Tuesday, August 08, 2023

पायरेसी के खिलाफ पहल


 सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में सिनेमैटोग्राफ संशोधन विधेयक के बारे में जोर देकर कहा कि फिल्म उद्योग को इस बिल से आने वाले सौ-दो सौ सालों तक पायरेसी से मुक्ति मिलेगी. संसद के दोनों सदनों से इस विधेयक को मंजूरी मिल गई है.

मनोरंजन और राष्ट्र-निर्माण में सिनेमा जैसे जनसंचार माध्यम की महत्ता को समझते हुए आजादी के तुरंत बाद सरकार ने सिनेमा के प्रचार-प्रसार में रुचि ली थी. इसी उद्देश्य से वर्ष 1949 में सिनेमा उद्योग की वस्तुस्थिति की समीक्षा के लिए जवाहरलाल नेहरू ने फिल्म इंक्वायरी कमेटी’ का गठन किया था. इस समिति ने सिनेमा के विकास के लिए कई सुझाव दिए थे. बहरहाल, वर्ष 1952 में देश में सिनेमैटोग्राफ कानून लागू किया गया थाजिसका मूल उद्देश्य फिल्मों के प्रदर्शन के लिए प्रमाण पत्र जारी करना था. देश में सिनेमा का इतिहास एक सौ दस साल पुराना है. जब सिनेमेटोग्राफ कानून बना था तब सिनेमा को लेकर आज की तरह दीवानगी नहीं थीन ही इसकी पहुँच देश के कोन-कोने तक ही थी. आज करीब पचास भाषाओं में सबसे ज्यादा  फिल्मों का उत्पादन भारत में होता है. पिछले दशकों में जहाँ तकनीकी क्रांति ने सिनेमा के उत्पादन और प्रसारण में सहूलियत दी हैवही तकनीक की सहायता से फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज होते ही इंटरनेटसोशल मीडिया के माध्यम से चोरी-छिपे देश-दुनिया में पहुँच जाती है. दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक प्रदर्शन के दौरान फिल्मों की चोरी-छिपे कॉपी कर ली जाती है. इससे सिनेमा और मनोरंजन उद्योग से जुडे लाखों लोगों प्रभावित होते हैं. जाहिर है पायरेसी का खामियाजा निर्माता-निर्देशकों भुगतना पड़ता है. इसे रोकने की माँग फिल्म उद्योग से जुड़े लोग वर्षों से कर रहे थे. नए कानून का मुख्य ध्येय इस पायरेसी पर रोक लगाना ही है. 

संशोधित  वधेयक के तहत बिना अनुमति के (अनाधिकृत) फिल्मों का ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग करनेजहाँ पर प्रदर्शन के लिए लाइसेंस नहीं दिया गया हो वहाँ दिखाने कॉपीराइट कानून का उल्लंघन करने पर तीन महीने से लेकर तीन साल तक जेल की सजा हो सकती है. इसके अतिरिक्त दोषी व्यक्ति को तीन लाख रुपए से लेकर कुल उत्पादन लागत का पाँच प्रतिशत हर्जाना देना पड़ेगा. अनुराग ठाकुर ने कहा कि पायरेसी की वजह से हर साल फिल्म उद्योग को 20 हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ता है. इस आंकड़े पर बहस हो सकती है, पर इससे इंकार नहीं कि पायरेसी का मुद्दा महज भारत तक ही सीमित नहीं है. तकनीक क्रांति और भूमंडलीकरण के दौर में दुनिया एक गाँव में बदल चुकी है. सिनेमाघरों की बात अलग हैपर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जब कोई फिल्म रिलीज होती है वहाँ से कॉपी करना या डाउनलोड करना मुश्किल नहीं है. आज कई ऐसे गैर-कानूनी वेबसाइट हैं जहाँ पर विभिन्न भाषाओं की दुनिया भर की नई-पुरानी फिल्मेंडॉक्यूमेंट्रीफीचर आसानी से उपलब्ध है. ऐसे में सवाल है कि क्या पायरेसी को रोकना आज के दौर में संभव है?  न सिर्फ फिल्म बल्कि महंगी किताबें, शोध ग्रंथ, अकादमिक जर्नल भी एक बार प्रकाशित होने के बाद ऑनलाइन, ‘फ्री एक्सेस’  के लिए उपलब्ध हो जाती है. पिछले कुछ सालों से महंगी वैज्ञानिक जर्नलों की मुफ्त में उपलब्धता को लेकर दुनिया भर में बहस जारी है. नए कानून लागू करने वाले एजेंसियों को ध्यान रखना होगा कि पायरेसी के तहत वेबजह प्रताड़ना न हो. 

सवाल यह भी है कि क्या सरकार के पास देश में हर कोने में चल रहे सिनेमाघरों पर नजर रखने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं पिछले वर्षों मेंखास कर कोविड के बाद सिनेमाघरों को ओटीटी प्लेटफॉर्म से चुनौती मिल रही है. स्मार्ट फोन पर सस्ते डाटा पैक की आसान उपलब्धता से ओटीटी का कारोबार बढ़ा है. इन प्लेटफॉर्म पर कंटेंट में विविधता भी आई है. नई पीढ़ी भी मनोरंजन के लिए नए विषय-वस्तु और पटकथा की तलाश में हमेशा रहती हैजो विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली वेब सीरीज और फिल्मों की खासियत है. यहाँ प्रयोग करने की गुंजाइश है. कई प्रयोगशील फिल्मकार आज सिनेमाघरों के बदले ओटीटी को तरजीह दे रहे हैं. सवाल यह भी है कि क्या सिनेमा प्रदर्शन के हर प्लेटफॉर्म, मसलन ओटीटी पर नज़र रखना संभव है

इस विधेयक में पायरेसी के अतिरिक्त विभिन्न आयु वर्गों को लेकर जो श्रेणी बनाई गई है उस पर नजर जाती है. जहाँ मूल सिनेमैटोग्राफ कानून के तहत यू (यूनिवर्सल) और ए (एडल्ट) प्रमाणपत्र जारी करने का प्रावधान थासंशोधन विधेयक में अब विभिन्न आयु वर्गों को ध्यान में रखते हुए साततेरह और सोलह वर्ष की आयु से ऊपर के बच्चों के लिए सिनेमा सामग्री देखने-दिखाने की श्रेणी बनाई गई है. इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी लागू किया जाएगा. साथ हीकेन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड इन फिल्मों के टेलीविजन या अन्य माध्यमों पर प्रदर्शन के लिए अलग से प्रमाण पत्र भी जारी कर सकता है. प्रसंगवशसेंसर बोर्ड पहले फिल्मों को दस वर्ष के लिए प्रमाण पत्र जारी करता था. यह समयावधि अब समाप्त कर दी गई है. प्रमाण पत्र अब हमेशा के लिए मान्य होगा.

बहरहालसात साल या तेरह साल के बच्चे के लिए माता-पिता की संरक्षण में ही इस बदलाव को सुचारू ढंग से अमलीजामा पहनाया जा सकता है. जिस तरह से आज बच्चों के हाथों में मोबाइल और लैपटॉप आ गया है ये  प्रावधान बेहद जरूरी हैंलेकिन घर में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चे सामूहिक रूप से ऑनलाइन कंटेंट का उपभोग करते पाए जाते हैं. हर समय उन पर नजर रखना कहीं सेंसरशिप का रूप न ले लेसाथ ही मनोवैज्ञानिक रूप से भी नजरबंदी’ बच्चों के लिए क्या सही होगा? 

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