Wednesday, July 13, 2016

सद्भाव के सुर

पंडित अभय नारायण मल्लिक के साथ लेखक
ऐसे समय में जब चारों तरफ हिंसा की खबरें हैंहिंसा की तैयारी चल रही हैइस मानसून में राग मल्हार या दरबारी कान्हरा की चर्चा बेमानी-सी लगती है. पर जब राजनीतिचाहे वह सत्ता की हो या धर्म कीलोगों को जोड़ने के बजाय बांटने की हो रही होसदियों से एक व्यापक समाज की पहचान से जुड़ी सांस्कृतिक स्मृति और इतिहास को मिटाने पर तुली होतब संगीत की याद बेतहाशा आती है.

स्मृतियों में डूबा-उतराया मैं पिछले दिनों हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद के एक चर्चित घराने दरभंगा शैली के एक प्रतिनिधि और संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत पंडित अभय नारायण मल्लिक से मिलने उनके घर गया. जीवन के अस्सीवें वर्ष में प्रवेश कर चुकेशरीर से कमजोर मल्लिक के सुर और उनकी बोली-वाणी में मजबूती और मिठास अब भी बरकरार है. राग कान्हरा और राग दीपक की चर्चा करते हुए उनकी आंखों में चमक बढ़ जाती है. पिछले साल बिहार में चुनाव के दौरान जब सत्ताधारी दल के राष्ट्रीय नेता दरभंगा पहुंच कर इस शहर से दरभंगा मॉड्यूल’ और आतंकवाद के तार जोड़ रहे थेतब मन मायूस हो गया था. दरभंगा या किसी भी क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान हिंसा या अलगाव से नहीं बन सकती है. हाल में उत्तर प्रदेश में शामली जिले के कैराना में ऐसा ही कुछ होता दिखा है. किराना घराने के सिरमौर उस्ताद अब्दुल करीम खान के साथ कैराना का नाम जुड़ा हैपर राजनीतिक पार्टियों और मीडिया को झूठ-अफवाहों के सिवा कुछ पता नहीं! या फिर जान-बूझ कर एक साजिश के तहत सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश हो रही है.

बहरहालवर्तमान पीढ़ी भले ही दरभंगा घराने से अपरिचित होमिथिला में ध्रुपद की करीब तीन सौ साल पुरानी परंपरा है. इसे दरभंगा-अमता घराना के नाम से जाना जाता है. तेरह पीढ़ियों से यह परंपरा आज भी चली आ रही है. पंडित मल्लिक खुद को तानसेन की परंपरा से जोड़ते हैं. ध्रुपद के श्रेत्र में दरभंगा घराने से जुड़े पंडित रामचतुर मल्लिक (पद्म श्री)पंडित सियाराम तिवारी (पद्म श्री)पंडित विदुर मल्लिक के गायन की चर्चा आज भी होती है. दरभंगा शैली ध्रुपद के एक अन्य प्रसिद्ध घराने डागर शैली से भिन्न है. हालांकि पाकिस्तान स्थित तालवंडी घराने से दरभंगा घराने की निकटता है. यह एक उदाहरण है कि राष्ट्र की सीमा भले ही एक-दूसरे को अलगाती हैमगर संगीत एक-दूसरे को जोड़ता रहा है. यही बात रवींद्र संगीत के बारे में भी कही जा सकती है.

दरभंगा शैली के ध्रुपद गायन में आलाप चार चरणों में पूरा होता है और जोर लयकारी पर होता है. ध्रुपद गायकी की चार शैलियां- गौहरडागर, खंडार और नौहर में दरभंगा गायकी गौहर शैली को अपनाए हुए है. गौरतलब है कि ध्रुपद के साथ-साथ इस घराने में खयाल और ठुमरी के गायक और पखावज के भी चर्चित कलाकार हुए हैं. पखावज के नामी वादक पंडित रामाशीष पाठक दरभंगा घराने से ही थे.
पं रामचतुर मल्लिक पंडित जी के गुरु थे

मुगल शासन के दौर में ध्रुपद का काफी विस्तार और विकास हुआ. इसी दौर में अखिल भारतीय स्तर पर लोकभाषा में भक्ति साहित्य का भी प्रसार हुआ. ध्रुपद गायकी इसी लोकभाषा और भक्ति-भाव के सहारे विकसित हुई. हालांकि समय के साथ ध्रुपद गायन के विषय और शैली पर भी प्रभाव पड़ालेकिन जोर राग की शुद्धता पर बना रहा. जैसे-जैसे खयाल गायकी का चलन बढ़ावैसे-वैसे लोगों का आकर्षण ध्रुपद से कम होने लगा. पिछली सदी के शुरुआती दशकों में ध्रुपद की लोकप्रियता में कमी आई. सुखद रूप से एक बार फिर पिछले तीन-चार दशकों से देश-विदेश में एक बार फिर से संगीत के सुधीजन और रसिक ध्रुपद की ओर आकृष्ट हुए हैं. पंडित अभय नारायण मल्लिक ने बताया कि खयाल का अति हो गया था!

दरभंगा महाराज के दरबार से जुड़ा यह घराना आजादी के बाद भी बिहार में संगीत के सुर बिखेरता रहा. पुराने दौर के लोग याद करते हैं कि 60-70 के दशक में दरभंगालहेरियासराय में होने वाली दुर्गापूजा के दौरान किस तरह पंडित रामचतुर मल्लिक की अगुआई में देश भर के संगीत के दिग्गज अपनी मौसिकी का जादू बिखरते थे. लेकिन बाद के दशकों में जैसे-जैसे बिहार में राजनीतिक माहौल प्रतिकूल होता गयादरभंगा में भी ध्रुपद की परंपरा सिमटने लगी.

इसके बाद धीरे-धीरे दरभंगा से इस घराने का कुनबा देश के विभिन्न शहरों में जमता गया. हालांकि पंडित अभय नारायण मल्लिक अभी भी दरभंगा और अपने गांव अमता को शिद्दत से याद करते हैं. विद्यापति के पद को गाते हुए वे अतीत को याद करने लगते हैं और बताते हैं कि दरभंगा रेडियो स्टेशन में उनके गाए विद्यापति के पद रिकॉर्ड में मौजूद होने चाहिए. उन्होंने याद किया कि उनके गुरु पंडित रामचतुर मल्लिक भी अपनी गायकी के आखिर में विद्यापति के पद ही गाते थे. पंडित मल्लिक के घर से निकलते हुए मुझे बचपन में पढ़ी यह पंक्ति याद आई- यह विशुद्ध साहित्य-संगीतवह गंदी राजनीति!’ 

(जनसत्ता, दुनिया मेरे आगे, 13.07.2016 को प्रकाशित)

3 comments:

Unknown said...

अरविंद जी,
नमस्कार !
आपके लेख http://arvinddas.blogspot.in/ पर देखे। खास बात ये है की आपके लेख बहुत ही अच्छे एवं तार्किक होते हैं।

इन्टरनेट पर अभी भी कई बेहतरीन रचनाएं अंग्रेज़ी भाषा में ही हैं, जिसके कारण आम हिंदीभाषी लोग इन महत्वपूर्ण आलेखों से जुड़े संदेशों या बातों जिनसे उनके जीवन मे बदलाव हो सकता है, से वंचित रह जाते हैं| ऐसे हिन्दीभाषी यूजर्स के लिए ही हम आपके अमूल्य सहयोग की अपेक्षा रखते हैं ।

साथ ही आपसे निवेदन है की आप अपने लेखों को शब्दनगरी पर भी अपने नाम से साथ प्रकाशित करें।

साथ ही हमारा यह भी प्रयास होगा कि शब्दनगरी द्वारा सभी यूज़र्स को भेजी जानी वाली साप्ताहिक ईमेल में हम आपके लेख जोड़ कर,और शब्दनगरी पर प्रकाशित होने वाली विशिष्ट रचनाओं मे आपकी रचनाओं को सम्मिलित कर अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचाएँ ।
उम्मीद है हमारी इस छोटी सी कोशिश में आप हमारा साथ अवश्य देंगे ।
आपके उत्तर की प्रतीक्षा है ...
धन्यवाद,
प्रियंका शर्मा
(शब्दनगरी संगठन)
www.shabd.in

Arvind Das said...

प्रियंका, आप इन लेखों का इस्तेमाल कर सकती हैं. पर जो लेख कहीं पहले छप चुके हों, उसे आभार देना ना भूलें, उल्लेख ज़रूर कर दें. शुक्रिया अरविंद


Gunjan Shree said...

शुक्रिया आपका ज्ञानवर्धन करवाने हेतु !