Friday, February 12, 2010

घर एक सपना है

बचपन में हम एक खेल खेला करते थे. बब्बू, आपको याद है, तब हम पूर्णिया में रहते थे गाँव नहीं लौटे थे! हमारे मकान के पिछवाड़े में काफ़ी जगह थी. हम खुरपी से ज़मीन खोद कर पानी डालते थे. उसमें इकन्नी-दुअन्नी गाड़ते थे और फिर सूखी मिट्टी से उसे पूरी तरह से ढक देते थे.

हम सपने बुनते थे कि जब इस पैसे से पेड़ निकलेगा तब कैसे-कैसे पैसे उसमें फलेंगे. क्या हम पेड़ पर चढ़ कर पैसे तोड़ पाएँगे. कोई बात नहीं, चाचा से हम कह देंगे वे तोड़ दिया करेंगे हमारे लिए. यों जब पैसे बड़े हो जाएँगें तब खुद गिर गिर के इधर-उधर बिखरें पड़ें मिलेंगे, पके आम की तरह. लेकिन यदि रुपए फले तो!
वे तो तेज़ हवा में उड़ जाएँगे...!

वे बचपन के दिन थे. आपको याद है बब्बू, राजा भर्तहरी के गीत गाने वाले, बनगाँव महिषी के गुदरीया बाबा. चाचा उन्हें खाना खिलाते थे, माँ उन्हें गुदरी देती थी. चाचा ग्रहों के दोष से बचने के लिए उनसे उपाय पूछते थे. वे हर बार नए ग्रहों के दोष के बारे में बताते थे. कभी शनि की दशा ठीक नहीं होती थी, तो कभी चाचा के मंगल में दोष होता था.


गुदरीया बाबा हमारा भी हाथ देखते थे. क्या हमारे हाथ में विद्या रेखा है, क्या हम विदेश जाएँगे बताइए ना, हम उनसे पूछते थे. फ्रैंकफ़र्ट एयरपोर्ट पहुँच कर मैंने एक बार फिर से अपने हाथ को उलट-पुलट कर देखा, हां चंद्र पर्वत पर एक रेखा तो है शायद...!


यहां जिगन में (कल प्रोफ़ेसर डेटलिफ बता रहे थे जिग नाम की एक नदी है) विश्वविद्यालय के इस गेस्ट हाउस के बाहर, मेरे इस खूबसूरत कमरे के ठीक सामने बर्फ़ की चादर फैली है. यहां का तापमान अभी माइनस सात डिग्री है. सेमल के फूल की तरह बर्फ़ के फाहे हवा में तैर रहे हैं. सामने कई पत्रहीन नग्न गाछ (पेड़) एक सीध में खड़े हैं.


भाई, हमारा बचपन बीतता गया, पैसों के पेड़ हम कहाँ देख पाए...इन वर्षों में लेकिन सपनों के पेड़ में काफ़ी नव पल्लव खिलते गए. हमने सतरंगी सपने देखना छोड़ा नहीं. हमारे बचपन में न कोई समुद्र था न ही कोई बर्फ़. पापा के पास इतने पैसे कहां थे कि हमें कहीं बाहर घुमाने ले जाते. हमें घर से बाहर भेज कर पढ़ाने का साहस किया, यह क्या उनके लिए आसान था.? उनके सपने हमारे सपनों से जुड़ते गए.


अजीब संयोग है, ज़िंदगी में पहली बार समुद्र देखा था वह हमारी दुनिया नहीं थी. पहली बार बर्फ़ गिरते देख रहा हूँ यह भी एक दूसरी दुनिया है. यूरोप देखने की, वहाँ रह कर पढ़ने-लिखने की मन में चाह थी. लेकिन कब? यह पता नहीं था.


आज आपकी बहुत याद रही है. बचपन में मेरे लिए रेत का घरौंदा और बालू का घर आप बनाते थे. कितना अच्छा होता आप यहाँ होते और बर्फ़ में मेरे लिए एक घर बनाते. मेरा हाथ अब भी इतना सुघड़ नहीं कि घर बना पाऊँ. घर एक सपना है...!


(जनसत्ता में 19.02.2010 को प्रकाशित)

15 comments:

Manish Tiwari said...

kuch nahi hai kahne ko, comment karne.. bas itna hi, ki bahut bhavuk hona, shayad theek nahi hota, woh bhi doosre deshmein!!

Rajiv Ranjan said...

बचपन की दिन बड़े ही अनोखे थे, ना कोई टेंसन ना कोई झिक-झिक, अपने दुनिया में मस्त, बस सपने बुनते थे....
जब कोई सपना साकार होता नजर आता हैं, बरबस बीते दिनों की याद आ जाती हैं
वैसे मालिक, अब बब्बू जी नहीं, कोई गोरी-चिठ्ठी सी विदेशी भाभी जी घर बसाएगी ....... . .

S P said...

Oh Maalik!!! All your dreams will come true....just live them :)))
I am so happy for you :)

संगीता पुरी said...

घर एक सपना है...
सपने ही तो पूरे होते हैं ..
बहुत सुंदर पोस्‍ट .. बचपन की यादों का !!

Unknown said...

Babbujee, yaad hai aapko..
wah wartun pagdandiyan
bazaar jaane ka raasta
janjharpur ka halt
dileep babu ka rangeen chashma
laudspeaker par bajnewali sharda sinha ke geet

kya yaad hai aapko?

Babbujee, yaad hai aapko
CNR Rao ki chemistry
aur hansi majaak mein likh dena 2010-california"
kisi bhavishya-dtusta ki tarah

such hi ho jaate hain
anayaas...
kuchh angarh sapne
apne hone ke liye

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Mukesh Kejariwal said...

Touch hai... Tumhara.. Bahut dinon baad.. ya phir kahun ki pichle lambe samay main pahli baar tumne kuch tabiyat se likha hai.

Mukesh Kejariwal said...

Lambe samay bad form me dikhai deto ho... kuch aur tukde likh dalo lage hath.

Belief said...

It's a nostalgic tale down the memory lane. You have spread your dream before us and I am sure the same hand will hold the key to a beautiful home. Your dreams will come true with flying colors. All the best sir.

Arvind Das said...

शुक्रिया, बहुत बहुत शु्क्रिया आप सभी का. जनसत्ता ने इसे अपने 19 फरवरी के अंक में संपादकीय पेज पर 'घर एक सपना है' शीर्षक के तहत छापा है. आप इसे देख सकते हैं इस लिंक पर http://www.jansattaraipur.com/

अरविंद

अविनाश वाचस्पति said...

अरविंद जी। मैं तो आपको बधाई देने आया था पर यहां आकर मालूम हुआ कि आपने तो रात में चार बजे से पहले ही इसकी सूचना लगा रखी है इसलिए आपको लेख की और सक्रियता के लिए दोहरी बधाई। नई दिल्‍ली से प्रकाशित दैनिक जनसत्‍ता में इसे पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ के अंतर्गत पढ़ा जा सकता है और यहां पर स्‍कैनबिम्‍ब लगाया जायेगा। http://blogonprint.blogspot.com/ इस लिंक पर प्रिंट मीडिया में ब्‍लॉगचर्चा ब्‍लॉग में इस पोस्‍ट व अन्‍य प्रकाशित पोस्‍टों का अवलोकन किया जा सकता है।

Arvind Das said...

डियर अविनाश भाई, बहुत बहुत धन्यवाद. मैंने आप लोगों की मेहरबानी से ऑन लाइन 'ठाठ कबीरा' पढ़ा था. मुझे स्कैन कॉपी का इंतज़ार रहेगा. आशा है आप स्वस्थ होंगे. शुभकामनाएँ:) अरविंद

अविनाश वाचस्पति said...

आप अपना ई मेल पता भेजिएगा avinashvachaspati@gmail.com पर। आपको आज शाम को स्‍कैनबिम्‍ब मिल जायेगा।

कुमार राजेश said...

Arvind Bahi, Kaise hai aap, jante hai Neel Armstrong, Buzz Aldreen aur Michel Collins ne kabhi yeh nahi socha tha ki we moon per jaynge unke father ne bhi aisa nahi socha tha ki unke ladke moon per jayenge but ye teeno sabse pehle moon per pahuche. Arvind jee sare kam insan hi karta hai.. jarurat hoti hai sirf ek sapne ki...Arvind jee ek very unknown kavi Ramavtar tyagi ki kavita ki yeh teen line hain....
आदमी चाहे तो तक़दीर बदल सकता है
पूरी दुनिया की वो तस्वीर बदल सकता है
आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है.
Best of Luck n take care...

umesh said...

ये पोस्ट सिर्फ़ बचपन कि यादें या बचपन का सपना भर नहीं है। यह पोस्ट एक प्रेरणा भी है, उनके लिये जो सपने तो देखते हैं लेकिन फ़िर भुल जाते हैं, ये सोंचकर कि शायद वो कभी पुरी नहीं हो सकती। छोटाभाई आपके इस पोस्ट ने बचपन की यादों को ताजा कर दिया। रही बात घर की तो मैं कामना करता हुं कि वो सपना भी जल्दी ही पुरी हो।

Sulini said...

Hi Arvind,

Many thanks again for your kind comments :) This is a beautiful piece of writing. Very evocative, nostalgic. Devoid of all its external trappings, life is much the same everywhere. We are indeed fortunate to have grown up where we did and to have had the kind of experiences we had. At the end of the day, these are what make it a fuller, richer life!