहते आए हैं. गौर करने वाली बात है कि रानी का सवाल हिंदी या उर्दू में नहीं है, बल्कि 'हिंग्लिश' में है, जो उदारीकरण के बाद शहरी मध्यवर्गीय (धनाढ्य) हिंदुस्तानियों की भाषा बन कर उभरी है.

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