Sunday, February 28, 2010

होरी खेलूँगी बिस्मिल्लाह

अज़रा कहती है, तुम कितना कुछ यूरोप के बारे में जानते हो, लेकिन मैं भारत के बारे कुछ नहीं जानती. हां, जब मैं बोसनिया में थी तब बचपन में पढ़ी थी भारत के बारे में..वहां कि वर्ण व्यवस्था के बारे में..चार या पाँच तो जाति होती है..अब मुझे याद नहीं.

अज़रा जिगन विश्वविद्यालय की शोध छात्रा है. बोसनिया की है, लेकिन वर्षों से जर्मनी में रहती है. कल होली के बारे में पूछ रही थी. माँ से मैंने जब यह कहा तो हँसते हुए उनका कहना था, 'पूआ बनाके खिला देना उसे...'

बिना रंग के आप किसी को 'होली' कैसे समझा सकते हैं...रंग तो क्या मैं ढूँढूंगा..हां, हल्दी साथ लेकर आया हूँ..उसे हल्दी ज़रूर लगाऊँगा..क्या पता वह कह उठे...बिस्मिल्लाह..!
(चित्र में, अज़रा के साथ लेखक)

6 comments:

समयचक्र said...

बिस्मिल्लाह .. होली की हार्दिक शुभकामनाये .

Arvind Das said...

महेन्द्रजी आपको भी होली की शुभकामनाएँ..मुबारक.

Belief said...

ka adesh hai Puaa bane kal....!!!

Belief said...

Sir,
Maa ka adesh hai puaa bene kal...!!!

Rajiv Ranjan said...

कोई नहीं मालिक, प्रकृति के रंग में ही सरोबर कर दीजिये....पुआ तो बनने से रहा...या कोशिश कीजिये दोनों मिलकर, कुछ तो बन ही जायेगा....

chakraverti mahajan said...

Holi Mubarak, Arvind. Yeh jaan ke bahut khushi hui ki aap yeh Holi Germany mein mana rahe hain. Safed chadar pe rang aur acche nikharege!

khushi aur saflta,

Chakraverti