रात के साढ़े आठ बजे हैं...अभी नहाया और अब खाना खाऊँगा...बासमती चावल (मैंने बड़े चाव से उसमें इलायची मिलाया है) का भात बनाया है..आलू उबाला और फूल गोभी के साथ बारीक टमाटर के टुकड़ों सहित रसदार बनाया है.
असल में सबेरे साढ़े चार बजे उठकर, जल्दी-जल्दी तैयार होकर ट्रेन पकड़ने के लिए घर से निकल पड़ा था डूसलडॉफ़ के लिए. दोपहर जब लौटा इतनी तेज़ नींद आ रही थी कि सो गया...उठा जब शाम को एक केला और सेब खाया..कॉफ़ी पी. सोचा रात का खाना ठीक से खाना है..
यात्रा में निर्मल वर्मा की याद आती रही थी..
चावल तैयार हो गया अब रसदार सब्जी कम आँच पर गाढ़ा बना रहा हूँ...
लंबे अरसे के बाद कविता लिखने का मन कर रहा है...हां कविता लिख रहा हूँ कल ब्लॉग पर डालूँगा..'यात्रा में निर्मल वर्मा...'
कविता का मीटर ठीक है. बस, थोड़ी बहुत कॉट-छाँट करनी है, लेकिन पहले खाना खा लूँ..कब से खाना तैयार है, नहीं तो स्टोव पर रखे हुए ठंडा हो जाएगा.
आज सुबह काफ़ी ठंड थी. रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार करते हुए मैं ठिठुर रहा था.क़रीब हफ़्ते भर बाद आज फिर यहाँ बर्फ़ गिरी है.
ये गंध किस चीज़ की आ रही है..गोभी की है..जलने की बदबू...
मैंने अपने कमरे और ड्राइंग रूम का दरवाज़ा खोल दिया है ताकि ताज़ी हवा अंदर आ सके...
गोभी चल के राख हो चुकी है...और मैं बेतहाशा हँस रहा हूँ....शुभा मुदगल गा रही है...सूतल निंदिया जगाए...भोरे-भोरे...
4 comments:
बढ़िया लेखन!
बढियां -कोई गार्जियन होता तो कह पड़ता आअज फिर सब्जी जला दी इस नामाकूल ने हा हा
@ उड़न तस्तरी साहब आपका शुक्रिया. आशा है आप कुशल होंगे..
@ अरविंद जी, अच्छा लगा आपका कमेंट पढ़ कर. धन्यवाद.
dost, kafi khushi hui, muje tum jarmani me ho, jate samay phon per thik tarike se baat nahin ho payi thi
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